कहानी के तत्व की संपूर्ण जानकारी इस पोस्ट में आपको प्राप्त होगी।
अंत तक इस लेख को जरूर पढ़ें आपको एक वीडियो भी हमारे द्वारा दी गई है पोस्ट के नीचे जिसे आप देख कर कहानी के तत्व आराम से समझ सकते हैं।
कहानी के तत्व
कहानी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है –
१. कथावस्तु –
‘संक्षिप्तता’ कहानी के कथानक का अनिवार्य गुण है।
वैसे तो कथानक की पांच दशाएं होती है
‘आरंभ’ ,
‘विकास’ ,
‘कोतुहल’ ,
‘चरमसीमा’
और ‘अंत’ |
परंतु प्रत्येक कहानी में पांचों अवस्थाएं नहीं होती। अधिकांश कहानी में कथानक संघर्ष की स्थिति को पार करता है , विकास को प्राप्त कर कौतूहल को जगाता हुआ , चरम सीमा पर पहुंचता है।
और उसी के साथ कहानी का अंत हो जाता है।
२. पात्र का चरित्र चित्रण –
आधुनिक कहानी में यथार्थ को मनोविज्ञान पर बल दिया जाने लगा है अंत उसमें चरित्र चित्रण को अधिक महत्व दी गई है अब घटना और कार्य व्यापार के स्थान पर पात्र और उसका संघर्ष ही कहानी की मूल धुरी बन गए हैं। कहानी के छोटे आकार तथा तीव्र प्रभाव के कारण सीमित होती है और दूसरे पात्र के सबसे अधिक प्रभाव पूर्ण पक्ष की उसके व्यक्तित्व कि केवल सर्वाधिक पुष्ट तत्व की झलक ही प्रस्तुत की जाती है।
अज्ञेय की शत्रु कहानी में एक ही मुख्य पात्र है जैनेंद्र के खेल कहानी में चरित्र चित्रण में मनोविज्ञान आधार ग्रहण किया गया है अतः कहानी के पात्र वास्तविक सजीव स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं पात्रों का चरित्र आकलन लेखक प्राया दो प्रकार से करता है प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है परोक्ष या नाट्य शैली में पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण दोषों का संकेत देते चलते हैं इन दोनों मैं कहानीकार को दूसरी पद्धति अपनानी चाहिए इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।
३. वातावरण
कहानी में भौतिक वातावरण के लिए विशेष स्थान नहीं होता फिर भी इनका संक्षिप्त वर्णन पात्र के जीवन को उसकी मनः स्थिति को समझने में सहायक होता है। मानसिक वातावरण कहानी का परम आवश्यक तत्व है। प्रसाद की ‘पुरस्कार’ कहानी में ‘मधुलिका’ का चरित्र चित्रण में भौतिक और मानसिक वातावरण की सुंदरता सृष्टि हुई है।
ऐतिहासिक कहानी में भौतिक वातावरण , मानसिक कहानी का अतिरिक्त महत्व होता है , क्योंकि उसी के द्वारा लेखक पाठक को युग विशेष में ले जाता है और सच्ची झांकी को पेश करता है।
४. संवाद या कथोपकथन
कहानी में स्थगित कथन लंबे चौड़े भाषण या तर्क-वितर्क पूर्ण संवादों के लिए कोई स्थान नहीं होता। नाटकीयता लाने के लिए छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जाता है।
संवादों से आरंभ होने वाली कहानी वास्तव में प्रभावी होती है।
संवाद , देश काल , पात्र और परिस्थिति के अनुरुप होनी चाहिए।
वह संक्षिप्त रोचक तर्कयुक्त तथा प्रवाहमय हो उनका कार्य कथा को आगे बढ़ाना , पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालना , विचार विशेष का प्रतिपादन करना होता है।
५. भाषा शैली
कहानी को प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक को थोड़े में बहुत कुछ कहने की कला में निपुण होना चाहिए।
लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो कहानी की भाषा सरल , स्पष्ट व विषय अनुरूप हो।
उसमें दुरूहता ना होकर प्रभावी होना चाहिए , कहानीकार अपने विषय के अनुरूप ही शैली का चयन कर सकता है।
वह आत्मकथात्मक , रक्षात्मक , डायरी , नाटकीय शैली का प्रयोग कर सकता है।
६. उद्देश्य
प्राचीन कहानी का उद्देश्य मात्र मनोरंजन या उपदेशात्मक था किंतु आज विविध सामाजिक परिस्थितियां जीवन के प्रति विशेष दृष्टिकोण या किसी समस्या का समाधान और जीवन मूल्यों का उद्घाटन आदि कहानी के उद्देश्य होते हैं यहां उल्लेखनीय है कि कहानी का मूल्यांकन करते समय उसमें निर्मिति और एकता का होना आवश्यक होता है कहानी यदि पाठक के मन पर अद्भुत प्रभाव डालती है तो कहानीकार का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।
अतः कहानी कला के शास्त्रीय नियमों की अपेक्षा उसकी अत्यंत प्रभाव क्षमता अधिक महत्वपूर्ण होती है।
कहानी के तत्व की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें वीडियो के रूप में। हमारा एक यूट्यूब पर चैनल हिंदी भाग जहां पर आपको सभी प्रकार के हिंदी नोट्स वीडियो के रूप में मिलेंगे परंतु आप चाहे तो कहानी के तत्व नीचे दी गई वीडियो को प्ले करके देख सकते हैं।
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काफी मददगार ,
इस लेख के लिए आपका अनेक अनेक धन्यवाद !!
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नाटक के तत्व पर बहुत ही अच्छी जानकारी प्रदान किए आपने जिसे पढ़कर मेरी काफी मदद हुई.
कहानी के प्रमुख चार तत्वो के नाम कौन से है
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