21 Ram bhajan lyrics, राम भजन, गीत, गाने का संग्रह

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यहां आप प्रभु श्री राम के 21 भजनों का संकलन प्राप्त करेंगे। यहां लिखे भजनों की विशेषता यह है कि वह शब्दार्थ तथा भावार्थ के साथ लिखा गया है , जो श्रद्धालु को समझने तथा गाने और उसके उद्देश्य को जानने में सहायता करेगी।

प्रभु श्री राम जो दशरथ नंदन है , इनका जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने अपने जीवन में जो उच्च आदर्श समाज के सामने प्रस्तुत किए वह अतुलनीय है। उनके मर्यादित व्यवहार के कारण ही उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र प्रभु श्रीराम सदैव रहे हैं।  किसी भी प्रकार से श्री राम की भक्ति प्राप्त करना साधक को उच्च जीवन के लिए प्रेरित करता है।

Table of Contents

राम भजन – Ram bhajan lyrics collection in Hindi

कुछ सौ वर्षों पूर्व उनके जन्म भूमि पर कुछ आक्रमणकारियों ने अपने विकृत मानसिकता की जो छाप छोड़ी , आज वह सब समाप्त हो गया है और पुनः अयोध्या जय श्री राम के भवन मंदिर का निर्माण आरंभ हो रहा है यह हिंदू आस्था का विजय उत्सव है।

1. राम मंदिर निर्माण गीत (जय श्री राम जय जय श्री राम) – First Ram Bhajan

जय श्री राम जय जय श्री राम ,

शुरू हुआ मंदिर निर्माण

जय श्री राम जय जय श्री राम ,

शुरू हुआ मंदिर निर्माण। ।

 

आओ हम सब करें समर्पित , तन-मन-धन प्रभु राम के नाम

जय श्री राम जय जय श्री राम , शुरू हुआ मंदिर निर्माण। । 

 

पांच शतक वर्षों से जो दिन , ताक रही आंखें अविराम

पुरुषोत्तम श्री राम प्रभु कब , आएंगे अपने श्री धाम

आज दिवस वह पावन आया , शुरू हुआ मंदिर का काम

जय श्री राम जय जय श्री राम , शुरू हुआ मंदिर निर्माण। । 

 

नाम अयोध्या पावन धाम , जन्मे जहां प्रभु श्री राम

जिसके लिए गवाएं अब तक , लक्ष-लक्ष युवकों ने प्राण

तन-मन-धन हम करें समर्पित , रचने पुनः प्रभु का धाम

जय श्री राम जय जय श्री राम , शुरू हुआ मंदिर निर्माण। ।

 

ऋषियों की ही रक्षा हेतु , रहे सदा संकल्पित राम

समरस,करुणा,प्रेम भाव से , जिए सदा कौशल पति राम

बने राष्ट्रमंदिर और जग में , अमर बने भारत का नाम

जय श्री राम जय जय श्री राम , शुरू हुआ मंदिर निर्माण। । 

 

आओ हम सब करे समर्पित , तन-मन-धन प्रभु के नाम

जय श्री राम जय जय श्री राम , शुरू हुआ मंदिर निर्माण। ।

शब्दार्थ – समर्पित – देना/अर्पण  ,   पांच शतक – पांच सौ , अविराम – बिना विश्राम किये , परुषोतम – जो पुरुषों में उत्तम हो , धाम – गृह/घर/भवन , दिवस – दिन , पावन – शुभ , लक्ष-लक्ष – लाखो लाख , संकल्पित – वचनबद्ध/तत्पर , समरस – जिसमे सभी रस मिले हो/एक भाव , कौशल – अयोध्या अमर – जो कभी न मरे/मिटे

भावार्थ – 

भारत में राम हिंदू धर्म के आस्था का केंद्र माने जाते हैं। कुछ सौ वर्ष पूर्व भारत में आक्रमणकारी घुस आए थे और प्रभु श्री राम के जन्म स्थल को अपने धर्म के रंग में रंग दिया तथा हिंदुओं के आस्था पर चोट किया। आज पांच सौ वर्ष की प्रतीक्षा के बाद पुनः श्री राम का मंदिर बनने जा रहा है।

हिंदू पांच सौ वर्षों से अपने प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने का निरंतर प्रतीक्षा कर रहा था। खुली आंखों से दिन-रात श्री राम के पुनः आगमन के सपने देखा करता था। आज वह समय आ गया है इसके लिए हम सभी भक्तों को तन-मन-धन से समर्पित होकर प्रभु श्री राम के मंदिर निर्माण में जुट जाना चाहिए।

जिसमें राम लला का बाल्यकाल बिता हो उस भवन रूपी मंदिर को पुनः निर्माण किया जाना चाहिए।

इस राम मंदिर के निर्माण के लिए कितने ही साधु-संत-महात्माओं तथा नव युवकों ने अपने प्राण की आहुति इस यज्ञ में दी। आज उस राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है जो गौरव की बात है। उस पावन धाम को पुनः बसाया जा रहा है जो स्वर्ग से भी सुंदर है। जिसका नाम अयोध्या है जो श्रेष्ठ धामों में से एक है।

जो श्री राम सदा ऋषि-मुनियों यज्ञ आदि की रक्षा के लिए जीवन भर संकल्पित रहे अर्थात किसी भी संकट को दूर करने के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहे। जिन्होंने समाज के बीच समानता की भावना उत्पन्न की प्रेम , करुणा आदि को मिश्रित कर समाज को निर्मित किया। ऐसे अयोध्या पति श्री राम का मंदिर भारत में बनने जा रहा है , जिससे अयोध्या धाम का नाम तो अमर होगा साथ ही भारत का नाम भी अमर होने वाला है।

