क़ुतुब मीनार का इतिहास कब और किसने बनवाया पूरी जानकारी

क़ुतुब मीनार भारत की वास्तु निर्माण कला की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों में कुतुबमीनार भी एक है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह भारत के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है।

72.5 मीटर ऊंची यह गगनचुंबी इमारत परिष्कृत रूप से गोल लाल पत्थरों एवं संगमरमर से निर्मित है।

धरातल पर इसका परिमाप 13.54 मीटर है जो ऊंचाई पर जाकर 2.75  मीटर रह जाता है।

इस भव्य मीनार का निर्माण कार्य 12 वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था।

जब कुतुबुद्दीन ने कुतुब मस्जिद योजना का विचार किया था। मगर कुत्तुबुद्दीन  की मृत्यु के पश्चात उसके दामाद और उत्तराधिकारी ‘ इल्तुतमिश ‘ ने इसके अधूरे निर्माण कार्य को पूरा करवाया था। भारत की आज तक की पत्थरों से बनी इस सबसे ऊंची इमारत का उपयोग संभवता प्रारंभ में मुअजिन नमाज की अजान देने के लिए किया करता था।

‘ कुतुब ‘ शब्द का अर्थ है ‘ स्तंभ ‘ जो न्याय और संप्रभुता का प्रतीक है।

क़ुतुब मीनार

प्रारंभ में कुतुब मीनार की 4 मंजिले थी किंतु , आज इसकी पांच मंजिलें हैं। जिनमें पहले तीन लाल पत्थर की है तथा दो लाल पत्थर और संगमरमर से बनी है। बाहर की तरफ से सजावटी छज्जों से इसकी हर मंजिल अलग दिखाई देती है। इसी प्रकार इसकी प्रथम तीन मंजिलें भिन्न – भिन्न आकार – प्रकार की है। आखिरी मंजिल जो फिरोजशाह के काल में क्षतिग्रस्त हो गई थी , उसे उसने 2 मंजिलों चौथी एवं पांचवी में विभक्त कर संगमरमर और लाल पत्थर से बनवाया था।

  • स्थित  – महरौली  पश्चिमी दिल्ली (भारत )
  • स्थापत्य शैली   – मुगल व भारतीय शैली का सम्मिश्रण .
  • विरासत  – विश्व विरासत यूनेस्को ( वैश्विक धरोहर )
  • कैसे पहुंचे   – नजदीकी मेट्रो स्टेशन  ‘ कुतुब मीनार ‘  दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों से बस सेवा , ऑटो टैक्सी आदि के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

 

कुतुब मीनार का संछेप सार

जैसा कि हम सब जानते हैं कि मीर कासिम के आक्रमण से भारत में विदेशी लुटेरों का आना शुरू हो गया था। उन्ही लुटेरों में से एक था मोहम्मद गौरी जिसने पृथ्वीराज को हराकर दिल्ली को दोनों हाथों से लूटा और वह सोमनाथ मंदिर तक पहुंच गया। मोहम्मद गौरी की मृत्यु पोलो खेल खेलते समय घोड़े से गिरकर लाहौर में मौत हो गई।

मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक था उसी ने विचार किया कि क़ुतुब मीनार बनाया जाए।

किंतु कुतुबुद्दीन ने  सिर्फ एक ही मंजिल का निर्माण करवाया था की उसकी मृत्यु हो गई।

कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात उसके दमाद इल्तुतमिश ने अधूरे काम को पूरा किया जो आज विश्व का सबसे ऊंचा टावर के रूप में प्रसिद्ध है।

मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन के बयान से स्पष्ट होता है कि क़ुतुब मीनार की आधार हिंदू मंदिरों के विध्वंस पर टिकी है। कुत्तुब्बुद्दीन ने  मीनार की दीवारों पर लिखवाया था कि उसने कुतुब परिसर का निर्माण 27 मंदिरों को गिराकर करवाया था , और उसी के मलबे से मीनार का निर्माण किया यह माना जाता है कि उस समय मीनार का प्रयोग नमाज के लिए किया जाता था।

