फूल वालों की सैर का एक अलग ही महत्व है | फूल वालों की सैर का महत्त्व व उससे जुडी कहानी हम इस पोस्ट के द्वारा आप तक पंहुचा रहे हैं | आशा है आपको पसंद आएगा |
फूल वालों की सैर महत्व – phoolwalon ki ser
फूलवालों की सैर यह मात्र पर्व नहीं है बल्कि गंगा – जमुनी तहजीब है और भाईचारे का पर्व है। फूल वालों की सैर का आयोजन मुगल काल से चला आ रहा है। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने बंद करवा दिया था।
लेकिन आपसी सद्भाव और मेलजोल को देखते हुए 1961 में इसे फिर से शुरू करा दिया गया।
यह परंपरा दिल्ली के जलसा कैलेंडर के पर्व का खास पर्व माना जाता है।
दिल्ली में इस साल इस उत्सव को खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है।
आज हम फूल वालों की सैर पर विशेष वर्ग विस्तार से चर्चा करेंगे –
दिल्ली में महरौली स्थित हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह जहां पर फूल वालों की सैर का मुख्य उत्सव मनाया जाता है और फूल की चादर चढ़ाई जाती है।
निकट स्थित योगमाया मंदिर में फूलों का छत्तर चढ़ाया जाता है।
दिल्ली की संस्कृति में हिंदू – मुस्लिम एक साथ यह त्यौहार मनाते हैं
जहां होली , दिवाली मुसलमान लोग मिलकर मनाते हैं वही ईद , रमजान आदि त्यौहार को हिंदू लोग विशेष रूप से मनाते हैं। इसलिए यह खास पर्व माना जाता है , यह त्यौहार आपसी भाईचारे और सौहार्द सद्भावना का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
” भर दे झोली मेरी या मोहम्मद लौटकर मै न जाऊंगा खाली। “
अंतरराष्ट्रीय संदेश वाहक के रूप में फूल वालों की सैर देश की राजधानी दिल्ली में विशेष रूप से रंगारंग कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार फूल वालों की सैर महरौली स्थित दरगाह से लेकर इंडिया गेट और चांदनी चौक अथवा अन्य कई प्रमुख जगहों पर इसकी झांकी देखने को मिलती है।
यह गंगा – जमुनी तहजीब का प्रतीक है , इसमें आपसी प्रेम और भाईचारे के रूप में यह त्यौहार मुगल काल से मनाया जा रहा है यह कौमी एकता और भाईचारे के लिए विशेष रूप से त्यौहार मनाया जाता है।
यह त्यौहार परंपरागत रूप से प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
इस दिन लोग कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर जहां फूलों की चादर चढ़ाते हैं वही निकट स्थित योगमाया मंदिर पर पूजा-अर्चना भी करते हैं और फूलों का छत्तर भी चढ़ाते हैं। कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर चढ़ाए जाने वाले फूल देश के विभिन्न भागो से लाया जाता है जो तरह- तरह के सुगंध और एकता का प्रतीक के रूप में होता है।
जिसमें अंधविश्वास और वैमनस्य , सौहार्द के दुश्मनी की सारी दीवारें टूट जाती है।
इस त्यौहार की बुनियाद सभी धर्म की सहभागिता रही है।
फूल वालो की सैर से जुडी कहानी –
यह त्यौहार अकबर शाह द्वितीय के काल से निरंतर मनाया जा रहा है।
इस त्यौहार में बख्तियार काकी के दरगाह पर फूल की चादर उसके उपरान्त योग माया में चांदी के पंखा चढ़ाया जाता था। जिसपर अग्रेजों ने हिन्दू – मुस्लिम एकता को देखकर इस पर्व पर प्रतिबंध लगा दिया था। किंतु स्वतंत्रता के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति के तौर पर और प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस त्यौहार को पुनः आरंभ किया और पंखे के रूप में फूलों का पंखा दिया। इस पंखे पर विशेष रूप से हिंदू और मुस्लिम दोनों देवी – देवता की संयुक्त रूप से छवि अंकित की जाती है।
जो आपसी भाईचारा और सद्भाव को दर्शाती है।
अकबर के शहजादे जब बीमार थे तो उनकी बेगम ने यह मन्नत मानी थी कि जब वह सही हो जाएंगे ठीक हो जाएंगे , स्वास्थ्य लाभ होगा तो वह दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ आएगी और योग माया पर फूलों के पंखे चढ़ाएंगे। ईश्वर – अल्लाह ने उनके इस प्रार्थना को स्वीकार की तब से अकबर की बेगम ने निरंतर प्रतिवर्ष बख्तियार काकी की दरगाह पर और योग माया देवी के मंदिर पर पूजा अर्चना किया करती थी।
तीन दिवसीय त्यौहार
यह त्यौहार 3 दिन का मुख्य रूप से रहता है।
- पहले दिन कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के मजार पर फूलों की चादर चढ़ाई जाती है।
- दूसरे दिन निकट स्थित योगमाया मंदिर मैं फूलों की छत्तर और पंखे चढ़ाये जाते है।
- तीसरे दिन समापन के रूप में जहाज महल पर इसका समापन समारोह का आयोजन किया जाता है।
निष्कर्ष –
समग्रतः कहा जा सकता है कि भारत में बहती गंगा – जमुनी तहजीब आज की नहीं अपितु आदिकाल से चली आ रही तहजीब है। यहां किसी भी धर्म संप्रदाय के लोग एक – दूसरे के त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से और अपना समझ कर मनाते रहे हैं।
इसी भावना का प्रतीक है यह फूल वालों की सैर का त्यौहार।
आपसी मनमुटाव और छोटे-मोटे भेदभाव को भूलाकर इस दिन हर भारतवासी उस गंगा – जमुनी तहजीब में बंधना और उसका निर्वाह करना चाहता है। यही कारण है कि भारत विविध धर्म संप्रदाय का देश होते हुए भी शांति और सौहार्द का प्रतीक पूरे विश्व के मानचित्र पर बना हुआ है।
जहां दोनों धर्मों में हमेशा तनाव का माहौल बना रहता है उसे इस प्रकार के त्यौहार कम करने का काम करते हैं। इस प्रकार के त्यौहार एक बहुत अच्छा संदेश देते हैं जिसमें यह बताया जाता है कि बाहरी ताकतें अथवा लोग कितना भी तोड़ने की कोशिश कर ले लेकिन यह दोनों धर्म आपस में एकजुट रहकर त्योहार मनाएंगे और हंसी खुशी का माहौल देश में कायम रखेंगे।
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