आओ हम सब तन मन से प्रभु श्री राम के मंदिर निर्माण में योगदान दें। छोटा सा भी योगदान श्री राम के चरणों में अपनी सेवा हो सकती है।

2 पायो जी मैंने राम रतन धन पायो –  ( Second Ram Bhajan )

 

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु
कृपा कर अपनायो। ।

 

जन्म जन्म की पूंजी पाई
जग में सभी खोआओ। । 

  

खर्च ना खूटे, चोर ना लूटे
दिन दिन बढ़त सवायो। ।  

सत की नाव खेवतिया सतगुरु
भवसागर तरवायो। ।

 

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
हर्ष हर्ष जस गायो। । 

शब्दार्थ – अमोलिक – अनमोल ,  सतगुरु – ईश्वर , पूंजी – धन , सवायो – सवा , खेवतिया – पार लगाना ,

भावार्थ –

मनुष्य का जीवन बेहद ही अनमोल होता है , जो ईश्वर की सेवा करने का तथा आत्म-साधना करने का एक अवसर होता है। इस जीवन में भक्ति रूपी जो ज्ञान प्राप्त होता है , वह अन्यत्र कहीं भी दुर्लभ है। इस ज्ञान और भक्ति का फल उसी को प्राप्त होता है जो जन्म जन्म से भक्ति करता है।  ईश्वर का सानिध्य उसी को मिलता है जो सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति करता है प्राणियों में समभाव रखता है।

इस भक्ति रूपी धन को कोई लूट नहीं सकता कोई चोरी नहीं कर सकता और यह कभी खर्च नहीं होती। यह बांटने से और बढ़ता है। प्रेम के कारण यह भक्ति रूपी धन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है और ऐसे व्यक्ति के जीवन रूपी नाव को ईश्वर स्वयं पार लगाता है। अर्थात उसे मोक्ष तथा मुक्ति स्वयं ईश्वर देते हैं। ऐसे ही भक्ति काल में मीरा हुई , जिसने अपना राजपाट छोड़कर प्रभु श्री कृष्ण , गिरिधर नागर की भक्ति साधना की और जग में भक्ति की ज्योत जलाकर स्वयं अमर हो गई।

 

3 रघुपति राघव राजा राम – ( Third Ram Bhajan )

 

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम। । 

सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालग्राम। ।

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम। ।

भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम। ।

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम। ।

जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम। ।

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम। ।

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम। ।

शब्दार्थ – रघुपति – रघुकुल के राज , राघव – राम ,  विग्रह – टुकड़ा , मेघश्याम – बादल के समान काला ,  भद्रगीश्वर – पर्वत के स्वामी , जानकीरमणा – सीता के राम ,

भावार्थ –

रघुकुल के राजा राम जो सीता के बिना अधूरे हैं , उन्हें प्रेम से सीताराम भी पुकारा जाता है। वह श्री राम जो पतित पावन है जो गिरे हुए को भी अपनी शरण में प्राप्त करते हैं और उसको अपने धाम में स्थान देते हैं। ऐसे श्री राम को नमन है।

श्री राम का वर्ण मेघों के समान श्याम है , जो गंगा , तुलसी और शालिग्राम मैं भी उनका रूप प्रदर्शित होता है। ऐसे प्रभु श्री राम जो अयोध्या के राजा है और सीता के पति हैं उनको प्रणाम।

प्रभु श्री राम जो पर्वतों के भी राजा हैं , वह भक्तजन प्रिय हैं भक्तों में सदैव उनका मान है जो भक्तवत्सल है वह सीताराम को प्रणाम है। सीता के जो पति है जिनका स्मरण सदैव सीता करती है ऐसे श्री राम को जय है जो अपनी शरण में पतितों को भी लेते हैं और उन्हें बारम्बार प्रणाम हैं।  ऐसे रघुपति राघव राजा राम की जय जयकार है।

4 हम राम जी के राम जी हमारे है – ( Fourth Ram Bhajan )

हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं। । 

मेरे नयनो के तारे हैं
सारे जग के रखवारे हैं। । 

मेरे तो प्राण अधारे हैं
सब भगतन के रखवारे हैं। । 

जो लाखो पापीओं को तारे हैं
जो अघमन को उधारे हैं। । 

हम इनके सदा सहारे हैं
हम उनकी शरण पधारे हैं। । 

गणिका और गीध उधारे हैं
हम खड़े उन्ही के द्वारे हैं। । 

शब्दार्थ – नयन – आँख , अनमन – अधर्मियों ,

भावार्थ –

वह राजाराम हमारे हैं जो दशरथ के पुत्र हैं , उनके दुलारे हैं। वही मेरे आंखों के तारे हैं , जो मुझे सारे जग में रखवाली करते हैं। मुझे अपनी छत्रछाया प्रदान करते हैं। मेरे प्राणों के वही आधार हैं , उनके हाथों में ही मेरा सर्वस्व है। सब भक्तों के वहीं रखवाले हैं। लाखों पापियों और अधर्मी ओका जिन्हें उद्धार किया ऐसे हैं , हमारे प्रभु श्री राम हम उन्हें सदा सहारे रहते हैं और उनकी शरण में प्राप्त होते हैं। जिन्होंने गणिका और गिद्ध को भी उधारा है , उसका उद्धार किया है , हम उन्हीं के द्वार पर एक याचक की भांति खड़े हैं। जो हमें अपनी शरण में लेते हैं वही हमारे प्रभु राम है जो दशरथ के दुलारे हैं।

5. हे राम हे राम जग में साचो तेरो नाम – ( Fifth Ram Bhajan )

