अष्टांगयोग योग का स्वस्थ्य मस्तिष्क आदि में लाभ। yog in hindi ashtangyog

योग केवल  आसन मात्र नहीं है , यह तो ईश्वर प्राप्ति की एक यात्रा है। योग वह मार्ग है जिसपर चलकर मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति कर सकता है जिसके 8 चरण होते हैं। उसमें से एक चरण आसन भी है इस यात्रा के आठ अंगों का जोड़  ही योग है। महर्षि पतंजलि ने अपने अष्टांग योग में इस यात्रा का विस्तार से वर्णन किया है। महर्षि पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है , आज वर्तमान में योग गुरु बाबा रामदेव जी योग का विस्तार कर रहे है पतंजलि नाम की संस्था द्वारा।

अष्टांगयोग योग का स्वस्थ्य मस्तिष्क आदि में लाभ

योग के आठ अंगों का संक्षेप वर्णन इस प्रकार है

यम –

अहिंसा  ,  सत्य  , अस्तेय  , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह  जीवन में इन 5 नियमों का पालन करना ही योग है। इन पांचों संयम की आज की दुनिया में अत्यधिक आवश्यकता है। इनकी उपेक्षा के कारण ही समाज में हिंसा झूठ चोरी दुराचार और लूट-खसोट बढ़ रहे हैं आपस में अविश्वास का भव पैदा हो रहा है। लोग लोभ लालच में अपनइ पराये में भेद नहीं कर पा  रहे है।हर धर्म में सत्य , अहिंसा , सौहाद्र आदि के नियम बताये गये है किन्तु न नियम पालन होता है न धर्म का पालन।

नियम

शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय और ईश्वर शरणागति यह – पांच नियम है।

” शौच “  का अर्थ है बाह्य और आंतरिक शुद्धि। जल मिट्टी आदि से बाह्य शुद्धि और जब तक पवित्र विचारों से आंतरिक शुद्धि होती है। ” संतोष “ नियम का पालन करने से जगत में व्याप्त अशांति के संबंध में सहायता मिल सकती है। ” तप “ अर्थात सत्कर्म के लिए कष्ट सहन करने। ” स्वाध्याय “ अर्थात सदग्रंथों का अध्ययन करने तथा ईश्वर के प्रति समर्पण हो जाने से ही अच्छे मानव का निर्माण हो सकता है।

आसन

परमात्मा में मन लगाने के लिए निश्चल भाव से सुखपूर्वक बैठने को आसन कहते हैं।

महर्षि पतंजलि के अनुसार यम नियम की सिद्धि होने पर ही आसन की स्थिति है। बिना यम नियम के आसन की साधना व्यर्थ है। यम नियम रहित आसन का अभ्यास शारीरिक व्यायाम मात्र ही  है।

प्रणायाम

प्राणायाम का अर्थ प्राण का व्यायाम है , जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ एवं हष्ट – पुष्ट रखने के लिए व्यायाम किया जाता है , उसी प्रकार स्वास्थ्य प्रश्वासन क्रिया द्वारा हृदय को हष्ट – पुष्ट एवं स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम किया जाता है। इससे आंतरिक शुद्धि होती है अतः प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान से पहले आचमन और प्रणायाम विधान है।

इसके लाभ बहुत से होते हैं

प्राणायाम को नियमित रूप से करने पर शरीर हमेशा मजबूत रहता है और कभी दुर्बलता का एहसास नहीं होता। जो व्यक्ति इसे नियमित रूप से करता है वह जल्दी बीमार भी नहीं होता और हमेशा ऊर्जावान रहता है एवं कोई भी कार्य करने के लिए तत्पर रहता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में सफलता भी बहुत मिलती है इसलिए योग का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अच्छे से समझाया गया है।

प्रत्याहार

यम नियम आसन और प्राणायाम से तन – मन और प्राण की शुद्धि तो हो जाती है। परंतु मन की चंचलता नहीं रुकती जिससे हमें मन नहीं लग पाता।  मन की वृत्तियों को वश में करने हेतु योग में लगना ही प्रत्याहार है। उक्त वृत्तियों को सांसारिक विषयों से वापस लाकर अपने वश में करते हुए चित को ध्येय में लगाने से ही योग सिद्ध होता है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए वस्तुतः न केवल मन को वश में करना आवश्यक है वरन् इंद्रियों को वश में करना भी आवश्यक है।

धारणा – ध्यान – समाधि

यम नियम , आसन , प्राणायाम तथा प्रत्याहार यह पांच योग के बहिरंग साधन है। इनके सिद्ध होने पर अंतरंग साधनों का अभ्यास कराया जाता है।  अंतरंग साधनों में पहला साधन है – धारणा , दूसरा – ध्यान और तीसरा – समाधि। शरीर के बाहर या भीतर कहीं भी किसी एक स्थान में चित को ठहराना धारणा है। जिसने वस्तुओं में चित को लगाया जाए उसी में चित्त की वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। योग का अंतिम साधन समाधि है।  इससे मन की पूर्ण एकाग्रता होती है।

ध्याता ध्यान और ध्येय यह तीनों इसमें एक हो जाते हैं।

इन तीनों साधनों का किसी एक ध्येय  पदार्थ में होना संयम कहलाता है। संयम की सिद्धि होने पर योगी को बुद्धि का प्रकाश प्राप्त हो जाता है।

इस प्रकार योग प्रशिक्षण का पूर्ण लाभ तभी उठाया जा सकता है जब उसके आठों  –

  • अंग ,
  • यम ,
  • नियम ,
  • आसन ,
  • प्राणायाम ,
  • प्रत्याहार ,
  • धारणा ,
  • ध्यान और
  • समाधि को क्रमानुसार सिद्ध किया जाए

 

निष्कर्ष

हम सब जानते हैं कि योग करने के कितने सारे लाभ होते हैं और जब कोई भी व्यक्ति इसे नियमित रूप से करता है तो वह चरम सीमा का सुख अनुभव करता है। हमें हिंदू धर्म में बताया जाता है कि योग सुबह और शाम दोनों समय करना चाहिए और इसका पालन हमें एक धर्म की भांति करना चाहिए, ऐसा इसलिए बोला गया है क्योंकि जब आप शरीर से स्वस्थ रहते हैं और अपना मस्तिष्क स्वस्थ रखते हैं तब ही आप अपने परिवार को स्वस्थ रख सकते हैं और अपने समाज को सुदृढ़ बना सकते हैं। जो व्यक्ति अपने समाज के लिए हितकारी होगा वह अपने देश का भी जरूर गौरव ऊंचा करेगा और इसी भांति अगर हम और आगे बढ़ कर देखें तो ऐसा व्यक्ति ही समस्त विश्व को एक सही मार्ग पर ले जाने का दम रखता है।

उदाहरण के लिए मैं आपको बताना चाहूंगा स्वामी विवेकानंद का नाम बहुत उचित रहेगा जिन्होंने बहुत कम समय में ही अपने जीवन काल में बहुत उन्नति देखी और पूरे विश्व पर अपना परचम लहराया और लोगों ने उनके बुद्धिमता का लोहा माना। अगर आप अपने परिवार में बड़े हैं तो बच्चों को जरूर शिक्षा दीजिए योग की और उन्हें बताइए इस प्रकार से वह अपने जीवन का कल्याण कर सकते हैं।

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