कारगिल विजय दिवस पूरी जानकारी ( वीरता की मिसाल )

भारतीय युद्ध वीरों की दास्तां है, कारगिल विजय दिवस

यह दिवस उनके शौर्य और पराक्रम को पुनः याद दिलाता है। उनकी बहादुरी की कहानियां सुनाता है। किस प्रकार उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए घर में घुस आए घुसपैठियों के लिए कब्र खोदी थी।

उनके शौर्य और पराक्रम के याद में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

यह लेख भारतीय सेना के कर्तव्य निष्ठा और देश प्रेम के जज्बे को समर्पित है।

कारगिल विजय दिवस पर निबंध

भारत पर अंग्रेजों का हुकूमत लगभग 200 साल तक कायम रहा था। जब भारतीयों ने उनकी सत्ता को उखाड़ फेंकी।  तब वह 15 अगस्त 1947 को पूर्ण रूप से भारत को छोड़कर अपने देश लौट गए थे। किंतु जाने से पूर्व उन्होंने भारत का विभाजन पाकिस्तान और हिंदुस्तान के रूप में किया था। पाकिस्तान सदैव से उग्र रहा है और इस उग्र बर्ताव के कारण उसने अनेकों छोटे-मोटे युद्ध भी भारत के साथ किए।

1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के हौसले पस्त कर उन्हें युद्ध बंदी बना लिया था।

भारत सदैव उसके प्रति भाईचारे की भावना रखता है इस कारण उसके सभी सैनिकों को वापस लौटा दिया। पाकिस्तान ने अपने उग्र स्वभाव के कारण अवैध रूप से अपने देश में परमाणु के अस्त्र-शस्त्र तैयार किए थे। भारत जो सदैव विश्व बंधुत्व की बात करता रहता है, इसके पास चारों ओर से ईर्ष्या करने वाले देश मौके की ताक में बैठे हुए थे।

समय की मांग को देखते हुए भारत ने 1998 में सफल परमाणु परीक्षण किया।

भारत को परमाणु संपन्न होता देख पाकिस्तान और जल कर राख होता रहा।

छोटी मोटी घुसपैठ के बाद वह कश्मीर के मुद्दे पर बात करने के लिए वर्ष 1999 के फरवरी माह में लाहौर समझौता के लिए तैयार हुआ। जिसमें दोनों आपसी सामंजस्य के साथ कश्मीर आदि का मुद्दा हल करेंगे ऐसी सहमति बन सकी। पाकिस्तान ऐसा देश है जिस पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि वहां की राजनीति और सेना दोनों एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में रहती है। फरवरी में हुए लाहौर समझौते के बावजूद पाकिस्तान ने घुसपैठ बंद नहीं किया। ‘ऑपरेशन बद्र’ के तहत पाकिस्तान अपने सैनिकों तथा अर्धसैनिक बलों को जम्मू कश्मीर लद्दाख और सियाचिन के रास्ते भारत में घुसपैठ करवाता रहा।

भारतीय सेना उनके मंसूबों को पहचान चुकी थी, जिसका एकमात्र उद्देश्य कश्मीर पर कब्जा और लद्दाख को अलग करना तथा सियाचिन पर अपना अधिकार करना था। इन सभी चक्रव्यू को समझते हुए भारतीय सेना के लगभग 200000 जवानों ने मोर्चा संभाला। मई 1999 में जो लगभग दो महीने तक चला जिसमें 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल पर विजय प्राप्त की।

इस युद्ध में भारतीय सेना के लगभग 500 जवान शहीद हुए और 1400 घायल हुए।

यह विजय उन शहीदों को समर्पित किया गया जिन्होंने इस युद्ध में अपना सर्वश्रेष्ठ बलिदान दिया था। तब से प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को भारत के लोग कारगिल विजय दिवस के रूप में उन शहीदों को याद करते हैं और अपने श्रद्धा सुमन उन शहीदों को समर्पित करते हैं।