हे राम, हे राम
जग में साचो तेरो नाम
हे राम, हे राम। । 

तू ही माता, तू ही पिता है
तू ही तो है राधा का श्याम

हे राम, हे राम। । 

तू अंतर्यामी, सबका स्वामी
तेरे चरणों में चारो धाम

हे राम, हे राम। । 

तू ही बिगड़े, तू ही सवारे
इस जग के सारे काम

हे राम, हे राम। । 

तू ही जगदाता, विश्वविधता
तू ही सुबह तू ही शाम

हे राम, हे राम। । 

शब्दार्थ – अन्तर्यामी – जो ह्रदय के भीतर सदैव रहे , जगदाता – जगत का स्वामी , विश्वविधाता – विश्व का रचईता।

भावार्थ –

जगत में केवल एक ही नाम साचा है , जो प्रभु श्री राम का है क्योंकि वही अपने प्राणियों का माता-पिता स्वामी उसका पति तथा पत्नी है। वही सभी ईश्वर है किसी भी रूप में उसका ध्यान किया जा सकता है। वही राधा है वही श्याम है जो प्रत्येक प्राणियों के अंदर वास करता है , उस प्राणी का वह स्वामी है ऐसे श्री राम जिन के चरणों में चारो धाम का तीर्थ मिलता है।

जो सारे बिगाड़े कार्य को भी बना देते हैं। इस जग के सारे कार्य उन्हीं के द्वारा संपन्न होते हैं।  जो जगत का रचयिता है जगत को चलाता है वैसे श्रीराम को मैं नमन करता हूं।  जिससे आरंभ है अंत है , जिससे प्रातः है और संध्या है वैसे प्रभु श्री राम का नाम सच में जग में महान है।

6. राम भजन कर मन – ( Sixth Ram Bhajan )

राम हैं स्वनाम धनए, राम धनए नाम

राम को प्रणाम, राम नाम को प्रणाम

 

( x4 )राम भजन कर मन 

 

ओ मन रे कर तू

ओ मन रे कर तू राम भजन

राम भजन कर मन

राम भजन कर मन। ।

 

सब में राम, राम में है सब

सब में राम, राम में है सब ( x3 )

तुलसी के प्रभु, नानक के रब्ब

तुलसी के प्रभु, नानक के रब्ब

राम रमईया घट-घट वासी

राम रमईया घट-घट वासी

सत्य कबीर बचन

राम भजन कर मन  ( x2 )

राम नाम में पावत पावन ( x4 )

रवि तेजोमय चन्द्र सुधा धन

रवि तेजोमय चन्द्र सुधा धन

राम भजन बिन ज्योति ना जागे

राम भजन बिन ज्योति ना जागे

जाए ना जीय की जरन

राम भजन कर मन

राम भजन कर मन। ।

 

नाम भजन में ज्योति असीमित

नाम भजन में ज्योति असीमित

मंगल दीपक कर मन दीपित

मंगल दीपक कर मन दीपित

सकल अमंगल हरण भजन है  (x2)

सकल सुमंगल करन

राम भजन कर मन

राम भजन कर मन। । 

 

ओ मन रे कर तू

ओ मन रे कर तू राम भजन

राम भजन कर मन

राम भजन कर मन। । 

 

7 भय प्रकट कृपाला दीन दयाला – ( Seventh Ram Bhajan )

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी। ।

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी। ।

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता। ।

करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता। ।

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै। 
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै। । 

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै। 
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै। । 

माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूप। ।

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूप। ।

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचार। ।

श्री राम, जय राम, जय जय राम
श्री राम, जय राम, जय जय राम। । 

 

8. श्री राम चंद्र कृपाल भजमन – ( Eighth Ram Bhajan )

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे।

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9. ठुमक चलत राम चंद्र बाजत पैजनिया – ( Ninth Ram Bhajan )

ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां।

किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय।
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां। ।

अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि।
तन मन धन वारि वारि, कहत मृदु बचनियां। ।

विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर मधुर।
सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियां। ।

तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद।
रघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियां। ।

शब्दार्थ – पैजनिया – पायल , धाय मात – दाई माँ , रज – मिटटी , विद्रुम – मूंगा / मुक्ताफल नामक वृक्ष , सुभग – सुख / समृद्धि , चारु – सुन्दर।

भावार्थ –

श्री रामचंद्र की बाल छवि अति मनमोहक और प्यारी थी। जब वह घुटने के बल चला करते थे , तब उनका सांवला-सलोना रूप और निखर कर आता था। वह जब ठुमक-ठुमक कर चलते थे तो उनके पैरों में बंधे हुए पैजनिया घुंगरू बड़े ही मधुर ध्वनि उत्पन्न करती थी।

जब वह किलकारियां मारते हुए चलते कभी उठते कभी गिरते और पुनः चलने का अभ्यास करते। तब दाई मां तथा माता-पिता उन्हें गोद लेते और आनंदित होते और अपने आंचल में उठाकर उसकी बलाइयां लेते। ऐसे आनंद की अनुभूति करते जैसे अद्वितीय हो और अपना तन-मन-धन सब कुछ उनके मृदु बचन पर वार देते।

उनके लाल-लाल होंठ मानों ऐसे प्रतीत हो रहे हो जैसे अभी प्रातः का सूर्य उदय हुआ हो। उनके मुख से निकले हुए प्रत्येक शब्द इतने मधुर लग रहे हैं जैसे अनुपम आनंद प्रदान कर रहे हो उनके प्रत्येक आभूषण शोभायमान हो रहे हैं। आभूषण राम के शरीर की शोभा को और बढ़ा रहे हैं।

इन सभी दृश्य को देखकर तुलसीदास अति आनंदित हो रहे हैं। उनके मुखारविंद को देख उनके सभी इच्छाओं की पूर्ति हो रही है। उनके ईश्वर प्रभु श्री राम की छवि अद्वितीय अवर्णनीय प्रतीत हो रही है।

