शृंगार रस क्या होता है ? shringar ras kya hota hai full notes

यहां शृंगार रस किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं , उदाहरण आदि का इस लेख में विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे।  यह लेख विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर का अध्ययन करते हुए लिखा गया है। इस लेख को विद्यार्थी किसी भी स्तर के लिए अध्ययन कर सकते हैं। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी लाभदायक है।

शृंगार रस Shringar Ras

शृंगार रस ‘ रसों का राजा ‘ एवं महत्वपूर्ण प्रथम रस माना गया है। विद्वानों के मतानुसार श्रृंगार रस की उत्पत्ति ‘ श्रृंग + आर ‘ से हुई है। इसमें ‘श्रृंग’ का अर्थ है – काम की वृद्धि तथा ‘आर’ का अर्थ है प्राप्ति। अर्थात कामवासना की वृद्धि एवं प्राप्ति ही श्रृंगार है इसका स्थाई भाव ‘रति’ है।

श्रृंगार रस का स्थाई भाव दांपत्य रति (प्रेम) है। पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम की अभिव्यंजना ही श्रृंगार रस का विषय क्षेत्र होना चाहिए।  सुंदर नर-नारी इस प्रेम के परस्पर आलंबन आश्रय होते हैं जैसे दुष्यंत-शकुंतला।

सहृदय के हृदय में संस्कार रुप में या जन्मजात रूप में विद्यमान रति नामक स्थाई भाव अपने प्रतिकूल विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आशीर्वाद योग्य बन जाता है तब वह शृंगार रस में परिणत हो जाता है। श्रृंगार रस में परिणत हो जाता है श्रृंगार का आलंबन विभाव नायक-नायिका या प्रेमी प्रेमिका है। उद्दीपन विभाव नायक-नायिका की परस्पर चेष्टाएं उद्यान , लता कुंज आदि है।

अनुभाव – अनुराग पूर्वक स्पष्ट अवलोकन , आलिंगन , रोमांच , स्वेद आदि है। उग्रता , मरण और जुगुप्सा को छोड़कर अन्य सभी संचारी भाव श्रृंगार के अंतर्गत आते हैं।

शृंगार रस के सुखद एवं दुखद दोनों प्रकार की अनुभूतियां होती है इसी कारण इसके दो रूप १ संयोग श्रृंगार एवं २ वियोग श्रृंगार माने गए हैं।

रस का नाम  श्रृंगार रस 
स्थाई भाव  रति / प्रेम 
विभाव  नायक नायिका का आलम्बन , चांदनी रात ,वर्षा ऋतू आदि 
अनुभाव  रोमांच , अश्रु आदि 
संचारी भाव  स्वप्न , निद्रा ,गर्व ,हर्ष ,चपलता आदि 

१ संयोग शृंगार snyog shringar kise kahate hain

संयोग श्रृंगार के अंतर्गत नायक – नायिका के परस्पर मिलन प्रेमपूर्ण कार्यकलाप एवं सुखद अनुभूतियों का वर्णन होता है। जैसे–

1 ” कहत , नटत , रीझत , खीझत , मिलत , खिलत , लजियात।

भरै भौन में करत है , नैनन ही सों बाता। । “

प्रस्तुत दोहे में बिहारी कवि ने एक नायक – नायिका के प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का बड़ा कुशलतापूर्वक वर्णन किया है , अतः यहां संयोग श्रृंगार है।

2 मोरपखा सिर ऊपर राखिहौ , गूंज की माल गरे पहिंरौगी 

ओढ़ि पितंबर लै लकुरी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी। 

भावतो तोहि मेरौ रसखानि सो तेरे कहे सब स्वांग करौंगी 

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

मुरलीधर कृष्ण से आकर्षित गोपियों के मनोभावों को यहां सुंदर ढंग से चित्रित करते हुए संयोग श्रृंगार का बड़ा ही सुंदर प्रयोग किया गया है।

3 पाँयनि नूपुर मंजु बजैं , करि किंकिनि कई धुनि की मधुराई ,

साँवरे अंग लसै पर पीत , हिये हुलसै बनमाल सुहाई। ।

कृष्ण के छवि का वर्णन करते हुए उनके पैरों के घुंगरू और हाथों के कंगन की मधुर धुन तथा पीत वस्त्र का सुंदर चित्रण किया गया है जो संयोग श्रृंगार का उदाहरण है।

4 प्रेमी ढूंढत मे फिरौ , प्रेमी मिलै न कोय ,

प्रेमी को प्रेमी मिलै , सब विष अमृत होय।

यहां प्रेमी को ढूंढने से प्रेमी ना मिलने की बात कह रहा है और प्रेमी अगर प्रेम से ढूंढता है तो उसे अवश्य प्राप्त होता है। वह विष में भी अमृत प्राप्त कर लेता है।