पाकिस्तान के पास ऊंचाई का फायदा होते हुए भी क्यों हारा

कारगिल और उसके आसपास के अनेकों दुर्गम पहाड़ियों की ऊंचाई पर पाकिस्तान ने धोखे से कब्जा किया था। सर्दी के मौसम मैं दोनों देश की सेना अपने बनकर छोड़ वापस लौट आती है, किंतु इस बार उनके बुरे मंसूबों ने उन्हें लौटने नहीं दिया। जब भारतीय सेना अपना बनकर खाली करके वापस लौट आई, तब उन्होंने भारतीय बंकर कि लगभग 140 पोस्टर में भारी गोला बारूद भर लिया।  ऊंचाई का फायदा होते हुए उन्होंने भारत की प्रमुख राज्य मार्ग nh1 जो जम्मू लद्दाख और सियाचिन के लिए एकमात्र मार्ग था उस पर एक प्रकार से कब्जा ले लिया। यह राजमार्ग उनके बंदूकों के निशाने पर था, कोई भी वहां से उनकी इजाजत के बिना निकल नहीं सकता था।

उनके बुरे मंसूबों ने उनकी हौसला अफजाई की थी, वह सियाचिन से लेकर कारगिल हिल तक पर अपना कब्जा जमा लिया था। इसके प्रमुख मास्टरमाइंड जनरल परवेज मुशर्रफ और उसके तीन सहयोगी थे।

इन्होने राजनीतिक इजाजत के बिना यह सभी कार्यवाही की थी।

भारतीय सेना के हौसलों के आगे कारगिल की ऊंची शिखा भी बोनी हो गई थी।

भारतीय जवानों ने कारगिल की चोटी पर चढ़ाई करते हुए अपना अधिकार पुनः स्थापित कर लिया।

पाकिस्तान को उनके भाषा में जवाब देने के लिए

थल सेना ने ऑपरेशन विजय ,

वायु सेना ने सफेद सागर और

नौसेना ने ऑपरेशन तलवार आरंभ किया था।

तीनों सेना की कार्यवाही इतनी धारदार थी कि इसका जवाब पाकिस्तानियों के पास नहीं था। साथ ही अंतरराष्ट्रीय दबाव दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रहा था। अमेरिका, चीन और सऊदी अरब ने उनका साथ देने से मना कर दिया था तथा निरंतर दबाव बनाया गया कि वह अपनी सेना को अपने देश में बुला ले अन्यथा भारत की कार्यवाही को वह नहीं रुकने देंगे। इसके दबाव में पाकिस्तानी सेना तो पीछे हटी ही, साथ ही भारतीय सेना की कार्यवाही ने उनके हौसलों को पस्त कर दिया था।

जिसके कारण वह ऊंचाई का फायदा लेते हुए भी वहां अधिक समय तक टिक न सके।

कारगिल विजय दिवस का इतिहास

1947 की आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान में लगभग दो बड़ा युद्ध हो चुका था, जिसमें वह बुरी तरह से प्राप्त हुए थे।

इसका उन्हें बदला लेना था।

1998 में परमाणु परीक्षण कर भारत ने विश्व पटल पर अपने शक्ति का परिचय दिया था।

अब दो कट्टर देश परमाणु संपन्न हो चुके थे जो विश्व के लिए एक खतरा था।

भारत ने अपने विशाल हृदय का परिचय देते हुए परमाणु पहले प्रयोग ना करने के लिए वचन दिया। परमाणु का प्रयोग केवल जवाबी कार्यवाही के लिए करेंगे ऐसा भारतीय राजनीति ने नियम बनाया। पाकिस्तान परमाणु का प्रयोग किसी भी परिस्थिति में कर सकता है चाहे हमला करने या जवाब देने उनके पास ऐसा कोई नियम नहीं है जो विश्व के लिए और खतरनाक है।

21 फरवरी 1999 को

भारत के प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेई और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच लाहौर समझौता हुआ।  जिसमें शांति बनाने और अपने सभी मुद्दों को भाईचारे के तहत आपसी सहमति से सुलझाने का निर्णय लिया गया। पाकिस्तान ने 1999 में ऑपरेशन अलबद्र की शुरुआत की जिसमें मुजाहिदीन, अर्ध सैनिक बल तथा सैनिक टुकड़ियों को शामिल किया गया।

इनका मकसद भारत की सीमाओं में घुसकर उनके जमीन को हथियाना तथा जम्मू कश्मीर पर कब्जा करना था।

