Very emotional Hindi story on Dowry system. Today we have decided to touch social issues through our story. We are writing Hindi kahani on Dahej Pratha.
This story on Dowry system or dahej pratha is one of the collections of stories we have written in which we target social issues.
Hindi story on Dahej Pratha
प्रस्तुत लेख एक सुंदर-सुशील और लाडली बेटी की है, जिसने अपने ससुराल के सभी यातनाओं को सहते हुए भी अपने पिता का सर गर्व से ऊंचा रखा। कभी भी बदले की भावना या प्रतिशोध की भावना को अपने हृदय में जागृत होने नहीं दिया। अंतिम क्षण भी उसने बहादुरी का परिचय देते हुए मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को उजागर किया। इस घटना से मानवीयता शर्मसार हो जाती है, उसके खोखले दिखावे को तार-तार करती है।
यह घटना सत्य पर आधारित है, किंतु सभी पात्रों के नाम काल्पनिक दिए गए हैं –
एक लाडली बेटी थी- दहेज़ प्रथा पर कहानी
सेठ मदनलाल शहर के प्रसिद्ध और सबसे धनी व्यापारी थे, उनके यहां नौकर-चाकरों की पूरी टोली रहा करती थी। भगवान की कृपा से उनके घर लक्ष्मी धन वर्षा करती थी। सेठ मदनलाल की एक सुंदर सुशील और शिक्षित बेटी थी जिसका नाम कल्पना था। कल्पना अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी, इसलिए लालन-पालन में किसी प्रकार की कमी नही हुई। मां बाप का प्यार भी बराबर मिलता रहा।
सेठ के जीवन में किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी, किंतु कहते हैं
जिसके घर बेटी जन्म लेती है, उस घर मां बाप को चिंता होने लगती है
कल्पना पढ़-लिख कर शादी के योग्य हो गई थी। मां-बाप को कल्पना के शादी की चिंता सताने लगी। जगह-जगह योग्य वर ढूंढने के लिए रिश्ते -नाते के लोगों को लगाया गया। काफी तलाश के बाद ढाई साल के बाद एक योग्य वर बृजपाल की तलाश हुई।
बृजपाल, चौधरी सत्येंद्र का पुत्र है। नाम से ही पता चलता है कि चौधरी सत्येंद्र धन से भी चौधरी है।
सेठ मदन लाल ने चौधरी सत्येंद्र से अपनी पुत्री कल्पना के लिए बृजपाल से ब्याह कराने की बात की।
चौधरी सत्येंद्र ने कल्पना से अपने पुत्र के विवाह का आश्वासन सेठ को दिया। चौधरी जानता था सेठ की कोई और संतान नहीं है। कल्पना उसकी इकलौती संतान है और सेठ की उम्र 50 साल से ऊपर है, अर्थात अब इसकी कोई संतान नहीं हो सकती।
ऐसा लालच उसके मन में आया और उसने विवाह के लिए तत्काल हां कर दिया।
लग्न-मुहूर्त देखकर दोनों ओर से खूब उत्साह और जोश के साथ विवाह किया गया। सेठ मदनलाल की इकलौती बेटी का विवाह था इसलिए सेठ धन का लोभ नहीं कर रहे थे, वह जी खोलकर अपनी बेटी की शादी में धन लूटा रहे थे अर्थात खर्च कर रहे थे। चौधरी सत्येंद्र भी जानते थे कि उनके पास धन का भंडार आ रहा है, इसलिए वह भी सामर्थ से ज्यादा विवाह में खर्च कर रहे थे।
कल्पना और बृजपाल का विवाह संपन्न हुआ। दोनों अपने वैवाहिक जीवन को जी रहे थे।
कल्पना भी अपने ससुराल में खुश थी और ससुराल वाले भी कल्पना के स्वभाव से प्रसन्न थे। कल्पना के स्वभाव से रिश्तेदारों में भी कोई नाराजगी नहीं थी, सभी कल्पना के स्वभाव की तारीफ करते हुए कहते – “इस जैसा बहु मिलना मुश्किल है।” कुछ समय विवाह के बीते होंगे कि, सेठ मदनलाल के घर एक पुत्र का जन्म हुआ अर्थात कल्पना को एक भाई मिल गया जिसे वह राखी बांध सकती थी और उसको अपना भाई बोल सकती थी।
सेठ के घर खुशियों की झड़ी लग गई, बेटी का विवाह हुआ।
अच्छा घर मिल गया इसकी तो अपार खुशी थी, किंतु पुत्र रत्न की प्राप्ति लंबी प्रतीक्षा के बाद हुई यह खुशी को दोगुनी करने वाली थी।
