यहां रौद्र रस की समस्त जानकारी उपलब्ध है। रौद्र रस की की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि का संपूर्ण विवरण इस लेख में हासिल करेंगे।
परिभाषा
जहां क्रोध की व्यंजना हो वहां रौद्र रस माना जाता है। काव्य के अनुसार सहृदय में वासना रूप से विद्यमान क्रोध नामक स्थाई भाव अपने अनुरूप विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से जब अभिव्यक्त होकर आस्वाद रूप धारण कर लेता है तब वहां रौद्र रस माना जाता है।
रस का नाम | रौद्र रस |
रस का स्थाई भाव | क्रोध |
आलम्बन | अपराधी व्यक्ति ,शत्रु ,विपक्षी , दुराचारी ,लोक पीड़ा , अत्यचरी , अन्यायी । |
उद्दीपन | अनिष्ट कार्य ,निंदा ,कठोर वचन , अपमानजनक वाक्य। |
अनुभाव | आँख लाल होना ,होठों का फड़फड़ाना ,भौंटों का रेढा होना ,दांत पीसना ,शत्रुओं को ललकारना ,अस्त्र-शस्त्र चलाना। |
संचारी भाव | मोह ,उग्रता ,आशा ,हर्ष ,स्मृति ,भावेग ,चपलता ,मति ,उत्सुकता ,अमर्ष आदि। |
रौद्र रस का स्थाई भाव क्या है?
यहां रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध होगा। क्योंकि क्रोध के कारण ही व्यक्ति में रौद्र रूप का आवरण होता है। अतः यहां क्रोध को रौद्र रस का स्थाई भाव माना जाता है।
रौद्र रस के उदाहरण
1.
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे
लव शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ खड़े। ।
महाभारत युद्ध से पूर्व श्री कृष्ण , अर्जुन को उपदेश देते हैं। इस उपदेश में जीवन और कर्म के मर्म को समझाते हैं।
अर्जुन जब जीवन के वास्तविकता को समझ जाता है और शत्रुओं को दंड देना शास्त्र के अनुसार उचित पाता है , तब वह गर्जना करते हुए उठ खड़ा होता है और अपने दोनों हाथों को मिलते हुए अपने रण पराक्रम को दिखाने के लिए तत्पर होता है।
इसके लिए वह अपने सगे-संबंधियों को भी दंड देने के लिए तत्पर है। यह घोषणा करते हुए वह क्रोध में उठता है।
2.
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार
धनुही सम त्रिपुरारी द्युत बिदित सकल संसार। ।
सीता स्वयंवर में जब परशुराम-लक्ष्मण संवाद होता है। लक्ष्मण , परशुराम के क्रोध को बढ़ावा देते हैं , उनके क्षत्रिय धर्म और बाहुबल को ललकारते हैं।
तब परशुराम क्रोध के बस लक्ष्मण पर वार करना चाहते हैं किंतु उन्हें बार-बार राम तथा राजा जनक रोक देते हैं।
इस क्रोध में वह लक्ष्मण को कहते हैं कि –
‘ हे राजकुमार तू काल के वशीभूत होकर अनाप-शनाप बोल रहा है। जिसे तू छोटा धनुष मान रहा है , वह शिवनाथ, शिव शंकर का है और तुम मेरे क्रोध से आज नहीं बचने वाला नहीं।’
ऐसा कहते हुए परशुराम के क्रोध की अभिव्यंजना यहां हुई है।
अन्य उदाहरण
3.
सुनत लखन के बचन कठोर। परसु सुधरि धरेउ कर घोरा
अब जनि देर दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालक बध जोगू। ।
उपरोक्त प्रसंग सीता स्वयंवर का है , जिसमें लक्ष्मण के द्वारा मुनि परशुराम को भड़काने क्रोध दिलाने का प्रसंग है। लक्ष्मण परशुराम के क्रोध को इतना बढ़ा देते हैं कि वह बालक लक्ष्मण का वध करने को आतुर होते हैं।
उनकी भुजाएं फड़फड़ाने लगती है।
इसे देखकर वहां दरबार में उपस्थित सभी राजा-राजकुमार थर-थर कांपने लगते हैं। क्योंकि परशुराम के क्रोध को सभी भली-भांति जानते हैं।
4.
क्या हुई बावली
अर्धरात्रि को चीखी
कोकिल बोलो तो
किस दावानल की
ज्वालाएं है दिखीं ?
कोकिल बोलो तो। ।
उपयुक्त पंक्ति कैदी और कोकिल कविता से ली गई है , जिसमें कवि कोयल के चीखने पर उससे प्रश्न करता है। कोयल का चीखना कोई अपशगुन की ओर संकेत करता है। कोई भयानक दृश्य की और इशारा करता है।
क्योंकि कोयल की आवाज सदैव मन और हृदय को प्रिय लगती है।
किंतु अर्धरात्रि के समय कोयल का चीखना बड़ी अनहोनी की ओर संकेत करता है।
यहां कोयल के क्रोध का वर्णन है।
रौद्र रस की समस्त जानकारी
रौद्र रस के विषय में साहित्यकारों में पर्याप्त मतभेद है। कुछ विद्वान रौद्र रस में सात्विकता का अनुभव करते हैं और कुछ तामसिक।
किंतु रौद्र रस के स्थाई भाव क्रोध को तामसिक मानना भ्रांति ही होगा।
सामान्य अलौकिक क्रोध को तो भले ही अनुचित और असात्विक कहा जाए , किंतु स्थाई भाव क्रोध सर्वथा दर्शनीय उदात अनुभूति है।
वह जीवन में न्याय-नीति की रक्षा का सम्बल है।
विद्वानों ने रौद्र रस के क्रोध का उदात रूप न समझकर बीभत्स , भयानक आदि अन्य रसों की तरह रौद्रता या उध्दता को ही रौद्र रस मान लिया है।
रौद्र रस और युद्धवीर में आश्रय की प्रवृत्ति का अंतर स्पष्ट होता है।
युद्धवीर में विजय यही लक्ष्य रहता है , जबकि रूद्र रस के अनुसार क्रोध पात्र यही प्रत्यक्ष लक्ष्य रहता है। युद्धवीर में लड़ाई और युद्धउत्साह , साहस आदि का वर्णन होता है , जबकि रौद्र रस में क्रोध संचारी रूप में रहता है।
यह शत्रु के कटु वचन या किसी अपराध जने उत्तेजित कार्य आदि के कारण होता है।
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निष्कर्ष –
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि क्रोध का जहां संचार होता है , वहां रौद्र रस माना जाता है। इसका स्थाई भाव क्रोध है। यह क्रोध सात्विक माना गया है , जो क्षण भर के लिए प्रकट होता है और लुप्त हो जाता है। जिस प्रकार पानी के बुलबुले उत्पन्न होते हैं और लुप्त हो जाते हैं , ठीक उसी प्रकार क्रोध भी क्षणिक होता है।
यह रस विभाव , अनुभाव तथा संचारी भाव आदि के मिश्रण से प्रकट होता है। उपर्युक्त लक्षण बताए गए हैं। आशा है या लेख आपको पसंद आया हो , आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो तथा आपके रुचि को जागृत किया हो।
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