इस लेख में शांत रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि का विस्तृत रूप से व्याख्यात्मक रूप प्रस्तुत है।
विद्यार्थी इस लेख को पढ़कर संबंधित विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं , क्योंकि यह विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर की पहचान करके लिखा गया है। विद्यार्थी को जहां कठिनाई महसूस होती है , उसे चिन्हित कर सरल बनाया गया है।
परिभाषा:- जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन से मोहभंग होता है वहां शांत रस की निष्पत्ति मानी जाती है। तत्वज्ञान और वैराग्य से शांत रस की उत्पत्ति मानी गई है। जो अपने अनुरूप विभाव ,अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर आस्वाद्य का रूप धारण करके शांत रस में परिणत हो जाता है।
स्थायी भाव:- इसका स्थाई भाव निर्वेद या शम है।
शांत रस का स्थाई भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव
रस का नाम | शांत रस |
रस स्थाई भाव | निर्वेद |
आलम्बन | संसार की क्षणभंगुरता ,कालचक्र की प्रबलता , |
अनुभाव | स्वार्थ-त्याग , सयंम-नियम ,अपना सबकुछ बाँट देना ,सत्संग करना ,प्रपंचों से बचना ,गृह त्याग ,संसार के प्रति मन न लगना ,उच्चाटन का भाव या चेष्टाएँ |
संचारी भाव | धृति ,मति ,विबोध ,चिंता ,हर्ष ,स्मृति ,संतोष ,विश्वास ,आशा। |
उद्दीपन | जीवन की अनित्यता , सत्संग , धार्मिक-ग्रंथों का अध्ययन- श्रवण , तीर्थाटन आदि |
मन में किसी अपार खुशी के त्याग या जगत से वैराग्य भाव जागृत होने के उपरांत मन में अपार शांति की अनुभूति होती है। जो सभी सुख-दुख आदि का शमन करती है , जिसे निर्वेद कहा जाता है। अतः शांत रस का स्थाई भाव निर्वेद माना गया है।
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शांत रस के उदाहरण
1
मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु , करम वचन भरु हीते
सहसबाहु दस बदन आदि नृप , बचे न काल बलीते। ।
उपयुक्त पंक्ति में तुलसीदास जी ने संसार का सत्य बताया है कि समय चूकने के बाद मन पछतावा है।
अतः मन को सही समय पर सही कर्म के लिए प्रेरित करना चाहिए।
तुलसीदास की यह वाणी जीवन का सत्य एवं संसार की असारता का वर्णन है , यह सभी शांत रस के उदाहरण माने गए हैं।
2
पूरन देवी मंदिर में कौन पड़ी हाय उर्मिला मूर्छित पड़ी। ।
(यह पंक्ति का शुद्ध रुप नहीं है स्मृति के आधार पर लिखा गया है )
उपर्युक्त पंक्ति में लक्ष्मण के विरह से उर्मिला की स्थिति विक्षिप्त अवस्था की हो गई थी।
जिसे खाने पीने आदि की सुध नहीं थी। उसके मन में नितांत शांति और प्रियतम से मिलने की तीव्र कामना थी।
जिसके कारण वह शिथिल हो गई थी उसके मानसिक अवस्था के कारण यह शांत रस होगा।
3
ओ क्षणभंगुर भाव राम राम
सिद्धार्थ जब सांसारिक मोह माया को त्याग कर मोक्ष प्राप्ति के लिए सिद्धि के मार्ग पर चल पड़े थे।
उन्होंने इस संसार को क्षणभंगुर बताते हुए अपना संपूर्ण राज-पाठ, वैभव का त्याग किया था।
यहां तक कि उन्होंने अपनी पत्नी और छोटे से बालक राहुल का भी त्याग किया था जो साधारण मनुष्य के लिए आसान नहीं है।
उनके भीतर वैराग्य जागृत हुआ था बताया शांत रस का उदाहरण है।
शांत रस की समस्त जानकारी
आचार्यों ने शांत रस के स्थाई भाव को निर्वेद या शम माना है। निर्वेद से अभिप्राय अलौकिक निस्पृहता से है और शम से अभिप्राय व्यक्तिगत इच्छा के शमन से है।
जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी इच्छाओं , सांसारिक सुख आदि का त्याग करता है।
जिसके बाद उसके भीतर वैराग्य उत्पन्न होता है।
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निष्कर्ष –
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जहां व्यक्तिगत , अपेक्षाओं का शमन किया जाता है।
स्वार्थ , मोह-माया आदि के बंधनों से छुटकारा मिलता है , वहां मन को एक अपार शांति प्रदान होती है।
जिसे साधारण भाषा में कहें तो व्यक्ति के भीतर वैराग्य की भावना जागृत होती है। यह परम शांति ही शांत रस का द्योतक है।
इसके स्थाई भाव निर्वेद तथा शम है।
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सर अपने शांत रस के बारे में बहुत अच्छा बताया हैं।