छठ पूजा का महत्व समझने के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़ें | इस पोस्ट में आपको छठ पूजा की विधि विधान , कहानी और महत्व सब कुछ जान ने को मिलेगा | आप से एक आग्रह है की कृपया हमारे पोस्ट को शेयर जरूर करें | और सब को छठ पूजा का महत्व बताएं | Chhath puja kahani aur mahatva |
छठ पूजा कथा कहानी और महत्व
भारत त्योहारों का देश है। यहां निरंतर एक के बाद एक त्यौहार आते रहते हैं। वर्ष भर या क्रम चलता रहता है। भारत के लिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यहां हर एक दिन पर्व / त्यौहार का दिन होता है। दीपावली के कुछ दिन पूर्व से ही त्यौहार का करम शुरू हो जाता है धनतेरस , छोटी दीपावली , बड़ी दीपावली , भैया दूज , और छठ पर्व यह पर्व उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
छठ पर्व
छठ पर्व विशेष रूप से पूर्वांचल का पर्व है , यह पर्व विशेष शुद्धता और सात्विक तरीके से बनाया जाने वाला पर्व है। भारत में पाषाण पूजने की भी परंपरा है , किंतु प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले एकमात्र भगवान सूर्यदेव ही हैं जिनके माध्यम से प्राणियों में जीवन का संचार होता है।
- भगवान सूर्य के माध्यम से ही ऋतु चक्र में परिवर्तन होता है। यह जीवन का स्रोत भी है।
- यदि सूर्य ना हो तो प्राण रूपी वायु की कल्पना नहीं की जा सकती।
- इसी भगवान सूर्य की आराधना साधक लोग नित्य प्रतिदिन करते हैं।
- यह पर्व विशेष तौर पर वर्ष में दो बार मनाया जाता है।
- छठ पर्व के रूप में सूर्य व षष्ठी देवी की पूजा की जाती हैं।
एक छठ पर्व चेत्र षष्ठी के रूप में मनाया जाता है अथवा दूसरा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन जो दीपावली के ठीक छः दिन बाद मनाया जाता है।
इस दिन सूर्य भगवान के साथ – साथ देवी षष्ठी की भी पूजा की जाती है।
इस व्रत को क्यों करें ? किसने आरंभ किया ? इस व्रत का क्या महत्व है ? इस विषय में ग्रंथ अथवा पुराणों में भी वर्णन किया गया है।
छठ पर्व का वैज्ञानिक महत्व –
भारतवर्ष मैं निरंतर एक के बाद एक पर्व मनाया जाता है। हर एक पर्व कि अपनी अहमियत और अपनी विशेषता होती है। किंतु सभी पर्व का एक ही लक्ष्य अथवा एक ही सार होता है मोह – माया से भरी जिंदगी से कुछ समय के लिए छुटकारा पाकर उस परमात्मा में अपना ध्यान लगाना , उसमें लीन होना। इस मोह -माया के बंधन से कुछ क्षण के लिए मुक्ति पाना।
छठ पर्व निश्चित रूप से विशेष महत्व का पर्व है।
- यह पर्यावरण की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।छठ पर्व में स्वच्छता और सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- यह पर्व खगोल की दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है।
- सूर्य को डूबते व उगते समय जल अथवा दूध से अर्घ दिया जाता है।
- सूर्य को जल का अर्घ देने के पीछे रंगो का विज्ञान है।
- यह पर्व सुख – समृद्धि , संतान और आरोग्य रहने के लिए विशेष महत्व रखता है।
- सूर्य को अर्घ देते समय शरीर पर पेराबैंगनी किरणों का असर कम होता है।
- मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से कई बीमारी होती है।
- सूर्य को अर्घ देते समय प्रिज्म विज्ञान का सिद्धांत काम आता है।