Ram Bhajan lyrics collection Hindi

10. मेरे रोम रोम में बसने वाले राम – ( Tenth Ram Bhajan )

हे रोम रोम मे बसने वाले राम,
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं।

आप का बंधन तोड़ चुकी हूं, तुझ पर सब कुछ छोड़ चुकी हूं ।
नाथ मेरे मै, क्यूं कुछ सोचूं, तू जाने तेरा काम॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं।

॥ हे रोम रोम मे बसने वाले राम…॥

तेरे चरण की धुल जो पायें, वो कंकर हीरा हो जाएँ ।
भाग्य मेरे जो, मैंने पाया, इन चरणों मे ध्यान॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं।

॥ हे रोम रोम मे बसने वाले राम…॥

भेद तेरा कोई क्या पहचाने, जो तुझ सा को वो तुझे जाने ।
तेरे किये को, हम क्या देवे, भले बुरे का नाम॥
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं।

हे रोम रोम मे बसने वाले राम,
जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं।

 

11. राम जी के नाम ने तो पत्थर भी तारे – ( Eleventh Ram Bhajan )

राम जी  के  नाम  ने  तो  पाथर  भी  तारे

जो न जपे राम नाम वो हैं किस्मत के मारे

राम जी  के  नाम  ने  तो  पाथर  भी  तारे

 

राम जी  के  नाम  को  शिवजी  ने  ध्याया

तुलसी   ने   राम जी   से   सरबस   पाया

कविरा  तो  भजन  कर  कर  भए  मतवारे

राम जी  के  नाम   ने  तो  

पाथर  भी  तारे

राम  नाम  अमृत  है  राम  नाम   है  चंदन
राम  नाम  देव   जपे   सांस   करे   बन्दन

महावीर    राम   नाम     हृदय    मे   धारे

राम जी  के  नाम  ने  तो  

पाथर  भी  तारे

राम ही  राम  जपो  राम  नाम  ही  ध्यायो
राम नाम प्रेम की  ज्योति घर-घर  जगाओ

उसकी  शरण में जाओ  सुन लो तुम प्यारे

राम  जी  के  नाम  ने  तो  पाथर  भी  तारे
जो न जपे राम नाम वो हैं किस्मत के  मारे। ।

शब्दार्थ – तारे – पार लगाना ,  सरबस – सर्वस्व ,

भावार्थ –

इस संसार में राम जी का नाम ऐसा है , जिसके जपने से व्यक्ति ही क्या पत्थर भी तर जाते हैं। लंका जाते समय जब उन्होंने सेतुबंध का कार्य आरंभ किया तब प्रत्येक शीला पर राम नाम लिखकर पानी में डाला गया जिससे वह तैरता रहा। इस राम की महिमा को जो नहीं जानता जो उसकी बखान नहीं करता और जो इस का स्मरण नहीं करता वह व्यक्ति किस्मत के मारे होते हैं।

इस राम का नाम जब ते हुए शिवाजी ने आक्रमणकारियों पर विजय पाई थी। तुलसी ने राम का नाम जपते हुए इस सांसारिक बंधन से मुक्ति पाई। कबीरा ने राम राम जप कर प्रभु की शरण प्राप्त की ऐसे राम की महिमा से वंचित रह जाना मनुष्य के लिए दीए तले अंधेरे के समान है।

राम नाम तो अमृत के समान है , यह चंदन की भांति शीतल है।

जिसके जाप करने से जीवन तथा उसके बाद भी मुक्ति का मार्ग खुल जाता है।  गुरुदेव कि प्रत्येक सांस इस राम नाम का वंदन करती रही महावीर स्वामी ने हृदय से इस राम नाम की महिमा को स्वीकार किया। ऐसे महान आत्माओं ने राम की महिमा से परिचय कर अपने अमरत्व को सिद्ध किया।

इन सभी महान आत्माओं को ध्यान में रखते हुए , हमें राम नाम का जाप करना चाहिए। नित्य-प्रतिदिन राम नाम का ध्यान करना चाहिए और इसकी ज्योति अपने हृदय के भीतर ही नहीं घर में भी जलाना चाहिए और उसकी शरण में सदैव रहना चाहिए। जो इस संसार के बाद भी उस संसार में साथ निभाए जिसके स्मरण मात्र से सभी भव बाधा दूर हो जाती है। ऐसे लोग जो राम नाम की महिमा से वंचित है जो नहीं जानते वह किस्मत के मारे हैं।

12 तेरी दो दिन की जिन्दगानी तू राम भजन कर प्राणी – ( Twelth Ram Bhajan )

तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥ (X2) 

काया-माया बादल छाया, मूरख मन काहे भरमाया।

उड़ जायेगा साँसका पंछी,फिर क्या है आनी-जानी॥

तू राम भजन कर प्राणी,तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥

 

जिसने राम-नाम गुन गाया,उसको लगे ना दुखकी छाया।

निर्धनका धन राम-नाम है, मैं हूँ राम दिवानी॥

तू राम भजन कर प्राणी,तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥

 

जिनके घरमें माँ नहीं है,बाबा करे ना प्यार;
ऐसे दीन अनथोंका है,राम-नाम आधार।

मुखसे बोलो रामकी बानी,मनसे बोलो रामकी बानी॥

तू राम भजन कर प्राणी,तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥

 

सजन सनेही सुखके संगी,दुनियाकी है चाल दुरंगी।

नाच रहा है काल शीश पे,चेत-चेत अभिमानी॥

तू राम भजन कर प्राणी,तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥

तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिन की जिन्दगानी॥

 

13 मेरे राम वन वन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहाँ गई – ( Thirtheenth Ram Bhajan )

