शिवाजी को नहीं कैद कर पाई ओरंगजेब सलांखे
17 अगस्त 1666। “शिवाजी गायब! उसे धरती लील गई या आकाश?” औरंगजेब ने अपना माथा पीट लिया, “एक महा भयंकर वैरी अपने पैरों चलकर आया, पिंजरे में फंसा और गायब हो गया।” 20 नवम्बर 1666। शिवाजी रायगढ़ पहुंचे। औरंगजेब को पत्र लिखा, उसकी अनुमति के बिना आगरा से चले आने पर खेद व्यक्त किया और मुगल साम्राज्य के प्रति अपनी वफादारी के सबूत के तौर पर अपने बेटे संभाजी को पंचहजारी मनसब देने की प्रार्थना की। शिवाजी के आगरा से निकलते ही ईरान के हमले का खतरा मंडराने लगा। औरंगजेब दिसम्बर तक उस में उलझा रहा। मार्च 1667 में यूसुफज़ई ने बगावत कर दी।
मई 1667 में शहजादा मुअज्जम सूबेदार के रूप में औरंगाबाद पहुंचा। साथ में महाराजा जसवंत सिंह। मिर्जा राजा जयसिंह को दिल्ली के रास्ते में उनके अपने बेटे कीरतसिंह ने औरंगजेब की मनसबदारी के लालच में 28 अगस्त को जहर दे दिया।
VEER SHIVAJI
पत्र का उत्तर न पाकर शिवाजी ने जसवंत सिंह से सम्पर्क साधा। जसवंत सिंह उनके नाम से खौफ खाते थे। शाहजादा दिल्ली का तख्त हथियाने की मुहिम में उनकी सहायता को अहम समझ रहा था। दोनों ने उन की जोरदार सिफारिश की। शिवाजी को राजा की उपाधि मिली और संभाजी को मनसबदारी। संभाजी ने 4 नवम्बर 1667 को शाहजादे से भेंट की और अगले दिन राजगढ़ लौट आये। सरसेनापति प्रताप राव पांच हजार मराठाओं और निराजी पंत के साथ 5 अगस्त 1668 को औरंगाबाद पहुंच गए। उन सब का खर्च मुगल राजकोष के सिर। संभाजी को 15 लाख होण (उस समय प्रचलित मुद्रा) की आय वाली जागीरें मिलीं।
मुगलों के साथ ऐसी व्यवस्था की खबर पाकर बीजापुर ने शिवाजी की ओर से अनाक्रमण संधि की पहल की, जिसकी एवज में शिवाजी को साढ़े तीन लाख होण प्राप्त हुए। भागानगर का कुतुबशाह भी शिवाजी को चौथ भेजने लगा।
शिवाजी, शाहजादे और जसवंत के बीच शांति!!! जरूर दाल में कुछ काला है। अक्तूबर 1667 में दिलेर खां औरंगाबाद पहुंचा। शहजादे ने उसे अपने ऊपर जासूस समझा और दिलेर खां ने उसको उपयुक्त सम्मान नहीं दिया।
VEER SHIVAJI
औरंगजेब शिवाजी या कम से कम संभाजी को पुन: गिरफ्तार करने का स्वप्न देखने लगा। उसने मराठा टुकड़ी को नि:शस्त्र कर गिरफ्तार करने का आदेश दिया। शहजादे को इसकी भनक लगी तो उसने मराठों को तुरन्त चम्पत कर दिया। औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाते समय एक लाख रुपयों की जो राशि दी थी उसकी वसूली के नाम पर संभाजी की जागीर का कुछ हिस्सा जब्त कर लिया।
अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने हिन्दू पूजास्थलों को गिराने का आदेश दिया। उसने स्वयं 17 अगस्त से 15 सितम्बर के बीच वाराणसी में तबाही मचाई और मन्दिरों को तोड़ा, जिनमें विश्वनाथ मंदिर भी शामिल था। मुसलमानों ने सनातन धर्म से द्वेष के आवेश में इसका ध्वंस किया। इसकी पुनस्स्थापना महाराष्ट्र के पैठण से वाराणसी जाकर बसे रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट द्वारा कराई गई।
