शिक्षा का समाज पर प्रभाव – Influence of education on society hindi notes
शिक्षा का समाज पर प्रभाव – एक और यदि यह बात सत्य है कि, समाज शिक्षा को प्रभावित करता है तो दूसरी और यह बात सत्य है कि, शिक्षा समाज के स्वरूप को निश्चित करती है , और उसकी सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। शिक्षा मानव समाज की आधारशिला है । वह समाज का निर्माण करती है , उसमें परिवर्तन करती है , और उसका विकास करती है।
1 शिक्षा और समाज की भौगोलिक स्थिति पर नियंत्रण
एक वक्त था जब मनुष्य को भौगोलिक परिस्थितियों का दास कहा जाता था ।परंतु आज मनुष्य शिक्षा के द्वारा अपने भौगोलिक स्थितियों पर नियंत्रण करने में सफल हो गया है । वह दिन गए जब नदी और पहाड़ हमारे मार्ग में बाधक होते थे। शिक्षा के द्वारा हवाई जहाजों का निर्माण संभव हुआ और हवाई जहाजों से उड़कर हम नदी और पहाड़ हार ही नहीं करते । अपितु बहुत कम समय में बहुत अधिक दूरी तय करते हैं । शिक्षा के द्वारा हम हर भौगोलिक इस परिस्थिति पर नियंत्रण करने में सफल होते जा रहे हैं।
2 शिक्षा और समाज का स्वरुप
शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य अपने समाज के, संसार के , और इस संपूर्ण ब्रह्मांड के , बारे में जानकारी प्राप्त करता है । इस ज्ञान के आधार पर ही वह अपने जीवन के उद्देश्य निश्चित करता है । और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वह भिन्न-भिन्न समाजों का निर्माण करता है । सच्चा वेदांती मनुष्य – मनुष्य में अंतर क्या , संसार की किन्ही दो वस्तुओं में भेद नहीं करता , वह सबको ब्रह्मा मय देखता है । लेकिन ईश्वर विमुख व्यक्ति भौतिक पैमाने पर ही सब कुछ करता है , और मनुष्य – मनुष्य में अनेक प्रकार के भेद करता है। इस प्रकार भिन्न – भिन्न विचारधाराओं के व्यक्तियों के समाज का स्वरुप भिन्न भिन्न होता है । शिक्षा एक और समाज के स्वरूप की रक्षा करती है और दूसरी और उसमें आवश्यक परिवर्तन करती है।
3 शिक्षा और समाज की संस्कृति
प्रत्येक समाज अपने सदस्यों में अपनी संस्कृति का संक्रमण शिक्षा के द्वारा ही करता है । इस प्रकार शिक्षा किसी समाज की संस्कृति का संरक्षण करती है । जब मनुष्य शिक्षित हो जाता है तो वह अपने अनुभव के आधार पर अपनी संस्कृति में परिवर्तन करता है । इस प्रकार शिक्षा समाज की संस्कृति में विकास करती है । शिक्षा के अभाव में संस्कृति के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती।
4 शिक्षा और समाज की धार्मिक स्थिति
हम यह देख रहे हैं कि कोई समाज अपने शिक्षा में धर्म विशेष की शिक्षा का विधान करता है । कोई इस क्षेत्र में उदार दृष्टिकोण अपना आता है , और संसार के भिन्न – भिन्न धर्मों की शिक्षा का विधान करता है , और कोई समाज अपनी शिक्षा में धर्म को स्थान ही नहीं देता । परिणाम स्वरुप पहले प्रकार के समाजों में धार्मिक कट्टरता पाई जाती है , दूसरे प्रकार के समाजों में धार्मिक उदारता पाई जाती है , और तीसरे प्रकार के समाजों में अब एक भौतिक विज्ञान की शिक्षा से धार्मिक कूपमंडूकता एवं अंधविश्वासों का अंत होने लगा है ।और दूसरी और बढ़ती हुई सामाजिक अराजकता से मनुष्य अपनी शिक्षा को वास्तविक धर्म पर आधारित करने की और उन्मुख होने लगा है शिक्षा के अभाव में लोग धर्म के वास्तविक स्वरुप को समझ ही नहीं सकते।
5 शिक्षा और समाज की राजनैतिक स्थिति
