संघ क्या है | डॉ केशव बलिराम हेगड़ेवार जी का संघ एक नज़र में | RSS KYA HAI

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शाखा क्या है

 

डॉ केशव बलिराम हेगड़ेवार जी ने अपने जीवन के उत्तरार्ध में राष्ट्रीयता के जिस भाव को संघ रूपी बीज के रूप में इस देश में रोपा था…. और जिसे श्री गुरूजी ने अपने सतत प्रयासों से सींच कर खड़ा किया था, आज वह संघ अपने करोड़ों स्वयंसेवकों के पीढ़ियों के निस्वार्थ समर्पण से इतना सक्षम , समर्थ और शशक्त हो गया है की अब इस देश में संघ के समर्थन व सहमति के बिना कोई भी राजनैतिक दल सत्ता प्राप्त नहीं कर सकती

 

संभव है की कइयों को इस तथ्य पर संशय हो, उन्हें अपने विचार और निष्कर्ष निकालने की पूरी स्वतंत्रता है , समय अपनी गति से उन संशयों को स्वतः ही खंडित कर देगा ; हमारे लिए अपनी ऊर्जा का प्रयोग इन संशयों के स्पष्टीकरण में करना एक विकल्प है, पर, अपनी ऊर्जा की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए हमें वर्त्तमान के संशय से अधिक संभावनाओं को महत्वपूर्ण बनाना होगा।

संघ ने अपना यह स्थान अपने स्वयंसेवकों के सेवा और समर्पण से प्राप्त किया है इसलिए …स्वयंसेवकों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है की विशेष शक्तियों का विशिष्ट दाइत्व होता है और ऐसी कोई भी शक्ति जो स्वयं को नियंत्रित न कर सके वह स्वतः ही अपने विनाश का कारण बनती है। संघ कोई राजनीतिक दल नहीं बल्कि व्यक्ति निर्माण की ऐसी प्रयोगशाला है जिसके लिए विशिष्ट ही सामान्य है, अतः कोई भी स्वयंसेवक सहज और सरल तो होगा पर कभी भी साधारण नहीं होता, उनके प्रयास का उद्देश्य ही उन्हें महत्वपूर्ण बनाता  है, फिर भूमिका चाहे जो भी हो..

ऐसे में, संभव है की कई स्वयंसेवक राजनैतिक कार्यकर्त्ता हों पर उनके लिए यह आवश्यक है की किसी भी परिस्थिति में राजनीति राष्ट्र से बड़ा न होने पाये।

 

संघ दृष्टि से राजनीति होनी चाहिए पर राजनैतिक दृष्टिकोण के आधार से संघ कार्य नहीं किया जा सकता;

यह ईश्वर की असीम अनुकम्पा और स्वयंसेवकों के समर्पण का ही परिणाम है जिसने आज संघ को इतना सामर्थवान बनाया है जिससे यह राष्ट्र के नेतृत्व और भविष्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका निभाने के योग्य हुआ है, पर अभी संघ का काम समाप्त  नहीं बल्कि शुरू हुआ है। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के चरण में परिवर्तन से न केवल स्वयंसेवकों के प्रयास की परिधि बल्कि उनके प्रभाव की व्यापकता में भी विस्तार होने वाला है , ऐसे में, हमारे लिए यह आवश्यक होगा की  हम राष्ट्र नव  निर्माण की प्रक्रिया के  अगले चरण के लिए स्वयं को  तैयार रखें।

भारत देवभूमि तो हमेशा से है अब यह स्वयंसेवकों का दाइत्व है की वह अपने कर्मों से सींचकर भारतीयों को देवी देवताओं में रूपांतरित करें और एक आदर्श राष्ट्र का निर्माण करें जहाँ लाभ या लोभ की राजनीति नहीं बल्कि सत्य, धर्म और न्याय सर्वोपरि हो। वेदों में भी लिखा है की जो भी मनुष्य अपने व्यक्तिगत विशिष्टता का प्रयोग विश्व के उत्थान व् कल्याण में लगाये वह देवीदेवता तुल्य है, फिर भला हम प्रयास क्यों न करें। जिस दिन इस देश की सारी जनसँख्या जागृत हो गयी वही तो सच्चे अर्थों में भारत का परम वैभव होगा।

हाँ, हम भविष्य द्रष्टा नहीं पर अपने वर्त्तमान के  प्रयास  से भविष्य की नियति सुनिश्चित तो कर ही सकते हैं।  इसके लिए आत्मविश्वास द्वारा शाषित आत्मबल निर्णायक होगा जिसकी प्राप्ति केवल समय द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों को स्वीकार कर ही किया जा  सकता  है; जिसमे सफलता के लिए उद्देश्य के प्रति समर्पण और प्रयास के प्रति  निष्ठा के साथ साथ प्रयास की सही दिशा व् चुनौतियों के प्रति मनोवृति भी निर्णायक होगी। हमें वर्त्तमान के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन  कर अवरोधों को अवसर में  रूपांतरित  करना होगा।

( डॉ हेडगेवार ) 

अतः स्वयंसेवकों के लिए यह आवश्यक है की वह क्षणिक राजनीति के लिए संघ दर्शन से समझौता न करें क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो स्वयंसेवक के राजनैतिक लाभ की कीमत संघ को अपने सिद्धांतों, और गत नौ दशकों के सतत प्रयास से अर्जित प्रतिष्ठा से चुकानी होगी। ऐसा कदम न ही संघ हित में होगा और न ही राष्ट्र हित में।  जिनके लिए हर कीमत पर व्यक्तिगत कल्याण महत्वपूर्ण है ऐसे व्यक्ति भले ही संघ से सम्बंधित हो सकते हैं पर कदापि स्वयंसेवक नहीं हो सकते।

संघ आज सक्षम , समर्थ और शशक्त अवश्य है पर संघ अपनी शक्ति का प्रयोग व्यक्ति या राजनीति के हित में नहीं बल्कि केवल राष्ट्रहित में करेगा, इसलिए याद रहे, संघ के लिए राष्ट्र राजनीति से बड़ा है और यही भाव स्वयंसेवकों से भी अपेक्षित है।

 

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