समाजशास्त्र। Samajshastra का अर्थ एवं परिभाषा। sociology

जो विज्ञान समाज के लिए हो उन्हें हम साधारण शब्दों में समाजशास्त्र कहते हैं। समाजशास्त्र के अंतर्गत समाज के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन किया जाता है। प्रस्तुत लेख में समाजशास्त्र का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे तथा विभिन्न पहलुओं को भी बारीकी से जानेंगे।

समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा Samajshastra

समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है।

इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है।

परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।

अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है।

जैसे भारतीय समाज, ब्राह्मण समाज, वैश्य समाज, जैन समाज, शिक्षित समाज, धनी समाज, आदि।

समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था।

हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति, माता – पिता के पुत्र के प्रति, पुत्र के माता – पिता के प्रति, गुरु के शिष्य के प्रति, शिष्य के गुरु के प्रति, समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति, व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है।

भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।

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हमारे देश के बाद इस क्षेत्र में यूनान (ग्रीस) का नाम आता है। यूनानी दार्शनिक प्लेटो 427 से 347 ईसवी पूर्व पाश्चात्य जगत में सबसे पहले व्यक्ति हैं , जिन्होंने समाज के स्वरूप की व्याख्या करने का प्रयत्न किया।

उसके बाद उसके शिष्य अरस्तु 384 से 322 ईसा पूर्व ने मनुष्य को एक चेतन एवं सामाजिक प्राणी के रुप में स्वीकार कर उसे आपसी संबंधों के अध्ययन का शुभारंभ किया।

पाश्चात्य जगत में यह दोनों व्यक्ति समाज शास्त्र के आदि विचारक माने जाते हैं।परंतु स्वतंत्र शास्त्र के रूप में समाजशास्त्र का विकास 19वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ।

फ्रांसीसी दार्शनिक कॉम्टे 1778 से 1857 ईस्वी सबसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने समाज के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ किया।

प्रारंभ में तो उन्होंने अपने इस अध्ययन को सोशल फिजिक्स सोशल फिजिक्स की संज्ञा दी, परंतु आगे चलकर इसमें कुछ सोशियोलॉजी शब्द का प्रयोग किया।

वह समाजशास्त्र के जनक माने जाते हैं।

कॉम्प्टे के बाद इंग्लैंड में हर्बर्ट स्पेंसर ने इस क्षेत्र में कार्य किया 1876 में उनकी प्रिंसिपल ऑफ सोशियोलॉजी नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।

इसमें समाजशास्त्र के स्वरूप एवं विषय क्षेत्र को निश्चित करने का प्रयत्न किया गया है।

इसके बाद फ़्रैडिक लेप्ले, डंकन, मैकाइवर, बोगर्डस, मैरिल तथा एलरिज ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है।

यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचन और विवेचनात्मक विश्लेषण की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है।

अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है।

समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले संपर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है।

समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है।

परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रीयता सामाजिक स्तर-विन्यास (या “वर्ग”), सामाजिक संबंध, सामाजिक संपर्क, धर्म, संस्कृति और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है।

चूंकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसे, चिकित्सा, सैन्य और दंड संगठन, जन-संपर्क और यहां तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है।

सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है।

20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया।

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निष्कर्ष –

उपरोक्त लेख में हमने पाया की समाजशास्त्र के अंतर्गत समाज के विभिन्न पहलुओं – शिक्षा, सामाजिक संरचना, धर्म, जाति, आर्थिक व्यवस्था आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करते हैं।

इसे समाज का विज्ञान कहा गया है। विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने मत से समाजशास्त्र को परिभाषित भी किया है।

आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो, आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो, संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।

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34 thoughts on “समाजशास्त्र। Samajshastra का अर्थ एवं परिभाषा। sociology”

    • आगे की जानकारी दी जाएगी । अगर आपके मन में और कोई सवाल है तो जरूर पूछें

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      • इसमें अगर समाजशास्त्र के साथ निर्देश को जोड़कर लिखना हो तो कैसे लिखेंगे…. निर्देश किस सन्दर्भ में होंगे ?

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        • मेरा यह सवाल शिक्षा क्षेत्र से सन्दर्भित है

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  1. Sir.
    Sarswati maa Ke Sambandh mein kaise julus licence Thana Prabhari par awedan patra likhenge kripya hamari dehati hindi bhasha bata dijiye taki agle sal fhir se awedan patra de sakenge maa sarswati ke julus licence ke liye
    Please please sir
    Send now

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  2. मैं ये जनना चाहता हु। की खेल में समाज शास्त्र कैसा
    होता है।

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    • कॉमेंट करने के लिए धन्यवाद खेल में समाजशास्त्र का अहम रोल इस प्रकार होता है खेल के माध्यम से एक बालक में नेतृत्व करने की क्षमता का विकास देखा जाता है उसके माध्यम से व समाज में सहयोग की भावना का विकास कर पाता है

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  3. समाज सस्त्र की सब्जेक्ट जॉब की कितने अवसर है बतवो

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  4. हमे समाजशास्त्र का अध्यन सरलतापूर्वक करना है तो इसका विश्लेषण कैसे करें।

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    • You’re welcome, read our other awesome educational posts too which we basically write for college students.

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  5. समाजशास्त्र की उत्पत्ति के पीछे उत्तरदायी कारकों की चर्चा कीजिए

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    • अवश्य आप हमसे जुड़े रहे निश्चित रूप से लिखेंगे

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  6. Good evening sir ji

    Maine sociology से M. A. Cmplt किया है
    इससे related कोई job ya social work हो तो जानकारी दीजिएगा

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    • You’re welcome payal kumari. We will update this article with more information in future.
      Remain up to date with our website

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  7. Sociology ——
    समाज के सामाजिक सबन्ध के विषज में है

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  8. Hello sir
    mujhe eske aage ka matter chahiye sociology ka
    Definition nature difference between educational sociology and education

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