16 दिसंबर 1971 में पाकिस्तान पर भारतीय सेना के विजय को हम विजय दिवस या विक्ट्री डे के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाते हैं। यहां से एक नए देश, बांग्लादेश की स्थापना भी देखने को मिलता है।
इस लेख में हम 1971 के विजय दिवस पर विशेष रूप से अध्ययन करेंगे और उस समय की परिस्थिति तथा भारतीय सेना के शौर्य, पराक्रम, अदम्य साहस और उनके बलिदान को नमन करेंगे।
यह लेख भारतीय सेना के पराक्रम को समर्पित एक निबंध स्वरूप है।
विजय दिवस पर निबंध
1947 में भारत को दो खंडों में विभाजित किया गया था। एक हिस्सा पाकिस्तान तथा दूसरा हिस्सा हिंदुस्तान। दोनों देशों के विभाजन उपरांत निरंतर असंतोष, आक्रोश का माहौल बना रहा। पाकिस्तान की ओर से निरंतर छल और युद्ध जैसा माहौल बना रहा। जिसका परिणाम हम 1947 में विभाजन के बाद निरंतर देख सकते हैं।
पाकिस्तान का विभाजन अंग्रेजों ने दो खंड में किया था – पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान के निवासी सदैव पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से परेशान थे। पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में पर्याप्त रोष का माहौल था। यहां के क्षेत्र पर पाकिस्तानी सेना तथा वहां के लोग खूब अत्याचार कर रहे थे। वहां लूटपाट करना, भेदभाव करना, अत्याचार करना, तथा निर्मम हत्या जैसे बर्ताव ने पश्चिमी पाकिस्तान को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहे थे।
इन सभी अत्याचारों के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान निरंतर अलग देश की मांग करता रहा।
दोनों के बीच गहरा युद्ध छिड़ गया। दोनों देशों के बीच भारत जैसा शक्तिशाली राष्ट्र खड़ा था।
इसलिए पश्चिमी पाकिस्तान को भारत की सहमति के बिना पूर्वी पाकिस्तान में आने जाने पर पाबंदी थी। 3 दिसंबर 1971 को जनरल के ए.ए. नियाजी जी के नेतृत्व में पश्चिमी पाकिस्तान ने भारत के ग्यारह क्षेत्रों पर हमला कर दिया।
जिसमें भारत ने पूर्वी पाकिस्तान का साथ देते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्यवाही आरंभ की।
भारत के फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नेतृत्व में सेना ने भीषण युद्ध किया।
जिसमें भारतीय सेना के लगभग 1400 युद्ध वीरो ने अपना सर्वश्रेष्ठ बलिदान दिया और इस युद्ध में पाकिस्तान का वह हश्र कर दिया कि वह तेरह दिन में त्राहि-त्राहि करने लगा। पाकिस्तानी सेना के जनरल ए ए नियाजी ने 93000 सैनिकों के साथ भारत की सेना के सामने अपने घुटने टेक दिए। भारतीय सेना सदैव सभी का सम्मान करती है। युद्ध में मारे गए सैनिकों के शव को ससम्मान लौटाया गया। जिन शव को पाकिस्तान ने लेने से मना कर दिया उन्हें भारत की जमीन पर दफनाया गया।
साथ ही 93000 सैनिकों को युद्ध बंदी के रूप में कई दिनों तक खाना भी खिलाया।
भारत को यह विजय 16 दिसंबर 1971 के दिन प्राप्त हुआ था। अतः भारत में 16 दिसंबर के दिन युद्ध में शहीद हुए उन युद्धवीर महान सैनिकों को श्रद्धांजलि के रूप में विजय दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत के सहयोग से बांग्लादेश की स्थापना भी हुई। अब पूर्वी पाकिस्तान एक अलग राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में स्थापित हो चुका था। जिसे पाकिस्तान के अत्याचार तथा भेदभाव से मुक्ति मिल गई थी।
यह सभी भारतीय सेना के शौर्य पराक्रम से प्राप्त हुई थी।
कारगिल विजय दिवस और विजय दिवस में क्या अंतर है ?
कारगिल विजय दिवस हम 26 जुलाई को मनाते हैं।
इस दिन हमारे युद्ध वीरों ने कारगिल की कठिन चोटियों पर बैठे दुश्मन को परास्त कर उन पर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी। यह विजय भारत को 26 जुलाई 1999 को मिली थी, जिसे हम कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। विजय दिवस या विक्ट्री डे के रूप में हम 16 दिसंबर को उत्सव मनाते हैं। यह भारतीय सेना के शौर्य पराक्रम को प्रदर्शित करने वाला दिन है। जिसमें पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान के बीच शांति बहाल करने के लिए भारत की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान का साथ देते हुए पाकिस्तान के साथ युद्ध किया था।
जिसमें पूर्वी पाकिस्तान के रूप में बांग्लादेश का जन्म हुआ।
यह युद्ध भारत ने 16 दिसंबर 1971 को जीता था यह विजय इतनी बड़ी थी कि पाकिस्तानी सेना के जनरल ने अपने 93000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया था।
कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई तथा विजय दिवस 16 दिसंबर को मनाते हैं।
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विजय दिवस पर कविता
भारत माता के वीर
सपूत चले जब मस्तानी चाल है।
दुश्मनों के छक्के छूट जाते
हो जाता बुरा हाल है।
घर में पुष्कर आया था जब
वीरों ने उन्हें मार भगाया था।
खंड खंड कर दिए देश उनके
तब उन्हें समझ आया था।
भारत के वीर सपूतों के
समक्ष घुटने टिकाया था।
देश के नक्शे पर तब
बांग्लादेश उभर आया था।
मिली थी आजादी
अन्याय अत्याचार से
यह सब भारत के वीरों ने
दोनों हाथों से उन्हें दिलाया था।
ना कोई आया शव को लेने
उनको भी सम्मान से दफनाया था।
जो युद्ध बंदी हुए थे उनको
सम्मान दे खूब खिलाया था।
जाते-जाते युद्ध बंदियों ने
इस देश को श्रेष्ठ बताया था।
(हिंदी विभाग)
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निष्कर्ष
भारतीय सेना विश्व में चौथे स्थान पर है, इसके अदम्य साहस और शौर्य का कोई सानी नहीं है। विकट परिस्थितियों तथा कम संसाधनों में भी भारतीय सेना एक अभूतपूर्व जीत दर्ज कर सकती है, जैसा कि हमने इस युद्ध में देखा। इसके बाद भी 1999 में जब पाकिस्तानी सेना छल से पर्वत की ऊंचाइयों पर जा बैठी थी, इस विकट परिस्थिति में जहां अन्य देशों की सेना हथियार डाल देती है। वहां भारतीय सेना ने अपना परचम लहराया था।
विजय दिवस वर्ष में एक बार 16 दिसंबर को मनाया जाता है। यह बांग्लादेश के जन्म तथा पाकिस्तान का दो खंडों में विघटन के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन भारतीय सेना ने अपने अकरम का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान को सबक सिखाया था। साथ ही बांग्लादेश की जनता को पाकिस्तान के अत्याचार से मुक्त कराया था।
इस युद्ध में पाकिस्तान ने अपने 93000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था यह विश्व के इतिहास में दर्ज है।