- प्रिज्म के सिद्धांत से मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- अर्घ देते समय सूरज की रोशनी से विटामिन डी मिलता है।
- इस वैज्ञानिक सिद्धांत से मानव शरीर में त्वचा के रोग कम होते हैं।
छठ पर्व से जुड़ी मान्यता यह भी है कि , महाभारत काल में द्रोपदी अपने परिवार की कुशलता व समृद्धि की कामना के लिए यह व्रत किया करती थी।
महाभारत में ही कर्ण जो सूर्य पुत्र थे।
वह भगवान सूर्य की नित्य – प्रतिदिन आराधना किया करते थे।
सूर्य का उन्हें विशेष स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त था , जिसके कारण वह ‘अंगराज’ होते हुए उन्होंने अपने शासन को बखूबी चलाया सके। माना जाता है कि वह अपने राज्य क्षेत्र में किसी से किसी प्रकार का ‘कर’ (टैक्स) नहीं लिया करते थे।
क्योंकि भगवान सूर्य उन्हें प्रसाद के स्वरूप 24 किलो सोना नित्य प्रतिदिन दिया करते थे , जिससे उनके राज्य में धनलक्ष्मी अथवा वैभव बना रहता था। अतः आज भी व्रत करने का एक ही लक्ष्य है परिवार की कुशलता , उनकी दीर्घायु , आरोग्य और इस माया जगत से कुछ क्षण के लिए अपने चित को हटाकर परमात्मा में लगाना।
छठ पूजा कहानी
छठ पूजा या पर्व से जुडी कहानियां –
एक कथा के अनुसार – एक राजा प्रियव्रत हुए उनकी पत्नी मालिनी हुई। इस दंपति की कोई संतान नहीं थी। वह निः संतान ही अपना जीवन यापन कर रहे थे और पुत्र की कामना लिए नित्य प्रतिदिन दुखी रहा करते थे। जानकारी के अनुसार ऋषि कश्यप जो पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के ज्ञाता थे। राजा ने उनसे प्रार्थना यह यज्ञ करवाने के लिए किया जिसपर ऋषि कश्यप पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाने को राजी हुए।
यज्ञ समापन के नौ महीने बाद रानी के गर्व से एक पुत्र का जन्म हुआ , किंतु वह पुत्र मृत पैदा हुआ। इससे दुखी होकर राजा प्रियव्रत आत्महत्या करने के लिए आतुर हुए। तभी एक देवी ने अकस्मात प्रकट होकर भगवान सूर्य व षष्ठी देवी की आराधना करने को कहा और उसके महत्व को भी बताया। सूर्यदेव अथवा देवी षष्ठी की पूजा करने से याचक व व्रती की मनोकामना पूर्ण होती है ऐसा कहते हुए देवी अंतर्ध्यान हो गई।
राजा ने यथाशीघ्र कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन पूजा-अर्चना पूरे विधि – विधान के साथ शुद्धता व स्वच्छता के साथ किया और राजा को पुनः पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन से निरंतर षष्ठी देवी व सूर्य भगवान की आराधना पूरे विधि – विधान व स्वछता / शुद्धता के साथ किया जाने लगा।

दूसरी कथा
भगवान राम और सीता के संदर्भ में है। जब राम वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे आए तो उन्होंने अपनी भार्या सीता संग कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन भगवान सूर्य व षष्ठी देवी की आराधना की। उस दिन से जनसामान्य में यह पर्व माननीय हुआ और साधारण जनता ने इस पर्व का महत्व समझा और अपने पुत्र की कुशलता दीर्घायु आदि के लिए यह पर्व करने लगे।
तीसरा वर्णन –
महाभारत में एक वर्णन मिलता है कर्ण जो सूर्य पुत्र थे , उन्होंने सूर्य की पूजा आराधना किया था। वह नित्य प्रतिदिन जल में आधे शरीर को उतारकर सूर्य की आराधना करते थे जिससे उन्हें अमोघ शक्ति वह दिव्य शक्तियों की प्राप्ति हुई थी।
चौथा वर्णन –