शिवाजी ने शान्तिकाल (1667-1669) के दौरान सदियों से चली आ रही जागीरदारी को समाप्त किया, पैदल सेना और नौकादल को सुदृढ़ किया। औरंगजेब की ओर से संधि तोड़ने को उन्होंने मां भवानी के आशीर्वाद के रूप में लिया। अब वह औरंगजेब के विरुद्ध संघर्ष छेड़ने को स्वतन्त्र थे। उन्होंने सबसे पहले उन किलों को वापस लेने का निश्चय किया जिन्हें 1665 की संधि के अन्तर्गत जयसिंह को देना पड़ा था। 4 फरवरी 1670 को तानाजी मालुसरे ने कोंढाणा (सिंहगढ़) किला उसके रक्षक राजपूत वीर उदयभान के साथ अपनी भी आहुति देकर स्वराज्य को समर्पित किया।
VEER SHIVAJI
24 फरवरी 1670 को सोयरा बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। जीजाबाई ने शिवाजी से कहा, “यह बच्चा उलटा पैदा हुआ है”। शिवाजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह बालक अवश्य ही दिल्ली की बादशाहत का तख्ता उलट देगा और अपने औंधे राज्य को सीधा करेगा।”
8 मार्च 1670 को नीलोपंत ने किलेदार रजी-उद्-दीन खाँ को बन्दी बना कर पुरन्दर किले पर भगवा फहराया। उसी वर्ष जून के अंत तक शिवाजी ने कल्याण (15 मार्च), लोहगढ़ (13 मई), माहुली (16 जून), कर्णाला (22 जून) और रोहिडा (24 जून) किलों को भी जीत लिया। शिवाजी को लगा कि अब देर-सबेर उन्हें मुगल शक्ति से टकराना होगा। उन्होंने अपनी नई राजधानी के लिए प्राकृतिक रूप से अधिक सुरक्षित रायगढ़ किले का चयन किया, जिसे उन्होंने सन् 1656 में मोरे चन्द्रकान्त के निधन के उपरान्त प्राप्त किया था।
VEER SHIVAJI
नए किले के निर्माण के लिए शिवाजी ने 4 और 5 अक्तूबर को सूरत के अतिधनाढ्य व्यापारियों से स्वराज्य के लिए उनका योगदान ग्रहण किया और वहां से लौटते समय वानी ढिंढोरी की लड़ाई में नामी मुगल सिपहसालारों इखलास खां और दाऊद खां को परास्त किया। 25 अक्तूबर को उनके पेशवा मोरोपंत पिंगले ने नासिक के निकट त्र्यम्बक का किला जीत लिया। औंध, पट्टा, रावला और जावला भी शीघ्र ही स्वराज्य के अंग बन गए। बरार और खानदेश में उत्पात मचाने के बाद, 5 जनवरी 1672 को उन्होंने साल्हेर का किला जीत लिया, जिससे उनका दबदबा बहुत बढ़ गया। राम दास पांगेरा ने दिलेर खां के कानेरा किले को लेने के प्रयास को निष्फल कर दिया। शिवाजी और मुगलों के और भी छोटे-बड़े युद्ध चलते रहे।
सन् 1672 में 21 अप्रैल को गोलकुण्डा के अब्दुल्ला कुतुबशाह का और 24 नवम्बर को बीजापुर के 35 वर्षीय अली आदिलशाह का निधन हो गया। स्थिति का लाभ उठाते हुए शिवाजी ने बीजापुर के कई इलाकों पर अधिकार कर लिया जिनमें पन्हाला का किला सबसे महत्वपूर्ण था। अब शिवाजी कर्मणा दक्षिण भारत के एकछत्र सम्राट बन चुके थे। औरंगजेब को 7 अप्रैल 1674 को पठानों के विद्रोह का दमन करने के लिए पंजाब के हसन अब्दाल की ओर कूच करना पड़ा जहां वह 25 जून को पहुंचा।
VEER SHIVAJI