सियाचिन में दोनों सेनाओं के बीच समझौता था

अक्टूबर के बाद दोनों सेना अपने अपने बनकर खाली कर लौट आते थे।

किंतु पाकिस्तानी सेना लौटकर नहीं आई और भारतीय खाली बंकरो पर अपना कब्जा कर लिया।

साथ ही भारी मात्रा में गोला बारूद भी जमा कर लिया।

कारगिल जो एक जिला है

जिसमें मुख्य रुप से द्रास में भीषण युद्ध हुआ। क्योंकि वहां से NH1 राज्य मार्ग निकलता है , जो जम्मू और सियाचिन को जोड़ने का एकमात्र मार्ग था। क्योंकि उसके अलावा किसी और मार्ग से जाना वहां कठिन था। रास्ते में अनेकों छोटी-बड़ी दुर्गम पहाड़ियों थी इसलिए सियाचिन और जम्मू के लिए यह राजमार्ग रणनीति के तौर पर काफी अहम था। इस राजमार्ग को पाकिस्तानी सेना ने अपने बंदूक के निशाने पर ले लिया था ताकि कोई सियाचिन और जम्मू की ओर ना जा सके।

कारगिल युद्ध नाम इसलिए पड़ा क्योंकि कारगिल जिला में यह सभी युद्ध लड़ा गया था।

जिसमें प्रमुख स्थान

  • मस्कोक,
  • द्रास,
  • काकसर,
  • बटालिक थे।

इसमें सबसे ज्यादा भीषण युद्ध द्रास में हुआ था।

भारतीय सेना को प्रथम सूचना याक तासी दीनदयाल जो चरवाहा था उसने दिया।

जिसके बाद भारत के 5 जवान पेट्रोलिंग पर गए,

पाकिस्तानी जो पहले से घात लगाकर बैठे थे उन्होंने पेट्रोलिंग पर गए पांचों जवान को छुपकर गोली से शहीद कर दिया।

9 मई 1999

को पाकिस्तानी सेना ने भारतीय युद्ध सामग्री के भंडारण पर अंधाधुंध गोलाबारी कि।

जिसमें एक ही क्षण में भारतीय सेना का 127 करोड़ का गोला बारूद भंडार जलकर राख हो गया।

19 मई को

थल सेना ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा की और द्रास में टाइगर हिल को मुक्त कराने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मुशर्रफ के अनुसार उसने भारत की 140 पोस्ट को कब्जा किया था। विक्रम बत्रा ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए अनेकों पहाड़ियों पर तिरंगा लहराया था।

उन्होंने ये दिल मांगे मोर कहकर भारतीयों को गौरवान्वित भी किया था।

पाकिस्तानी सेना इतनी ऊंचाई पर बैठी थी कि उनके लिए सब कुछ स्पष्ट देख पाना सुलभ था।

साथ ही वह कम मात्रा में भी अधिक नुकसान पहुंचा रहे थे।

इसका जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने बोफोर्स तोप का इस्तेमाल किया।

बोफोर्स तोप को छुपाकर धुआंधार फायरिंग कर उनके मंसूबों को तोड़ा व बोफोर्स ने अपना लोहा कारगिल के युद्ध में बनवाया।

26 मई 1999 को

वायु सेना ने सफेद सागर नाम का ऑपरेशन चालू किया और mig-27 का प्रयोग किया जिसमें नचिकेता जो चला रहे थे। वह पाकिस्तान के क्षेत्र में गिरे जिनको रणनीति के तहत भारत ने वापस लिया था। नचिकेता के विमान को सर्च करने गए अजय आहलूवालिया के विमान पर उन्होंने स्ट्रिंगर से हमला किया जिसमें वह विमान के क्षतिग्रस्त होने पर भी पैराशूट से नीचे आ रहे थे पाकिस्तानी सेना ने निर्मम हत्या की।

भारतीय सेना ने मिराज 2000 जो लेजर गाइडेड बम से निशाना करने में सक्षम था, का प्रयोग किया और घनघोर तबाही के साथ अपने शौर्य का पराक्रम पेश किया। साथ ही नौसेना ने ऑपरेशन तलवार का आरंभ कर अरब सागर में अपना दबदबा कायम किया। पूर्वी और पश्चिमी कमान ने एक साथ मोर्चा संभालते हुए पाकिस्तान में सप्लाई होने वाले सभी जल मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था। नौसेना की भारी भविष्य पाकिस्तानी सेना घबरा उठी थी उनके देश में अब मात्र 6 दिन का पेट्रोल बच गया था।