महाभारत में ही एक वर्णन और मिलता है कि द्रोपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु की कामना के लिए षष्ठी का व्रत किया करती थी। उनके परिजन सकुशल और दीर्घायु रहे ,आपसी सौहार्द बना रहे इस कामना से प्रेरित होकर द्रोपदी यह व्रत किया करती थी।
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षष्ठी माता से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
- देवी षष्ठी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी , ऐसा वेद – पुराणों में वर्णन है। देवी षष्ठी पुत्र व बच्चों की रक्षा करने के लिए , दीर्घायु प्रदान करने के लिए , स्वस्थ और निरोग रखने के लिए देवी षष्ठी की पूजा अर्चना की जाती है।
- यही देवी षष्ठी कात्यायनी भी कहलाती हैं। जिनका नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन पूजा अर्चना किया जाता है।
- षष्ठी के सूर्य अस्त और सप्तमी के सूर्य उदय के बीच वेद गायत्री माता का जन्म माना जाता है।
- माना जाता है कि गायत्री माता द्वारा ही इस सृष्टि का निर्माण संभव हो पाया है।
- षष्ठी माता बच्चों की रक्षा , दीर्घायु और कुशलता आदि देने वाली देवी है। जो विष्णु द्वारा रचित माया का ही एक रूप है।
छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वांचल का पर्व है , किंतु आज वर्तमान समय में यह त्योहार पर्व देश ही नहीं अपितु विदेश में भी बड़ी धूम – धाम के साथ मनाया जा रहा है। इस त्यौहार की मान्यता और महत्ता का प्रचार – प्रसार बेहद ही तीव्र गति से हो रहा है।हर वह दुखी और मनोकामना की पूर्ति करने वाला मनुष्य इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहता है और अपनी मनोकामना की पूर्ति करता है।
विशेष तौर पर षष्ठी माता का व्रत पुत्र की दीर्घायु , स्वास्थ्य लाभ और कुशलता की कामना करने वाली महिलाएं करती हैं।
छठ पूजा या पर्व के मुख्य चार दिन
छठ पूजा चार दिन का पर्व है दीपावली के चौथे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन से यह व्रत आरंभ हो जाता है। छठ पर्व का आरंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन से माना गया है।
पहले दिन नहाए – खाए का होता है।
इस दिन शुद्धता के साथ घर की साफ-सफाई कर व्रती लोग शुद्ध आहार बनाकर अपने व्रत का आरंभ करते हैं। विशेष रूप से चावल , कद्दू(घीया,लौकी) और दाल की सब्जी का महत्व है।
व्रती इसको ग्रहण करता है।
उसके पश्चात घर के अन्य सदस्य उस प्रसाद रूपी व्यंजन को ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन खरना नाम से जाना जाता है।
इस दिन व्रती शुद्धता के साथ गुड़ – चावल से बना खीर , फल और मिठाई आदि का भोग लगाकर षष्ठी माता व सूर्य भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करते हैं और उस भोग को स्वयं ग्रहण करते हैं। इस दिन नमक , चीनी व अन्य तामसिक चीजों का प्रयोग वर्जित होता है।
साधक शुद्धता के साथ इस प्रसाद को बनाता है वह ग्रहण करता है।
तीसरे दिन
संध्या अर्घ / प्रत्युषा जो सूर्य की पत्नी और शक्ति रूप है के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती शुद्धता के साथ पकवान बनाते हैं और जल में स्नान कर विधि-विधान से डूबते सूर्य की आराधना कर अर्घ देते हैं। और फिर रात भर कीर्तन अथवा जागरण करते हैं। अर्घ के समय आधे शरीर को जल में उतार कर हाथों में सूप जिसमें सूर्य भगवान को प्रसाद रूप में ठेकुआ , नारियल , केला व अन्य मौसमी फल और पकवानों के साथ दूध और जल के साथ अर्घ दिया जाता है ।