मेरे राम वन वन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहां गई ( x3 )

 

पेड़ और पौधों तुम ही बता दो , (x2)

क्या फूलों में वो समाए गई  , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन वन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

 

गंगा – यमुना तुम ही बता दो , (x2)

क्या लहरों में वो समाए गई , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन वन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

 

ऋषि और मुनियों तुम ही बता दो , (x2)

क्या जोगन होकर निकल गई , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन बन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

 

अंजनी के लाला तुम ही बता दो , (x2)

क्या पापी रावण ले गया , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन वन भटक रहे , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

 

सूरज चंदा तुम ही बता दो (x2)

क्या तारों में वो समाए गई , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन वन भटक रहे , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

 

धरती अम्बर तुम ही बता दो  (x2)

क्या धरती में वो समाए गई , मेरी सिया गई तो कहां गई (x2)

मेरे राम वन वन भटक रहे ,मेरी सिया गई तो कहां गई ( x3)

भावार्थ –

श्री राम को मात-पिता आज्ञा के अनुसार चौदह वर्ष का वनवास मिला था। वह वनवास में अपनी पत्नी सीता तथा छोटे भाई लक्ष्मण के साथ गए थे। ऋषि-मुनियों का यज्ञ की रक्षा करते हुए उनकी पत्नी सीता का हरण हो जाता है। जिसके पश्चात वह बिरह व्याकुल होकर उसकी खोज करते हैं।

दोनों भाई पेड़-पौधे , फूल-पत्तियों प्रत्येक जीव से पूछते हैं धरती-अंबर से पूछते हैं ऋषि-मुनियों से पूछते हैं कि मेरे सीता कहां गई कोई उसका पता बता दे। क्या आसमानों से अपनी और लेगी आया धरती में समा गई कोई कुछ तो कहे। वह व्याकुल होकर अपने भाई के साथ सीता की खोज में घूम रहे हैं। वह नदी , सागर समुद्र से , सांसारिक प्रत्येक वस्तु से पूछ रहे हैं कि सीता का कोई पता जानता है ? वह कहां चली गई।

यह गीत सीता तथा राम के बिरहा और व्याकुलता को प्रकट करता है।  सिया हरण के पश्चात दोनों भाई किस प्रकार से वन-वन घूम कर प्रत्येक जीव , प्राणी , वनस्पति , नदी , झरने , समुद्र आदि से अपनी सिया का पता पूछ रहे हैं।

14. आज मिथिला नगरिया निहाल सखिया – ( Fourteenth Ram Bhajan )

आज मिथिला नगरिया निहाल सखिया,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।


शेषमणि मोरिया कुंडल सोहे कनुआ,

कारी कारी कजरारी जुल्मी नयनवा,
लाल चंदन सोहे इनके भाल सखियां,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।


श्यामल श्यामल गोरे-गोरे जोड़िया जहान रे,

अखियां ने देख ली नी सुन ली ना कान रे,
जुगे जुगे जीबे जोड़ी बेमिसाल सखिया,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।


गगन मगन आज मगन धरतीया,

देखी देखी दूल्हा जी के सांवर सुरतिया,
बाल वृद्ध नर नारी सब बेहाल सखियां,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।


जेकरा लागी जोगी मुनि जप-तप कईले,

से मोरे मिथिला में पाहून बन अईले,
 आज लोढ़ा से सैदाई इनके गाल सखियां,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।


आज मिथिला नगरिया निहाल सखिया,

चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।

शब्दार्थ – मिथिला – सीता का मायका , शेषमणि – नाग की मणि , मोरिया – दूल्हे का मुकुट , कनुआ – कान , कजरारी – काजल से युक्त , जुल्मी – अत्याचारी , भाल – माथा , श्यामल – मेघ के समान काला , बेमिसाल – जिसकी मिसाल दी जा सके , जेकरा – जिसके लिए , पाहून – मेहमान।

भावार्थ –

आज मिथिला नगर जो सीता जी का मायका है , वह निहाल है। क्योंकि आज उनके नगर में चार राजकुमार जो अनुपम सौंदर्य संयुक्त हैं पधारे हैं। उन सभी राजकुमारों में बड़े जो राम है , वह पूरे नगर में अनुपम सौंदर्य की छटा बिखेर रहे हैं। जिनके शीश मुकुट में शेषनाग विराजमान है , कुंडल जो उनके कानों में शोभायमान है। उनकी आंखें काजल से युक्त है जो मिथिला नगर में कहर ढा रही है। जो नर , नारी , वृद्ध सब पर जुल्म कर रही है , आकर्षित कर रही है।

ऐसे शोभायमान श्री राम के माथे पर लाल चंदन उनके सौंदर्य को और निखार रहा है।

राम जो श्याम के समान काले हैं तथा सीता जो दिव्य कांति की भांति दमक रही है। इन दोनों की जोड़ी जहान में बेमिसाल है। इसकी कोई मिसाल नहीं दे सकता। ऐसी जोड़ी जो आज से पूर्व ना देखी हो , ना सुनी हो आज उनका मिलन है। वही श्री राम जो चारों में बड़े शोभायमान है उनके आने से मिथिला नगर आज निहाल हो गया। आज के दिन आसमान धरती सभी मगन में झूम रहे हैं , सभी आनंदित हैं और मिथिला नगर के बालक , वृद्ध , नारी , पुरुष सभी इस दूल्हे की सूरत पर  मंत्रमुग्ध है।

