यह कदम का पेड अगर माँ हिंदी कविता | yah kadam ka ped agar maa | hindi poem

कदम का पेड यह कदंब का पेड़ अगर माँ , होता यमुना तीरे , में भी उसपर बैठ कन्हैया बनता धीरे – धीरे। ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली , किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली। तुम्हे नहीं कुछ कहता पर में चुपके – चुपके आता उस नीची डाली …

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