पाकिस्तान भारतीय सेना के चारों ओर से हमले पर काफी नुकसान तो झेल रही थी, साथ ही उनके देश में आवश्यक वस्तुओं की किल्लत भी होने लगी। वह अधिक समय तक भारतीय सेना का सामना नहीं कर सकते थे। मदद के लिए नवाज शरीफ अमेरिका गए वहां बिल क्लिंटन ने पाकिस्तानी सेना को वापस लौटने का फरमान सुना दिया, वहां से निराश हो चुके थे।

परवेज मुशर्रफ चीन से मदद मांगते रहे किंतु वहां से भी उन्हें मदद ना मिल सका।

अटल बिहारी बाजपेई और यशवंत सिंह ने जनरल परवेज मुशर्रफ और चीन की बातचीत को सभी देशों के सामने सुना दिया जिसमें उन्होंने अपने देश की गलती को स्वीकार किया था। यू.ए.ई ने भी पाकिस्तानी सेना को वापस लौटने का फरमान सुना दिया। अंतरराष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान पर इतना बन चुका था कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे। साथ ही साथ भारत की सेना इतना कहर बरपा रही थी कि उसका सामना करने की ताकत पाकिस्तानी सेना के पास नहीं था।

देखते ही देखते 26 जुलाई 1999 को पूर्ण रूप से भारत ने युद्ध जीतकर शंखनाद किया।

इस युद्ध में

  • भारतीय सेना के लगभग 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए
  • तथा 14 सौ से अधिक घायल हुए।

यह युद्ध इतना एक तरफा था कि इसमें पहाड़ के नीचे की सेना का जीत पाना नामुमकिन था। किंतु भारतीय सेना के लिए नामुमकिन शब्द शोभा नहीं देती। ऐसे दुष्कर युद्ध को भी प्राणो की आहुति देकर जीता था।

अतः कारगिल विजय दिवस वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों को समर्पित किया गया।

तब से प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

यह भी पढ़ें

नदी तथा जल संरक्षण पर निबंध | River protection

पर्यावरण की रक्षा निबंध – Global warming

दशहरा निबंध

हिंदी का महत्व – Hindi ka mahatva

मोबाइल फ़ोन पर निबंध | Essay on Mobile phone in Hindi

विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध एवं सम्पूर्ण ज्ञान

राष्ट्रीय योग दिवस पर निबंध

वृक्षारोपण पर निबंध

टेलीविजन की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए | Importance of television in hindi

अप्रैल फूल क्या है 

देश प्रेम की कहानी 

 

निष्कर्ष

भारत एक विश्व बंधुत्व की भावना पर चलने वाला राष्ट्र है, जो सभी धर्मों, जाति, पंथ आदि का आदर करता है। वह सभी को खुले बाहँ से स्वीकार करता है। किंतु भारत के इस स्वभाव से पड़ोसी देशों में अलग सी बेचैनी रहती है। भारत के निरंतर प्रगति को देखकर उन्हें ईर्ष्या होती है। इसी ताक में लगभग 1947 से पाकिस्तान भारत के साथ छद्म युद्ध करता रहा है। कभी वह अमेरिका से हथियार खरीद कर, तो कभी चाइना की मदद लेकर निरंतर भारत के प्रति षड्यंत्र कर उसकी अस्मिता को क्षति पहुंचाने की ताक में रहता है। अनेकों युद्ध भी इसी मानसिकता के कारण पाकिस्तान ने किया, किंतु उसे किसी भी युद्ध में सफलता नहीं मिल सकी।

1999 में भाईचारे का हाथ बढ़ा कर पीठ पर खंजर भोगने का कार्य भी इस पाकिस्तान देश ने किया।

भाईचारे का स्वांग रचा कर वह कारगिल और सियाचिन की चोटियों पर जा बैठा।

ऊंचाई का फायदा लेकर उसने भारतीय सैनिकों की काफी क्षति की किंतु भारतीय सेना का हौसला उस कारगिल से भी ऊंचा था जिस पर वह बैठे थे। विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिकों ने उनके हौसलों को तोडा और उन्हें कब्र में दफन तक कर दिया। इस संघर्ष में भारत की हमेशा की तरह विजय की प्राप्ति हुई यह दिन इतिहास में 26 जुलाई 1999 अतिथि के रूप में भी दर्ज है जिसे हम कारगिल विजय दिवस कहते हैं।

आशा है कारगिल विजय दिवस पर लिखा गया यह लेख आपको पसंद आया हो, आपके जानकारी की वृद्धि हो सकी हो अपने सुझाव या प्रश्न आदि के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।

Sharing is caring

Leave a Comment