5 बतरस लालच लाल की , मुरली धरी लुकाय

सौंह करे भौंहनी हंसै दैन कहै नटि जाय।

यह कृष्ण के भाव-भंगिमाओं का वर्णन किया गया है। किस प्रकार मुरली कृष्ण से कार्य कराती है , जैसे कोई नट करतब दिखा रहा हो ।

 

२ वियोग शृंगार viyog shringar kise kahte hain

इसे ‘ विप्रलंभ श्रृंगार ‘ भी कहा कहा जाता है। वियोग श्रृंगार वहां होता है जहां नायक-नायिका में परस्पर उत्कट प्रेम होने के बाद भी उनका मिलन नहीं हो पाता। इसके अंतर्गत विरह से व्यथित नायक-नायिका के मनोभावों को व्यक्त किया जाता है-

1 ” अति मलीन वृषभानु कुमारी

हरि ऋम जल संतर तनु भीजै ,

ता लालत न घुआवति सारी। “

यहां राधा के मनोभावों का चित्रण किया गया है , वह किस प्रकार कृष्ण के वियोग में अपने जीवन को जी रही है। यह हृदयहारी चित्रण है यहां वियोग श्रृंगार माना जाएगा।

2 “मधुबन तुम कत रहत हरे ,

विरह वियोग श्याम – सुंदर के

ठाड़े क्यों न जरें। “

प्रस्तुत अंश में सूरदास जी ने कृष्ण के वियोग में राधा के मनोभावों एवं दुख का वर्णन किया है , अतः यहां वियोग श्रृंगार है।

3 हमारे हरि हारिल की लकरी

मन ,क्रम ,बचन ,नंद-नंदन उर ,यह दृढ़ करि पकरी

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि कान्ह कान्ह जकरी

सुनत जोग लागते है ऐसो जो करुई ककरी।

यहां गोपियां कृष्ण को कड़वी ककड़ी तथा हारिल की लकड़ी कह रहे हैं क्योंकि वह प्रेम से दूर दूर भाग रहे हैं गोपियों को उनका दर्शन प्राप्त नहीं हो रहा है।

रस। प्रकार ,भेद ,उदहारण

4 मन की मन ही माँझ रही

कहिए जाइ कौन पै ऊधौ , नाही परत कही

अवधि अधार आस आवन की , तन मन बिथा सही

अब इन जोग संदेशनि , सुनि-सुनि बिरहिनी बिरह दही।

ऊधौ के माध्यम से गोपियां , राधा के दशा का वर्णन कर रही है। राधा के प्रेम का संदेशा श्री कृष्ण को जाकर सुनाने के लिए बोल रही है , जो बिरहा में दिन-रात जल रही है उसके इंतजार में मूर्ति बनी हुई है।

5 उज्जवल गाथा कैसे गाऊं मधुर चांदनी रातों की

अरे खिलखिला कर हंसते होने वाली उन बातों की

मिला कहां वह सुख जिसका , मैं स्वप्न देख कर जाग गया

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। ।

उपयुक्त पंक्ति में कवि अपने बीते हुए सुखद पूर्ण जनों को याद कर रहा है , जो अब उसके हाथ से छूट चुका है। वह स्वप्न बनकर रह गया है , वैसे कथाओं को लिखकर दुख का अनुभव कर रहा है , अतः यहां वियोग श्रृंगार है।

 6 निसिदिन बरसत नैन हमारे

सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।

प्रियतम के विरह के कारण आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा बहती रहती है , जैसे पावस ऋतु में वर्षा होती है। यहां राधा के अवस्था का चित्रण किया गया है , जो कृष्ण के विरह में दिन रात अश्रु बहा रही है।

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निष्कर्ष – 

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि श्रृंगार रस प्रेम का रस है। प्रेम संयोग पक्ष का हो या वियोग का यह श्रृंगार रस के अंतर्गत आता है। इस रस के अंतर्गत नायक-नायिका आदि का भेद किया जाता है। इसके दो पक्ष संयोग पक्ष तथा विपक्ष है , जिसमें नायक नायिका की अवस्था का चित्रण किया जाता है।

संयोग पक्ष में जहां नायक-नायिका का मिलन होता है। वहीं विपक्ष में दोनों के बीच की दूरी और मिलन की उत्सुकता आदि का मर्म प्रस्तुत किया जाता है। 

आशा है आपको यह लेख पसंद आया हो , आपके रस के विषय में ज्ञान की वृद्धि हुई हो। आप हमें किसी भी प्रकार का सुझाव या मार्गदर्शन दे सकते हैं। अपने सुझाव के लिए नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें। हम विद्यार्थियों की समस्या को सुलझा ने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

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