जिसके लिए ऋषि-मुनि ने तपस्या की , उनके अवतरण के लिए प्रतीक्षा की।  जिनकी प्रतिक्षा से संत , महात्मा प्रसन्न चित्त है।  वह आज मिथिला नगर में मेहमान बनकर पधारे हैं।  जिनके गाल दमकते हुए प्रतीत हो रहे हैं , होठों पर प्रत्यूषा की छटा बिखरी हुई है। ऐसे श्रीराम के आने से आज मिथिला नगर धन्य हो गई है। आज मिथिला नगर का भाग जागा है , जो प्रभु श्रीराम मिथिला में अपने भाइयों के साथ पधारे हैं। उनका रिश्ता मिथिला नगर से जुड़ने वाला है।

इस रिश्ते के जुड़ने से संपूर्ण मिथिला नगरी खुशी के उत्सव में नाच रही है।

15. सियाराम के मधुर मिलान से – ( Fifteenth Ram Bhajan )

सिया राम के मधुर मिलन से 

फूल बगिया मुस्काये

कोयलिया कजरी गाये रे  ( x3 )

 

सिया राम के मधुर मिलन से ( x2 )

फूल बगिया मुस्काये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

तोड़ रहे थे फूल राम जी ,गिरिजा पूजन आई जानकी

तोड़ रहे थे फूल राम जी ,गिरिजा पूजन आई जानकी

छम – छम नूपुर बाजे ,

छम – छम नूपुर बाजे अब अंग अंग फड़काये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

सिया राम के मधुर मिलन से

सिया राम के मधुर मिलन से

फूल बगिया मुस्काये 

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

सिया मुख चंदा देख सामने भुला दिया सब शान राम ने

सिया मुख चंदा देख सामने भुला दिया सब शान राम ने

नैनन बाण चलाके ,

नैनन बाण चलाके ,

सखियों का मन हर्षाये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

सिया राम के मधुर मिलन से

सिया राम के मधुर मिलन से

फूल बगिया मुस्काये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

छबि देखि ऐसी मिथिला में राम सिया में सिया राम में

छबि देखि ऐसी मिथिला में राम सिया में सिया राम में

अति आनंद समाये

अति आनंद समाये , सखियों का मन ललचाये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

 

सिया राम के मधुर मिलन से

सिया राम के मधुर मिलन से

फूल बगिया मुस्काये

कोयलिया कजरी गाये रे ( x3 )

शब्दार्थ –

भावार्थ –

16 राम को देख कर के जनक नंदिनी – ( Sixteenth Ram Bhajan )

राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी॥

थे जनक पुर गये देखने के लिए,
सारी सखियाँ झरोखो से झाँकन लगी।
देखते ही नजर मिल गयी प्रेम की,
जो जहाँ थी खड़ी की खड़ी रह गयी॥
॥ राम को देख कर के जनक नंदिनी…॥

बोली एक सखी राम को देखकर,
रच गयी है विधाता ने जोड़ी सुघर।
फिर धनुष कैसे तोड़ेंगे वारे कुंवर,
मन में शंका बनी की बनी रह गयी॥
॥ राम को देख कर के जनक नंदिनी…॥

बोली दूसरी सखी छोटन देखन में है,
फिर चमत्कार इनका नहीं जानती।
एक ही बाण में ताड़िका राक्षसी,
उठ सकी ना पड़ी की पड़ी रह गयी॥
॥ राम को देख कर के जनक नंदिनी…॥

राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी॥

शब्दार्थ – जनक नंदिनी – सीता , झरोखा – हवा रौशनी के लिए खिड़की , सुघर – सुन्दर रचना , कुंवर – राजकुमार (राम)

भावार्थ –

विवाह से पूर्व सीता स्वयंवर में राम जनकपुर जाते हैं , वहां दोनों भाइयों का प्रथम दर्शन सीता के साथ बाग में हुआ था। जहां वह अपने गुरु के लिए पुष्प तोड़ने गए थे तथा सीता पुष्प वाटिका में अपनी कुल देवी के मंदिर पूजा-अर्चना के लिए गई थी। जहां साहचर्य दोनों का मुलाकात होता है , दोनों स्तब्ध रह जाते हैं। एक-दूसरे को ताकते रह जाते हैं जैसे चिरकाल से बिछड़े हुए हो। जनकपुर की कन्याए राम-लक्ष्मण के छवि को निहारती हैं।

सभी झरोखों से उनके रूप का दर्शन करना चाहती हैं

इसके लिए वह सभी झरोकों पर आ खड़ी होती हैं और स्तब्ध खड़ी रह जाती हैं जब तक राम लक्ष्मण जगह से पार नहीं हो जाते हैं।

राम के छवि को देखकर एक सखी बोलती है विधाता ने बड़े ही सुंदर जोड़ी की रचना की है , जो दोनों सुकोमल है नाजुक है तथा राज महल में रहते हैं मगर इतने सुंदर और कोमल राजकुमार शिव का धनुष कैसे तोड़ेंगे।  अगर शिव का धनुष भंग नहीं हो पाता तो , विवाह इन दोनों की कैसे होगी यह शंका सखियों के मन में बनी रह जाती है।

दूसरी सखी इस शंका का समाधान करते हुए बताती है कि यह देखने में छोटे हैं , पर इनके चमत्कार बहुत बड़े-बड़े हैं। इनके चरण छूते ही अहिल्या पत्थर से पुनः जीवित हो गई तथा ताड़का जैसी विशाल राक्षसी को एक बाण में इन्होंने मार गिराया , इनकी महिमा तुम नहीं जानती हो , इसलिए शंका करना व्यर्थ है।

 

17 श्री राम की गली में तुम जाना – ( Seventeenth Ram Bhajan )

श्री राम की गली में तुम जाना
वहा नाचते मिलेंगे हनुमाना

उनके तन में है राम उनके मन में है राम
अपनी आंखो से देखे कण कण मे राम
श्री राम का है वो दीवाना
वहा नाचते मिलेंगे हनुमाना
श्री……..