गागा भट्ट रायगढ़ पधारे। “मुसलमान बादशाह राजसिंहासन पर बैठते हैं तो उनके सिर पर छत्र होता है। शिवाजी ने चार बादशाहतों पर विजय पाई है और उनके पास 75,000 घोड़े, सेना और किले आदि हैं। यवन हिन्दुओं के पूजा-स्थलों को नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं। अब भयग्रस्त हिन्दुओं को यह आश्वासन मिलना चाहिए कि उनका रक्षक एक छत्रपति राजा विद्यमान है।” गागा भट्ट के इस तर्क से सबको बड़ी प्रसन्नता हुई। राज्याभिषेक की तैयारियां प्रारम्भ हो गर्इं। ब्राह्मणों ने कहा, शिवाजी क्षत्रिय नहीं हैं। गागा भट्ट ने शिवाजी की वंशावली खोजी और उन्हें उत्तर भारत के सिसोदिया वंश का क्षत्रिय सिद्ध किया तथा “शिवराज्याभिषेक प्रयोग” नामक ग्रन्थ की रचना की। राज्याभिषेक से पूर्व शिवाजी ने विभिन्न क्षेत्रों में जाकर देवताओं के दर्शन किये।
29 मई को शिवाजी का उपनयन संस्कार, तुला दान व तुला पुरुषदान संपन्न हुए। 30 मई को उनका अपनी रानियों से एक बार पुन: विवाह हुआ। 1 जून को गृहयज्ञ, नक्षत्र होम हुआ। 3 जून को उत्तरपूजन के बाद आचार्यों को प्रतिमाएं प्रदान की गर्इं। 4 जून को रात्रि के समय निऋर्तियाग हुआ।
VEER SHIVAJI
सिंहासनारोहण का मुहूर्त ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी आनन्द संवत्सर शनिवार दिनांक 6 जून को प्रात:काल के प्रथम प्रहर में था। धार्मिक विधि 5 जून की सायंकाल से प्रारम्भ हो गई। अभिषेक विधि के लिए युवराज संभाजी, रानी सोयराबाई और शिवाजी महाराज अभिषेकशाला में पधारे। भांति-भांति के कुंभों में जल लेकर महाराज का मंत्रघोष के साथ अभिषेक किया गया। इस अभिषेक में सभी जाति एवं वर्ण के लोगों ने भाग लिया। मध्य रात्रि बीत जाने के बाद अभिषेक समाप्त हुआ।
युवराज संभाजी, रानी सोयराबाई और शिवाजी महाराज राजसभागृह में आए। मंद गति से पग बढ़ाते हुए शिवाजी महाराज सिंहासन के चबूतरे पर चढ़े। गागा भट्ट ने उन्हें सुवर्ण राजदण्ड दिया। महाराज ने उसे माथे से लगाया और अतीव विनम्रतापूर्वक सिंहासन पर आसीन हुए। गागा भट्ट ने मंत्रोच्चारण करते हुए बहुमूल्य रत्नों से जटित, मोती के झालरों वाला छत्र सिंहासन पर लगाया और अगले ही क्षण, पूर्व दिशा में सूर्य उदित होने के साथ-साथ घोषणा सुनाई दी- “क्षत्रिय कुलवंत सिंहासनाधीश्वर गोब्राह्मण प्रतिपालक हिंदू पद पादशाह श्रीमंत श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की..जयऽऽ।”
VEER SHIVAJI
यह भी जरूर पढ़ें – Top 15 quotes by Swami Vivekanand in hindi
दोस्तों हम पूरी मेहनत करते हैं आप तक अच्छा कंटेंट लाने की | आप हमे बस सपोर्ट करते रहे और हो सके तो हमारे फेसबुक पेज को like करें ताकि आपको और ज्ञानवर्धक चीज़ें मिल सकें |
अगर आपको ये पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसको ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाएं |
व्हाट्सप्प और फेसबुक के माध्यम से शेयर करें |
और हमारा एंड्राइड एप्प भी डाउनलोड जरूर करें
कृपया अपने सुझावों को लिखिए हम आपके मार्गदर्शन के अभिलाषी है |