In this post, we will read full Durga Chalisa lyrics in hindi. This is mostly read in India during Navratri or Durga Pooja. This prayer has things written in this which please Hindu Goddess. And it is mostly done to remain protected from evils.
हमारे हिंदू धर्म में देवियों को पूजा जाता है। जिसमें मां दुर्गा का अति विशेष महत्व है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। और यह माना जाता है कि मां दुर्गा स्वयं अपना आशीर्वाद उस पर बरसाती हैं जो इस पाठ को पूरी श्रद्धा से करता है। पुस्तकों में यह भी लिखा है कि दुर्गा चालीसा पाठ करने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और शत्रु से युद्ध में हरा नहीं सकता। घोर विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य भी इस पाठ को पढ़कर उस से बाहर निकल सकता है।
आज हम आपके लिए इसी कारण लेकर आए हैं दुर्गा चालीसा का संपूर्ण पाठ जो आपको शुरू से लेकर अंत तक पूरा पढ़ने को मिलेगा। यह हिंदी में लिखा हुआ है और जितना हो सके उतना अच्छे ढंग से लिखा है ताकि आपको पढ़ने में आसानी हो।
सर्व मंगल मांगल्ए शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते। ।
Sampoorna Durga chalisa full lyrics in hindi – संपूर्ण दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
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अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
दुर्गा चालीसा की व्याख्या
दुर्गा माता को बार-बार प्रणाम करता हूं, जो सुख देने वाली तथा दुखों को हरने वाली है। जिसकी ज्योति निरंकार है। जिसका हर एक प्राणियों में चर – अचर में वास है। जिसकी ज्योति सदैव उजियारी रहती है। जिसकी ज्योत सदैव प्रकाशमान रहती है, जिसके ललाट चंद्रमा के समान है और मुख महा विशाल है। जो भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं, जिस कारण उनकी नेत्र लाल और भृकुटि तनी हुई विकराल प्रतीत होती है। ऐसे रूप का दर्शन करके भक्त अधिक आनंदित होते हैं और सुख की अनुभूति करते हैं।
तुम से ही इस संसार की लौ है, यह संसार तुम से ही प्रकाशमान है। तुम ही इस सृष्टि का पालन करने वाली हो। तुम्हारे ही कारण इस सृष्टि पर अनाज और धन की उपलब्धता है। तुम ही जगत का पालन करती हो, तुम ही मां अन्नपूर्णा हो। तुम ही आदि देवी हो, प्रलय काल को टालने वाली उसका नाश करने वाली तुम गौरी शिव शंकर की प्यारी हो। जिसका गुण ब्रह्मा, विष्णु और तीनो लोक गाता है, ऐसे देवी को हम प्रणाम करते हैं।
तुम्हीं ने इस पृथ्वी पर विद्या की देवी सरस्वती का रूप धारण किया और ऋषि मुनि आदि को ज्ञान देकर उनका उद्धार किया। तुम्हीं ने नरसिंह का रूप धारण कर प्रहलाद की रक्षा की। हिरण्यकश्यप जैसे हठी विधर्मी को स्वर्ग भेजा, उसका संघार किया। तुम ही सदैव भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहती हो। इसी कारण इस धरा पर तुम लक्ष्मी का रूप धारण कर रहती हो और श्री नारायण भगवान विष्णु की सेवा करती रहती हो तुम्हें नमस्कार है।
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हे माता आप लक्ष्मी रूप धारण कर श्री विष्णु जी के साथ क्षीर सिंधु में विराजमान रहती हैं और अपनी दया रूपी सिंदूर भक्तजनों पर बरसाती रहती है। तुम ही दुर्गा मां का स्वरूप हो, तुम ही भवानी हो। जिसकी महिमा अपरंपार है जिसका बखान करना भी दुर्लभ है ऐसी मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूप भक्तों को सुख प्रदान करते हैं। धन वैभव समृद्धि प्रदान करते हैं। आप ही चर अचर के स्वामी है जो जीवन मृत्यु प्रदायिनी है जो दुख संकट को भाग्य से दूर कर देती हैं ऐसी देवी को प्रणाम है।
आप भगवान विष्णु के साथ शोभायमान होती हैं, जिसके आगे लंगूर जैसे वीर योद्धा रक्षा हेतु चलते हैं। जिसके हाथ में खड़ग खप्पर रहता है। जिसको देखकर काल भी डर कर भाग जाता है। आप ही कालरात्रि व चंडी का रूप है। जिनके अनेक भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र त्रिशूल आदि भक्तों की रक्षा के लिए रहते हैं। जो नगर तथा गढ़ में विराजमान होती हैं, जिसके कारण कोई अनिष्ट आपके भक्तों पर नहीं होता। ऐसे मां देवी का डंका तीनो लोक में बजता है। जिससे दैत्य असुर घबरा उठते हैं, ऐसी देवी को नमस्कार हैं।