ऐसा राम जी से जोड़ लिया नाता
जब भी देखो उन्ही के गुण गाता
श्री राम के चरनो में ठिकाना
वहा नाचते मिलेंगे हनुमाना
श्री……..

उनसे कहना राम राम वो कहेंगे राम राम
कुछ भी सुनते नही बस सुनेंगे राम राम
महामन्त्र है भुल ना जाना
वहा नाचते मिलेंगे हनुमाना
श्री………

इतनी भक्ति वो बनवारी करने लगे
उनके सिने में राम सिया रहने लगे
इस कहानी को जानता जमाना
वहा नाचते मिलेंगे हनुमाना
श्री………

 

18 राम नाम राम नाम की लूट मची है – ( Eighteenth Ram Bhajan )

राम नाम राम नाम की लूट मची है,
लूट लो राम के नाम को
हाथ जोड़कर सर को झुकाओ,
नमन करो सुखधाम को।

श्रद्धा के भूखे प्रभु, प्यासे भावो के
रक्षा करेंगे-रक्षक है, डूबती नावों के
रिझालो इनको तुम, मना लो इनको तुम
मिटा दें गे ये गम उनके, पुकारे इनको जो दिल से
दौड़ पड़ेंगे, जब भी पुकारो, देकर प्यार के दाम को
राम नाम की……

राम नाम से हो पावन, मन का हर कोना
जैसे पारस लोहे को, कर देता सोना
सभी संकट कटे, घटा गम की छटे
प्रभु के चरणों मे बैठो, जरा सा ध्यान लगाओ तुम
राम नाम है, सबसे साँचा, जपलो तुम इस नाम को
राम नाम की…….

भक्तो पर जब भीड़ पड़ी, बड़ा है जब जब पाप
आये धरती पर प्रभु, काटने सब सन्ताप
जपो बस राम नाम, बनेंगे बिगड़े काम
किरपा जब इनकी हो जाये, तो कालिया सुख की खिल जाए
राम बिकेंगे, तुम जो खरीदो, दे कर प्यार के दाम को
राम नाम की…..

 

19 राम नाम की माला जपेगा कोई दिलवाला – ( Nineteenth Ram Bhajan )

हरी नाम की माला जपेगा कोई दिल वाला

यह माला सीता ने जपी थी,

मिल गया राम प्यारा, जपेगा कोई दिलवाला…

यह माला राधा ने जपी थी,

मिल गया मुरली वाला, जपेगा कोई दिलवाला…

यह माला गौरां ने जपी थी,

मिल गया डमरू वाला, जपेगा कोई दिलवाला…

20 राम जी से पूछे जनक पुर के नारी – ( Twenteith Ram Bhajan )

राम जी से पूछे जनकपुर के नारी बता दा बबुआ
लोगवा देत कहे गारी, बता द बबुआ

इ बूढ़ा बाबा के पक्कल पक्कल दाढ़ी -2
देखन में पातर खाये भर थारी
बता दा बबुआ
लोगवा देत कहे गारी, बता दा बबुआ

राजा दशरथ जी कइलन होशियारी – 2
एकता मरद पर तीन तीन जो नारी
बता दा बबुआ
लोगवा देत कहे गारी, बता दा बबुआ

कहथिन सनेह लता मन में बिचारिन -2
हम सब लगैछी पाहून सरहज कोई साली

ता दा बबुआ
लोगवा देत कहे गारी, बता दा बबुआ

तोहरा से पुछु मैं औ धनुषधारी -2
एक भाई गौर कहे एक कहे कारि
बता दा बबुआ
लोगवा देत कहे गारी, बता दा बबुआ 

शब्दार्थ – जनकपुर – सीता जी का मायका , नारी – स्त्री , बबुआ – बालक , लोगवा – जन समूह , गारी – गाली , पक्कल दाढ़ी – सफ़ेद दाढ़ी , पातर – पतला , थारी – थाली ,कइलन – करना , मरद – आदमी , लगैछी – लगना  , पाहून – मेहमान , तोहरा – तुझसे , धनुषधारी – धनुष को धारण करने वाला (राम)

भावार्थ –

विवाह एक पवित्र बंधन है,  इस बंधन में बंधने से पूर्व कन्या पक्ष तथा वर पक्ष के बीच शादी से जुड़े गीत संगीत गाए जाते हैं। जिसमें हास्य भी होता है , करुणा भी , छेड़छाड़ जैसे गीत भी होते हैं। जो बंधन को मजबूत बनाने के उद्देश्य से गाए जाते हैं। इस गीत में राम जी तथा सीता जी का विवाह से संबंधित गीत है। जिसमें जनकपुर की नारी अर्थात सीता जी के मायके की स्त्रियां राम जी से पूछती है कि बता दो बबुआ कि लोग गाली क्यों दे रहे हैं। ऐसा कहते हुए कई प्रकार के प्रश्न राम जी के समक्ष रखती हैं।

मुनि वशिष्ठ जो अयोध्या के गुरु हैं तथा चारों राजकुमार के गुरु तथा मार्गदर्शक भी हैं।

वह देखने में पतले लगते हैं , जिनकी दाढ़ी भी पक्की हुई है अर्थात वृद्ध हो गए हैं , मगर ऐसी क्या बात है जो भोजन थाली भर-भर कर युवाओं की भांति कर रहे हैं बता दो बबुआ। राजा दशरथ जी की होशियारी की भी चर्चा करते हुए राम जी के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। कहा जा रहा है राजा दशरथ जो खूब होशियार हैं , उन्होंने स्वयं अपने लिए तीन-तीन रानियों से विवाह किया है। वाकई राजा दशरथ जी होशियार है इस होशियारी की बात तो बताओ बबुआ।