सेठ मदनलाल के घर पुत्र का जन्म सुनकर कल्पना के ससुराल वालों के पैरों तले जमीन खिसक गई। जैसे उनकी सारी संपत्ति छीन गई हो। उन्होंने शादी इस लालच में की थी कि वह मदनलाल के सारे संपत्ति को एक दिन प्राप्त कर लेंगे। किंतु बेटे के जन्म के बाद यह मुश्किल हो गया था।
भाई के मिल जाने से कल्पना के जीवन में खुशियां आनी चाहिए थी, किंतु यह उसके लिए दुख का कारण बन गई। सास-ससुर, पति सभी अब कल्पना को दुख देने लगे और उसे प्रताड़ित करने लगे। दहेज और धन के लालच में कल्पना को मारते-पीटते और दिन दिन भर भूखा रखते। किंतु कल्पना की आदर्श इतने ऊंचे थे, उसने अपने माता-पिता को इस यातना और कष्ट के बारे में भनक तक नहीं लगने दी।
सेठ, कल्पना से मिलने और अपने बेटे के छठी अर्थात नामकरण संस्कार में निमंत्रण देने के लिए खुशी खुशी ससुराल पहुंचे।
चौधरी और बृजपाल सेठ को देखकर असमंजस में पड़ गए कि वह कल्पना से कैसे मिलवायेंगे। सेठ सभी घटना को जान जाएगा और हमारे विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। तत्काल उन्होंने निष्कर्ष निकाला और कल्पना को समझा दिया किसी भी प्रकार की बात अपने पिता को बताई तो अच्छा नहीं होगा। अनेकों प्रकार की धमकियां देकर कल्पना को उसके पिता से मिलवाया गया।
बेटी भी कर्तव्यनिष्ठ थी, उसके संस्कार पुराने थे, अर्थात वह जानती थी ‘पिता के घर से डोली निकलती है और ससुराल से अर्थी ‘ इसी आदर्शों से वह बंधी हुई थी। कल्पना ने पिता का खूब स्वागत-सत्कार किया। बैठे – बैठे अनायास उसके आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी। पिता कुछ समझ पाते इससे पहले बेटी बोलती है पिताजी यह मेरे खुशियों का आंसू है बचपन से मैं भाई के लिए तरसती थी, अब जाकर मुझे एक भाई मिला है, जिसके कलाइयों पर मैं राखी बांध सकती हूं। बस यही सोचकर मेरे आंखों से आंसू निकल गया।
पिता को यह बात समझ नहीं आई, कुछ शंका और कुछ डर के कारण अधिक बातों को कुरेदा नहीं। सेठ नामकरण संस्कार में सभी को न्योता देकर अपने घर वापस लौट आए।
नामकरण का दिन आ गया, चौधरी सत्येंद्र और बृजपाल दोनों को भी सेठ के यहां जाना था, किंतु उन्होंने वहां जाना स्वीकार नहीं किया और कल्पना को डरा धमकाकर वहां भेजने की साजिश करते रहे। दोनों के मानवीय मूल्य इतने गिर गए कि उन्होंने एक नवजात शिशु की हत्या करने का भी षड्यंत्र रच दिया। उस षड्यंत्र को पूरा करने के लिए किसी और का नहीं कल्पना का ही प्रयोग करना चाहा।
बृजपाल, कल्पना की पिटाई करते हुए कहता है –
‘या तो तू सदा-सदा के लिए अपने मायके चली जा, या अपने भाई का गला दबाकर हत्या कर दे।
जिसके बाद उसकी सारी संपत्ति हमारी हो जाएगी। कल्पना ऐसा नहीं कर सकती थी, वह अपने खातिर किसी निर्दोष को सजा नहीं दे सकती थी। अपने ऊपर हजारों यातनाएं सह सकती लेकिन किसी निर्दोष को सताना यह उसके संस्कारों में नहीं था। काफी देर सोच विचार कर कल्पना ने एक अभूतपूर्व निर्णय लिया।
कल्पना ने तीन पत्र लिखें –
पहला पत्र –
अपनी माता के नाम जिसे वह अपने जन्म देने के लिए धन्यवाद करती रही और सदा उनकी बेटी बनकर जन्म लेना चाहती और उनके गोद में खेलती ऐसे भावों को प्रकट कर माफी मांगती हुई उनसे अगले जन्म में मिलने की बात लिखती है।
दूसरा पत्र –
ससुर के नाम जिसे वह पिता के रूप में मानती थी और उनका सेवा भी की अपने पिता से कम नहीं माना। किंतु उन्होंने अपनी बेटी के रूप में उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया, इसके लिए वह अपने को ही दोषी मानती है और अपने ससुर से माफी भी मानती है कि अगले जन्म में फिर मैं एक अच्छी बहू बनकर आपके सामने आऊंगी।
तीसरा पत्र –
