रविंद्र नाथ टैगोर की हिंदी कहानियां – प्रस्तुत लेख में आप रविंद्र नाथ जी के जीवन में घटित घटनाओं को कहानी के माध्यम से पढ़ सकेंगे। यह कहानी उनके विचारों और उनके उद्देश्यों से प्रेरित है। यह किसी व्यक्ति के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकता है उनकी लगन इच्छाशक्ति आदि का अध्ययन किया जा सकता है।
रविंद्र नाथ टैगोर की हिंदी कहानियां
(Rabindranath Tagore short stories 1)
रविंद्र नाथ टैगोर किसान और दलित जीवन को काफी बारीकी से देखते थे। उनके मानवीय मूल्यों के ह्रास से वह काफी व्यथित थे। उनके मन में सदैव इस वर्ग की उपेक्षा के लिए कड़वाहट रहती थी। यह तबका सदैव शोषित और गुलाम ही रहा।
रविंद्र नाथ ने काफी विचार-विमर्श किया तो , आभास हुआ उस वर्ग में शिक्षा की कमी है। शिक्षा के अभाव में यह वर्ग सदैव शोषित रहा है। सदैव दूसरों को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ सका है। टैगोर जी ने शिक्षा को समाज के पृष्ठभूमि तक पहुंचाने का प्रण लिया।
कोलकाता शहर से कुछ दूर शांति निकेतन आश्रम की स्थापना करने का मन बना लिया। जब उन्होंने आश्रम के विषय में अपनी पत्नी को बताया तो वह हंस पड़ी।
आप सदैव विद्यालय शिक्षा से भागते रहे हैं , आप अब उसी शिक्षा को बढ़ावा देंगे ? काफी विचार-विमर्श के बाद रविंद्र नाथ ने अपनी पत्नी को बताया यह पारंपरिक विद्यालय नहीं बल्कि गुरुकुल की भांति होगा। जहां शिक्षक और विद्यार्थी के बीच किसी प्रकार की कोई दूरी नहीं होगी। कोई चारदीवारी नहीं होगी।
शिक्षा प्रकृति के सानिध्य में होगा। प्रकृति शिक्षा का मूल स्रोत है। प्रकृति से प्रेरित होकर शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। शिक्षार्थी में नैतिक , चारित्रिक और मानसिक बुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। किताबी शिक्षा को जीवन में किस प्रकार उतारा जाए , उस पर विचार विमर्श होगा। छड़ी के बल पर रटंत शिक्षा का यहां कोई स्थान नहीं होगा।
पत्नी ने गुरुकुल के विचार पर अपनी सहमति जताई , तत्पश्चात शांतिनिकेतन की स्थापना हो सकी।
रविंद्र नाथ ने शांतिनिकेतन का द्वार समाज के उन पिछड़े लोगों के लिए खोल दिया जो शिक्षा से सदैव बंचित रहे थे। रविंद्र नाथ के लग्न और निस्वार्थ परिश्रम को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें “गुरुदेव” की उपाधि प्रदान की थी।
गुरुदेव ने शांतिनिकेतन के अलावा अन्य विद्यालय की स्थापना की। यह विद्यालय समाज के हास्यि स्तर पर रह रहे लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए था।
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मोरल –
- अशिक्षा परतंत्रता का कारण है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति स्वयं अपने को नहीं जान सकता।
- प्रकृति से मिली हुई शिक्षा जीवन के उद्देश्यों को बताती है।
- रटंत विद्या से बेहतर प्रकृति का सानिध्य है।
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समापन-
रविंद्र नाथ टैगोर धार्मिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने बंगला साहित्य में ऐसे रचनाएं की जो सामाजिक क्रांति को प्रेरित करता है। उन्हें शिक्षित करने तथा नैतिकता का पाठ पढ़ाने का कार्य करता है। स्वतंत्रता आंदोलन में रविंद्र नाथ टैगोर का साहित्य निश्चित रूप से लोगों को अपने देश प्रेम के लिए प्रेरित कर रहा था। इनके योगदान को स्वाधीनता संग्राम में भुलाया नहीं जा सकता। इनकी कहानियां जो अंग्रेजी का बांग्ला अनुवाद है वह लोगों को अधिक लोकप्रिय लगा। इनकी मौलिक रचनाएं भी लोगों को स्वाधीनता संग्राम में प्रेरित करती है। आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो, अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।