शिक्षा के द्वारा मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि की जाती है और उसके आचरण को निश्चित दिशा दी जाती है । शिक्षा के द्वारा ही उसमें विचार करने एवं सत्य असत्य में भेद करने की शक्ति का विकास होता है । शिक्षा के द्वारा ही समाज में राजनीतिक जागरूकता आती है और व्यक्ति अपने अधिकार एवं कर्तव्य से परिचित होते हैं। इसी के द्वारा उनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भावना का विकास किया जाता है । बिना उचित शिक्षा के विधान के व्यक्ति केवल राष्ट्र का अंधा भक्त बनाया जा सकता है जागरुक नागरिक नहीं।
6 शिक्षा और समाज की आर्थिक स्थिति
एक युग था जब शिक्षा के द्वारा मनुष्य में केवल मानवीय गुणों का विकास किया जाता था । परंतु रोटी- कपड़ा – मकान की समस्या को सुलझाने वाली शिक्षा उस समय नहीं दी जाती थी ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह तो हो सकता है कि उस समय इसके लिए उचित विद्यालयों की स्थापना न की गई हो परंतु परिवार और समुदायों में यह शिक्षा बराबर चलती रही होगी । अन्यथा इस क्षेत्र में विकास कैसे होता ? आज तो शिक्षा समाज की आर्थिक स्थिति का मूल आधार है । आज भी समाज शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को किसी व्यवसाय अथवा उत्पादन कार्य में निपुण करने का प्रयत्न करते हैं। देखा यह जा रहा है कि जिस समाज में इस प्रकार की शिक्षा का जितना अच्छा प्रबंध है वह आर्थिक क्षेत्र में उतना ही तेजी से बढ़ रहा है । बिना शिक्षा के हम आर्थिक क्षेत्र में विकास नहीं कर सकते।
7 शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन
एक और यदि यह बात सत्य है कि समाज शिक्षा में परिवर्तन करता है तो दूसरी ओर यह बात भी सत्य है कि शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन होते हैं । शिक्षा द्वारा मनुष्य अपनी जाति की भाषा, रहन – सहन , खान – पान के तरीके औरत रीति- रिवाज सीखता है । और उसके मूल्य एवं मान्यताओं से परिचित होता है । इससे उसका मानसिक विकास होता है और वह अपने समाज के तथा इस ब्रह्मांड के बारे में सदेव सोचता रहता है । समाज में रह कर वह नए-नए अनुभव प्राप्त करता है और समाज की आवश्यकता एवं समस्याओं से परिचित होता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति और समस्याओं के हल के लिए वह विचार करता है और उनके हल खोजता है । और इससे समाज को प्रभावित करता है कभी-कभी एक व्यक्ति पूरे समाज को बदल देता है । शिक्षा के अभाव में यह सब संभव नहीं । सामाजिक क्रांति के लिए शिक्षा मूलभूत आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि समाज और शिक्षा अन्योन्याश्रित होते हैं । जैसे किसी समाज की भौगोलिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनीतिक और आर्थिक स्थिति होती है वैसी ही उसकी शिक्षा होती है। इतना ही नहीं अपितु किसी समाज में सामाजिक परिवर्तनों के साथ साथ उसकी शिक्षा में भी परिवर्तन होते चलते हैं । और जिस समाज में जैसे शिक्षा की व्यवस्था की जाती है , वैसी ही उस समाज की भौगोलिक स्थिति पर पकड़ और उसके स्वरूप एवं उसकी सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनीतिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन होने लगता है । समाजिक परिवर्तन लाने में शिक्षा आधारभूत भूमिका अदा करती है।
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