अपने पति बृजपाल के नाम लिखती है जिसे वह पति रूप में भगवान की प्रतिमूर्ति मानती थी और अपना सर्वस्व न्योछावर कर उसकी सेवा करती थी। किंतु फिर भी उन्होंने नहीं अपनाया पति-पत्नी का संबंध सातों जन्मों के लिए जुड़ जाता है इसलिए वह इस जन्म में छोड़ कर जा रही है किंतु अगले जन्म में वह फिर उन्हें पति के रूप में प्राप्त करना चाहती है। ऐसा कहते हुए अपने हृदय के सभी विचारों को पत्र में लिख दिया।
तीनों पत्र बिस्तर पर रखे तकिए के नीचे दबा दिया और छत में लगे पंखे से एक फंदा लटकाया और अपने जीवन लीला को समाप्त कर ली । यह कल्पना के जीवन का दुखद अंत था।
चौधरी सत्येंद्र के घर बहू की मृत्यु पूरे गांव में फैल गई थी। सेठ मदनलाल को भी अपनी बेटी के ना रहने की सूचना मिल गई थी। थाना-पुलिस चौधरी बृजपाल और सत्येंद्र के घर मौजूद थी सघन तलाशी और पूछताछ के बाद भी किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। महिला कांस्टेबलों ने कल्पना के शरीर को नीचे उतारा और उसके कपड़े ऊपर करके देखा तो उसके शरीर पर हजारों काले काले दाग थे जो बृजपाल और सत्येंद्र ने पिटाई के दौरान दिए थे।
पुलिस को सारा मंजर समझ रही थी, चौधरी बृजपाल और सत्येंद्र के हाव भाव भी बदले हुए थे। पिता ने भी बताया कि मैं जब मिलने आया था तो बेटी रो रही थी, किंतु उसने कुछ बात बताई नहीं थी। मुझे शंका है कि बेटी के पति और ससुर ने ही इनकी हत्या की है। बस क्या था बृजपाल और चौधरी सत्येंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और कमरे की छानबीन की गई।
तकिए के नीचे रखे तीनों पत्र को पुलिस ने बरामद किया और उस में लिखी हुई सभी बातों को पुलिस ने सबके सामने पढ़ा जिससे बृजपाल और चौधरी सत्येंद्र के सभी यातनावों का उजागर हुआ । गांव मोहल्ले सभी कल्पना के स्वभाव से परिचित थे और बृजपाल तथा सत्येंद्र के स्वभाव से भी।
गांव वालों ने भी बृजपाल और सत्येंद्र के सभी राज खोल दिए।
पुलिस ने कानूनन बृजपाल और सत्येंद्र चौधरी को गिरफ्तार किया। कोर्ट-कचहरी हुई जिसमें बृजपाल को मुख्य साजिशकर्ता माना गया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। चौधरी सत्येंद्र को इस घटना में शामिल और साजिश में सहयोगी मानते हुए 9 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।
Moral of the story
इस घटना से यह सीख मिलती है कि-
लालच में किस प्रकार ससुराल वालों ने अपने बहु का अनादर किया उसकी पिटाई की।
किंतु इस घटना के प्रभाव में केवल कल्पना नहीं आई अपितु कल्पना के साथ बुरा बर्ताव करने वाले भी बुरे दंड को भुगतने के लिए अपराधी हुए।
इससे एक बेटी का सब कुछ उजड़ जाता है वही दो परिवार बिखर भी जाते हैं।
समाज में फैली इन कुरीतियों को समाज के लोगों को ही दूर करना होगा, अन्यथा आज एक कल्पना इस घटना का शिकार हुई है न जाने कितनी ही कल्पना फिर शिकार होगी। समाज को अपने आसपास हो रहे अत्याचारों के प्रति आवाज उठाना चाहिए अगर कल्पना के आस-पड़ोस के लोगों ने आवाज उठाई होती तो आज कल्पना उनके साथ होती और दोनों परिवार एक साथ होते। दहेज के लोभी को भी कड़ा संदेश देना आवश्यक हो गया है कि , वह बहू को ब्याह कर लाते हैं जो उनके घर की लक्ष्मी है।
ना कि वह किसी धन कुबेर को उठाकर लाते हैं जो उसके घर धनवर्षा करे।
दहेज के प्रति समाज का नजरिया बदलना आवश्यक हो गया है, नहीं तो कितनी और बेटियों का घर उजड़ेगा वह बेटी हमारी और आपकी भी हो सकती है।
( लेखक – निशिकांत, हिंदी विभाग)
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बहुत अच्छी व सुंदर कहानी है, एसे ही कहानियाँ डालते रहे
धन्यवाद
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