छठ पूजा का चौथा दिन
उषा अर्घ जो सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन पुनः व्रती पूर्व संध्या की भांति उगते सूर्य की आराधना कर हाँथ में सुप उसमे नारियल , केला ,अन्य फल पकवान आदि हांथो में लेकर अर्घ देते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं। उसके पश्चात घर आकर पीपल की पूजा कर कच्चे दूध का शरबत पीते हैं और अपने व्रत का पारण अथवा समापन करते हैं।

पर्व से जुडी विशेष बात
- यह व्रत साधारण व्रत नहीं है। व्रती इस व्रत को तब तक करता है , जब तक अगली पीढ़ी यह व्रत का दायित्व ग्रहण करने लायक ना हो।
- घर में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो तो यह व्रत नहीं किया जाता है।
- भगवान सूर्य की शक्ति उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा है।
- इन्ही की पूजा षष्ठी की संध्या को डूबते सूर्य और सप्तमी को उगते सूर्य के रूप में किया जाता है।
- यह पर्व स्वच्छता शुद्धता का पर्व है।
- अतः व्रत से ज्यादा शुद्धता का ध्यान आवश्यक है।
छठ पूजा प्रकृति का पर्व
भारत आदिकाल से प्रकृति का पुजारी रहा है। यहां मानव हर उस चीज की पूजा करता है जो मानव जीवन के लिए आवश्यक है।
यह प्रमाण हड़प्पा कालीन व सिंधु सभ्यता से भी प्राप्त मूर्ति के रूप में हुआ हैं।
उन साक्ष्य से भी यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन सभ्यता के लोग प्रकृति के पुजारी थे।
- पुरातन सभ्यता के लोग
- वर्षा के देवता ,
- प्रकृति चक्र के देवता ,
- वृक्ष ,
- पर्वत – पहाड़ आदि की पूजा किया करते थे।
वह यहां तक कि पशु – पक्षियों की भी विशेष रूप से पूजा किया करते थे।
छठ पूजा भी प्रकृति से जुड़ा पर्व है। छठ पूजा हमें याद दिलाता है कि प्रकृति से खिलवाड़ नहीं अपितु प्रेम करना चाहिए। छठ और माता षष्ठी की पूजा एक प्रकार से प्रकृति की ही पूजा व उपासना है। इस व्रत के माध्यम से मानव प्रकृति संरक्षण से जुड़ जाता है। छठ पूजा व पर्यावरण संरक्षण के बीच गहरा संबंध है। डूबते और उगते सूर्य की पूजा अर्चना कर श्रद्धालु भगवान सूर्य के प्रति अपनी आस्था व कृतज्ञता को व्यक्त करता है।
भगवान सूर्य के माध्यम से ही पृथ्वी पर जीवन का संचार है।
भगवान सूर्य के माध्यम से ही यह पृथ्वी प्रकाशवान है इतना ही नहीं अपितु छठ पूजा से पूर्व नदी , तालाब , जलाशय आदि की साफ – सफाई की जाती है , जो पर्यावरण संरक्षण का ही एक अंग है। ऐसा करके मानव अपने आसपास के जलाशयों को प्रदूषण मुक्त रखने का प्रयास करता है , और जन-जन में इसके प्रति जन चेतना का भाव संचार करता है।
पर्व के दौरान किसी कृत्रिम वस्तु की नहीं बल्कि फल – फूल , बांस और गन्ने का प्रयोग किया जाता है।
यह सभी सामग्री प्रकृति का ही अंग है , यह प्रदूषण नहीं फैलाते।
प्रसाद के रूप में लगने वाला
- सुप ,
- बाँस ,
- फल ,
- गन्ना ,
- सेब ,
- केला ,
- मौसमी फल इत्यादि ‘
वनस्पति का ही एक अंग है और इसके प्रयोग से साधक वनस्पति अथवा प्रकृति के महत्व को दर्शाता है।
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