  • ‘ कुतुब  ‘ शब्द का अर्थ है  – ‘ स्तंभ  ‘ जो न्याय संप्रभुता का प्रतीक है। 

कुतुब मीनार महरौली में स्थित है।

ऐसा माना जाता है कि यह स्थान जहां कुतुब परिसर है , वह सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न रहे वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था। जिसका समय के साथ नाम बदलकर महरौली हो गया। वराहमिहिर एक विख्यात खगोलशास्त्री थे उन्होंने यहां खगोल विद्या , व  नक्षत्रों के अध्ययन के लिए स्तंभों व 27 मंदिरों का निर्माण करवाया था।

उसी स्तंभ व 27 मंदिर को तोड़कर कुतुब मीनार का निर्माण किया गया।

स्तंभ में उकेरे गए देवी-देवताओं की मूर्तियों  , संस्कृत में लिखे गए श्लोकों को क्षति पहुंचाई गई और दीवारों व वीथिकाओं  पर हिंदू देवी देवताओं के अवशेषों को मिटाया गया। अथवा प्रसिद्ध विष्णु मंदिर को भी नष्ट किया गया जिसका अवशेष लौह स्तंभ  , कुतुब मीनार के ठीक सामने 2000 वर्ष से गवाही देता है।

जिस पर ब्राह्मी व संस्कृत में हिंदू मंदिर व हिंदू परिसर होने का साक्ष्य उपलब्ध है।

कुतुबमीनार के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह बारहमिहिर द्वारा कराए गएनिर्माण में से ही एक है , क्योंकि नमाज के लिए ऐसे मीनार का निर्माण नहीं करवाया जा सकता , क्योंकि आवाज ऊपर से नीचे की ओर इतनी दूर तक नहीं आ सकती।

ध्यान देने वाली बात यह है कि 

  • उस समय यांत्रिक उपकरण व ध्वनि विस्तारक यंत्र नहीं हुआ करते थे। 
  •  यह मीनार मंदिर परिसर का ही एक अंग था जो 7 मंजिल का हुआ करता था।
  • इस स्तंभ के सातवें मंजिल पर ब्रह्मा जी की मूर्ति थी जो हाथों में वेद को धारण किए हुए थी।
  • विष्णु जी की मूर्ति छठी मंजिल पर स्थित थी।
  • उन दोनों मंजिलों को नष्ट कर दिया गया।
  • अब केवल 5 मंजिल ही बची है
  • कदाचित उन हिंदू अवशेषों को नष्ट करने के लिए ही 2 मंजिल को गिराया गया।

आपको स्मरण रहना चाहिए कि

यह मीनार विष्णु ध्वज , विष्णु स्तंभ या ध्रुव स्तंभ के नाम से प्रसिद्ध था।

इसके ठीक सामने लौह स्तंभ गरुड़ध्वज के रूप में शुद्ध लोहे को ढालकर बनाया गया था जिसपर ब्राह्मी लिपि अथवा संस्कृत भाषा में लिखा गया है , जो इसका एक प्रमाण है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। 2000 वर्ष से लौह स्तंभ अब भी जंग रहित है और शायद इसी कारण इस्लामी शासक चाहते हुए भी उसे मिटा न सके हो। सम्राट चंद्रगुप्त ने राजा चंद्र की याद में इसका निर्माण करवाया था। इस लोहे की शुद्धता व जंग रहित होने के कारण आज भी विज्ञान को चुनौती देता है स्मरण रहे की लौह स्तंभ की आयु लगभग 2000  वर्ष है।

 

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5 thoughts on “क़ुतुब मीनार का इतिहास कब और किसने बनवाया पूरी जानकारी”

    • It is our pleasure to provide you with information about the same. We have also provided information about the other important buildings situated in Delhi.

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