शरद पूर्णिमा पर्व का महत्व sharad poornima ( kojaagri poornima )

शरद पूर्णिमा की संपूर्ण जानकारी आज आपको प्राप्त होगी यह पर | हमने यह लगभग शरद पूर्णिमा से सम्बंधित आवश्यक सामग्री यह लिखी है |

शरद पूर्णिमा पर्व का महत्व

सनातन संस्कृति में आश्विन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्त्व भी है।

ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शंकर एवं मां पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगाता है।

भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रासलीला की थी तथा मथुरा , वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास लीलाओं का आयोजन किया जाता है।

लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं , तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था।

इस प्रक्रिया में उसे पुनर योवन शक्ति प्राप्त होती थी।

चांदनी रात में (10:00 से मध्य रात्रि 12:00 बजे के बीच )कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोम चक्र , नक्षत्रीय चक्र और आसींद के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से उर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निगम होता है।

शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा पर्व का महत्व

मान्यताएं एवं वैज्ञानिक कारण

पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है , जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछार करती है। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं।

कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।

एक अध्ययन के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होते हैं , यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है, चावल में स्टार्ट होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है।

इसी कारण ऋषि मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते है, चांदी पात्र की अनुपस्थिति में मिट्टी की हांडी में खीर बनाना चाहिए। इस मिट्टी में हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10:00 से 12:00 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।

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शरद पूर्णिमा के दिन पूजा का विधान

शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर भोग लगाया जाता है जिससे आयु बढ़ती है , वह चेहरे पर कांति आती है व शरीर स्वस्थ रहता है।  शरद पूर्णिमा की मनमोहक सुनहरी रात में वेदों द्वारा जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है।

माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को तैयार की गई औषधि अचूक रामबाण होती है। चंद्रमा की रात में खुले मुंह के बर्तन में खीर पकाई जाती है, जिसमें चंद्र किरणों का समावेश होने से अमृत रूपी खीर अनेक रोगों के लिए दवा का काम करती है। विशेषकर स्वास्थ्य दमा के रोगियों को पीपल वृक्ष की छाल दूध में मिलाकर इसे धीमी आग पर किरणों के प्रकाश में तैयार कर खीर खिलाई जाती है। जिससे दमा रोगी लाभान्वित होते हैं।

शरद पूर्णिमा

चंद्रमा की किरणों में खीर तैयार करें

इसी प्रकार वैद्य लोग विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए इस रात चंद्र किरणों में खीर तैयार करते हैं। इस दिन व्रत रखने वाले लोग चंद्र किरणों में पकाई  गई खीर को अगले रोज प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं व अपना व्रत खोलते हैं।

सौंदर्य व छटा मन हर्षित करने वाली  शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य वर छटा मन को हर्षित करने वाली होती है।

नाना प्रकार के पुष्पों की सुगंध इस रात में बढ़ जाती है , जो मन को लुभाती है वही तन को भी मुग्ध  करती है।

यह पर्व स्वास्थ्य-सौंदर्य वह उल्लास बढ़ाने वाला माना गया है। इससे रोगी को स्वास्थ्य और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है।

रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहते हैं। इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कप के प्रकोप को जागरण से कम करना है। इस प्रकार खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दे आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त दोष व प्रकोप का काल माना जाता है, और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं।

मलेरिया में भी लाभदायक है यह औषधीय खीर

मलेरिया का असर पित्त बढ़ने के कारण अधिक होता है। शरद पूर्णिमा को देसी घी के दूध में, दशमुल क्वाथ, सौंठ, कालीमिर्च, वासा,अर्जुन की छाल, चूर्ण का लिया पत्र, चूर्ण वंशलोचन, बड़ी इलायची, पीपली इन सब को आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकाएं और खीर बना लें फिर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दे अब इस खीर को तांबे के बर्तन में रात भर पूर्णिमा की चांदनी में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें, और अपने छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ देकर अब इस खेल को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रात काल ब्रह्म मुहूर्त (4:00 से 6:00 बजे प्रातः) सेवन कराएं।

Sharad Purnima शरद पूर्णिमा एक नजर में

शरद पूर्णिमा जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा भी  कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।  हिंदी धर्म मैं इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं इस दिन श्रीकृष्ण ने महा रास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।

शरद पूर्णिमा की कथा

एक साहूकार के दो पुत्रियां थी दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परंतु बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी।

परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री के संतान पैदा होते ही मर जाती थी, उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम पूर्णिमा का आधा अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती थी।

पूर्णिमा का पूरा विधिपूर्वक व्रत करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया। उसका लड़का हुआ परंतु शीघ्र ही मर गया उस ने लड़के को पीढ़े पर लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया फिर बड़ी बहन को बुला कर लाए और बैठने के लिए वही पीड़ा दिया।

पर बड़ी बहन जब पीढ़े  पर बैठने लगी तो उसका घागरा बच्चे को छू गया बच्चा घागरा छूते ही रोने लगा।

बड़ी बहन बोली तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली यह तो पहले ही मरा हुआ था, तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य  से ही यह जीवित हुआ है।

उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

विधान

इस दिन मनुष्य विधि पूर्वक स्नान करके उपवास रखें और जितेंद्रीय भाव से रहे धनवान व्यक्ति तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढकी हुई स्वर्णमई लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर के भिन्न-भिन्न उपचारों से उसकी पूजा करें। तदंतर साईं काल में चंद्रोदय होने पर सोने चांदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए दीपक जलाएं।

उसके बाद भी मिश्रित खीर तैयार करें और बहुत से पात्रों में डालकर उसे चंद्रमा की चांदनी में रख दें। जब एक पहर 3 घंटे बीत जाए तब लक्ष्मी जी को सारी खीर अर्पण करें तत्पश्चात भक्ति पूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रुपी खीर का भोजन कराएं और उसके साथ ही मांगलिक  गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें।

तदंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मी जी की वह स्वर्णमई प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें।

इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर कमलों में वह और अभय के लिए संसार में विचरती हैं, और मन ही मन संकल्प करती है कि इस समय भूतल पर कौन जग रहा है जाकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूंगी।

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है इससे प्रसन्न हुई मां लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं , और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

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निष्कर्ष –

शरद पूर्णिमा का हिंदी तथा हिंदू मान्यता में विशेष महत्व है। इस दिन मान्यता के अनुसार अमृत वर्षा होती है इसलिए इस परंपरा को मानने वाले लोग खीर का प्रसाद बनाकर चांदनी रात में रखते हैं। इस खीर में जो गुणकारी तत्व मिलते हैं वह वैज्ञानिक द्वारा पुष्टि किए गए हैं।

यह विभिन्न प्रकार के रोगों में औषधि का कार्य करता है

इस दिन मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने 16000 गोपियों के साथ उनके मन की मनोकामना पूर्ण की थी और रास रचाया था।

अर्थात गोपी के रूप में उन्होंने अपने भक्तों को उनके भक्ति का लाभ प्रदान किया था।

अतः यह दिन निश्चित रूप से महान है इस दिन विधि विधान के साथ पूजा करने तथा प्रसाद स्वरूप खीर को ग्रहण करने पर गुणकारी लाभ प्राप्त होता है जो व्यक्ति के जीवन में संजीवनी का कार्य करता है।

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