हे देवी आप ने ही शुंभ निशुंभ जैसे दुराचारी दैत्य का संहार किया था। रक्तबीज और उसकी सेना का मर्दन किया था। महिषासुर जैसे राजा जो अपने शक्ति के अभिमान में अनाचार कर रहा था उसका भी संघार किया। तुमने ही काली का रूप धारण कर देवताओं को अभयदान दिया दैत्यों का नाश किया। तुम ही अपने भक्तजनों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हो। जब जब संकट पड़ता है, उसे टालने के लिए प्रस्तुत होती हो। ऐसे विपदा के समय एक तुम्हारा ही सहारा प्राप्त होता है, ऐसे देवी को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।
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चारों और तीनो लोक में बस तुम्हारी ही महिमा का गुणगान किया जाता है। जिनकी ज्वाला से ज्ञान वैभव सुख समृद्धि बरसती है। जिसे नर नारी देवता पूजते हैं और प्रेम भक्ति से तुम्हारा गुणगान करते हैं। तुम्हारे भक्तों के समक्ष कभी दुख दरिद्रता तक नहीं आ पाता। जो तुम्हारे शरण में जाते हैं जो तुम्हारा ध्यान करते हैं वह जन्म मरण आदि बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। वह अन्य प्रकार के भय आदि से भी मुक्त हो जाते हैं। वह भक्त अन्य को शरण देने वाले हो जाते हैं, ऐसे देवी को मैं प्रणाम करता हूं।
इस जगत में जितने भी योग हैं, यज्ञ है वह तुम्हारे शक्ति के बिना अधूरी है। इसलिए देवी देवता सब तुम्हारी शक्ति को स्मरण करते हैं। शंकर जी ने जिस शक्ति को तप के द्वारा प्राप्त किया था और काम क्रोध आदि को जीत लिया था। ऐसे भगवान शिव शंकर को जो भक्त ध्यान करते हैं उनके निकट काल नहीं आता। उस शक्ति का सार तुम्हारे भीतर ही निहित है। तुम्हारी शक्ति का कोई थाह नहीं है। तुम्हारी शक्ति अपरंपार है, तुम्हारे द्वारा शक्ति मिलने पर जो उसका सदुपयोग नहीं करते हैं। उसकी शक्ति छीनने पर वह सदैव सताता रहता है। ऐसी शक्तिशाली मां को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।
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जो तुम्हारे शरणागत होते हैं वह तुम्हारी कीर्ति को जानते हैं और उसका बखान तीनो लोक में करते हैं। तुम प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को सदैव दर्शन देती हो उन्हें शक्ति देती हो इसमें कोई विलंब नहीं होता। हे माता आप समस्त जगत का कष्ट हरने वाली हो। मेरे कष्टों को तुम्हारे सिवा अब कौन दूर कर सकता है। आप ही मेरे कष्टों का निवारण करो यह भवसागर से मेरा पार लगाओ। मुझे आशा तृष्णा सदैव घेरे रहते हैं शत्रु आदि का भय सदैव बना रहता है। आप मेरे दुखों का निवारण करो तुम्हें बारंबार नमस्कार है।
हे देवी, हे महारानी तुम मेरे शत्रुओं का नाश करो मैं तुम्हें हृदय से पुकारती हूं। हे मातु दयाला जो सदैव अपने भक्तों पर दया दृष्टि रखती है, मेरा उद्धार करो। मुझे रिद्धि सिद्धि देख कर मेरा जीवन भी निहाल करो। मैं जब तक जिऊंगा तुम्हारे कीर्ति को तुम्हारे फल को दया को कभी ना भूल पाऊंगा। तुम्हारे यश कीर्ति का बखान में जन्म जन्मांतर तक करता रहूंगा। तुम्हारे चालीसा में भी वह शक्ति है जो श्रवण मात्र से लाभ हो जाता है। उस चालीसा का पाठ और श्रवण करता रहूंगा। हे देवी मैं तुम्हारे दरबार में तुम्हारे समक्ष उपस्थित हूं, मुझ पर दया और कृपा करो तुम्हें प्रणाम है।
दुर्गा माता के नौ स्वरूप का नाम
मार्कंडेय पुराण के अनुसार देवी के नौ स्वरूप का वर्णन है जिसका निम्नलिखित क्रमशः नाम लिखे गए हैं –
प्रथम | शैलपुत्री |
द्वितीय | ब्रह्मचारिणी |
तृतीय | चंद्रघंटा |
चतुर्थ | कुष्मांडा |
पंचम | स्कंदमाता |
षष्ठी | कात्यायनी |
सप्तमी | कालरात्रि |
अष्टमी | महागौरी |
नवमी | सिद्धिदात्री |
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समापन –
मां दुर्गा शक्ति का स्वरुप है, इनके अनेक स्वरूप है जो समय समय पर अवतरित होकर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। देवताओं को अभयदान देती है। यही सृष्टि की शक्ति है इन के माध्यम से ही इस पृथ्वी पर सभी प्रकार की गतिविधियां संभव है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी इनकी आराधना करते हैं। संकट के समय देवी शक्ति को जागृत करते हैं उनका आह्वान करते हैं। यही शक्ति देवताओं की रक्षा करती है। दैत्यों का नाश करती है, ऋषि-मुनियों को भय मुक्त करती है।
जो भी श्रद्धा और सच्चे भाव से इनकी आराधना करते हैं, इनकी शरण में जाते हैं वह कभी निराश नहीं होते। उन्हें मनोवांछित वर मिलता है। वह जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्त होकर सुंदर जीवन यापन करता है। इतना ही नहीं वह मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में मां का दरबार पाता है।
आप भी माता की आराधना कीजिए निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों की सहायता कीजिए यही माता की कृपा पाने का एक उचित मार्ग है।
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