संस्कार भारती । Sanskaar bharti
सा कला या विमुक्तये = ” कला वह है जो बुराइएयों के बंधन काटकर मुक्ति प्रदान करती है।
संस्कार भारती ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , का एक अंग या सहयोगी संस्था है। इसकी स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने के उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस ,हरिभाऊ वाकणकर ,नाना जी देशमुख ,माधव राव देवेल और योगेंदर जी जैसे मनीषियों का चिंतन तथा अथक परिश्रम था। १९५४ (1954 ) से संस्कार भारती की कल्पना विकसित होती गयी और १९८९ (1989) में लखनऊ में इसकी बिधिवत स्थापना हुई। आज संस्कार भारती की १२०० से अधिक इकाईयां कार्य कर रही है।
समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने ,विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाओं को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। १९९० से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक में आयोजित किये जाते है जिनमे -संगीत ,नाटक ,चित्रकला,काव्य ,और नृत्य जैसी विधाएँ देशभर में स्थापित नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
कुछ लोग संस्कार भारती के लोगों को “गवईए ” की संज्ञा देते है वो शायद यह भुल जाते है की किसी भी व्यक्ति के आदर्श चरित्र का निर्माण तभी संभव हो सकता है , जब उसके व्यक्तित्व में संस्कार का भरा गया हो। वो संस्कार घर ,विद्यालय और समाज से मिलता है। वह संस्कार हर व्यक्ति को मिले ऐसा प्रयास संस्कार भारती करती है। तो गवैया बोलकर वह अपना ही उपहास करते है।
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अमेरिका के शिकागो शहर में ” स्वामी विवेकानंद जी ” ने जो आदर्श प्रस्तुत किया वो संस्कार ही थे। आज आप जितने भी आदर्श व्यक्तित्व का उदहारण प्रस्तुत करते हैं वो संस्कार का की परिचय देती है।एक व्यक्ति तभी सच्चा देशभक्त बन सकता है जब उसमे संस्कार कूट – कूट कर भरा हो। तो मेरी राय में संस्कार भारती को गाने – बजाने वाला बोलना लज्जा का विषय है।
भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गई प्रतियोगिता ,कृष्ण रूप – सज्जा प्रतियोगिता ,राष्ट्रभावना जगाना , नुक्क्ड़ नाटक ,नृत्य ,रंगोली ,मेहँदी ,चित्रकला ,काव्य – यात्रा ,स्थान – स्थान पर राष्ट्रीय कवि – सम्मलेन आदि बहुविध कार्यक्रम का आयोजन संस्कार भारती प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा मनाये जाने वाले छः उत्सवों को भी मानती है।
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Sanaskar bharti is doing tremendous work because hum apni sankriti ko bhul rahe hai aur sanskar bharti hume humari sanskriti ko yaad dilane ka aacha kaam kar raha hai
मैं तरूण बंसल संस्था का सदस्य बनना चाहता हूं। मेरा जीवन व्यर्थ ना जाये, देश के लिए, सामाज के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जय हिन्द।
किसी भी देश और समाज की सभ्यत संस्कृति और कला का सम्मिलित स्वरूप उस देश और समाज के मानव के जीवन शैली अचार-विचार मे परिलक्षित होता है। संस्कार इन सभी का सम्यक है संस्कार विहीन मनुष्य पशु के समान है । संस्कार मानव मे सभ्यता, मानवता, सौहार्द , विनम्रता और राष्ट्र प्रेम का भाव जाग्रत करती है। कला संस्कारों का श्रृंगार कर उसे रूपायित करती है।
शिवानी
हिंदुस्तान की कला संस्कृति साहित्य नृत्य और यहां की लोक परंपराएं यहां का गौरवशाली इतिहास साक्षी रहा है की हिंदुस्तान की परंपराएं लोक परंपराएं कला संस्कृति हम सबको विश्व के एक सुंदर स्वरूप में पेश करती है हम सब बेहद भाग्यशाली हैं जो हिंदुस्तान जैसे देश में रहते हैं यहां की कला संस्कार सभ्यताएं बोलियां लोक परंपराएं गुरु शिष्य परंपरा विश्व पटल पर सबसे अलग और सुंदर बनाती हैं