स्नेह लता जो गायिका है , वह मन में विचार करके राम जी से बोलती है कि हम सब इस छेड़छाड़ तथा शगुन के गाने को गा रहे हैं। ऐसा बुरा मानने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम लोग कोई सरहज हैं कोई साली हैं तो हमारे रिश्ते के बीच इस प्रकार की छेड़छाड़ बुरा मानने का विषय नहीं है।

फिर ऐसा कहते हुए जनकपुर की नारियां कहती हैं हे धनुषधारी राम मैं तुमसे पूछना चाहती हूं कि तुम्हारे भाई गोरे हैं तथा तुम काले क्यों हो इसका कोई गूढ़ रहस्य होगा वह हमें बताओ।

 

21 मेरे राम का नाम दयानिधि है – ( Twenty first Ram Bhajan )

मेरे राम का नाम दयानिधि है,
वो दया तो करेंगे कभी ना कभी

दुःख हारी हर दुखियाँ जन के

दुःख कलेश हरेगे कभी न कभी,
मेरे राम का नाम दयानिधि है

जिस अंग की शोभा सुहावनी है,
जिस सवाली रंग में मोहनी है,
उस रूप सुधा के सनेहियो के,
दीर्घ प्याले भरे गे कभी न कभी न,

करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हे,
चरणामित पान करवाया जिन्हे,
सरकार अदालत में गवाह सभी गुजरे गे कभी न कभी,

हम द्वार पे आप के आके पड़े,
मुदत से इसी जिद पे है अड़े,
भव सिंधु तरे जो बड़े जो बड़े,
बिंदु तरे गे कभी न कभी,
मेरे राम का नाम दयानिधि है

वो दया तो करेंगे कभी ना कभी। ।

22 अवधपुरी में फिर से मंदिर – ( Twenty Second Ram Bhajan )

अवधपुरी में फिर से मंदिर
जय जय जय श्री राम
तन मन धन सर्वस्व समर्पित
बनें राम का धाम
भव्य राम का धाम
जय जय जय श्री राम
जय जय जय श्री राम

श्रेष्ठ मान मर्यादा अपने,जीवन से प्रकटाएंगे
भेदभाव सब दूर हटाकर,स्नेहामृत छलकाएंगे
हर आंगन में ज्ञान का दीपक, होंगे पूरन काम।।१।।

तन मन धन सर्वस्व समर्पित
बनें राम का धाम
भव्य राम का धाम
जय जय जय श्री राम
जय जय जय श्री राम

इस युग में शुभ परिवर्तन की,नूतन धार बहानी है
रामराज्य की अमर कथा को, धरती पर दोहरानी है
सारी जगती में मंगल हो, तब तक नहीं विराम।।२।।

तन मन धन सर्वस्व समर्पित
बने राम का धाम 
भव्य राम का धाम
जय जय जय श्री राम
जय जय जय श्री राम

सत्य न्याय की पुनः प्रतिष्ठा, घर-घर में आनंद हो
नई-नई रचनाएं विकसे, सक्रिय सज्जन वृंद हो
सुगठित पावन जीवन अपना, गरजे गौरव गान।।३।।

तन मन धन सर्वस्व समर्पित
बनें राम का धाम
भव्य राम का धाम
जय जय जय श्री राम
जय जय जय श्री राम

धर्म ध्वजा जग में फहरेंगी,
 आतंकों का होगा अंत
देव कृपा से दिव्य धरा ने, पाई अद्भुत शक्ति अनंत
कण-कण में भगवान विराजे, रोम रोम में राम।।४।।

तन मन धन सर्वस्व समर्पित
बने राम का धाम
भव्य राम का धाम
जय जय जय श्री राम
जय जय जय श्री राम। । 

शब्दार्थ – अवधपुरी – अयोध्या , स्नेहामृत – स्नेह रूपी अमृत , नूतन – नया , जगती – जगत , प्रतिष्ठा – स्थापना , वृन्द – पंक्ति ,

भावार्थ –

दीर्घ प्रतीक्षा के बाद आज पुनः अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने वाला है जिसके लिए भक्तों का तन-मन-धन सर्वस्व समर्पित है। ऐसा राम मंदिर बनना चाहिए , भगवान प्रभु श्री राम का नाम होना चाहिए जो विश्व भर में भव्य हो विशाल हो।

केवल मंदिर निर्माण से ही नहीं बल्कि हमें रामराज्य को पुनः लाने के लिए सर्वप्रथम श्रेष्ठ मान मर्यादा को अपने जीवन में शामिल करना होगा।  भेद-भाव , ऊंच-नीच आदि के बंधनों से अलग हटकर मुक्त होकर स्नेह रूपी अमृत को छलकाना होगा। सभी को खुले हृदय से गले लगाना होगा।  सभी को शिक्षित करना होगा , ताकि सभी का घर शिक्षा के ज्ञान से प्रकाशित हो। यह सभी कार्य करने के लिए हमें तन-मन-धन सर्वस्व समर्पित करना होगा।

इस युग में भी हमें परिवर्तन की धारा बहानी होगी ,

पुनः राम राज्य और सभ्य समाज की स्थापना करनी होगी। रामराज्य की जो अमर कथा अबतक हम साहित्य और ग्रंथों में पढ़ते हैं , उसे पुनः धरती पर दोहराने की आवश्यकता है। उस रामराज्य से जिसका लक्ष्य केवल मंगल हो जिसका उद्देश्य भाईचारा हो वह स्थापित करने के लिए हम निरंतर संघर्ष करते रहेंगे। इसके लिए हम अपने तन-मन-धन आदि को समर्पित करेंगे और भव्य राम मंदिर का निर्माण करने के लिए आगे बढ़ेंगे।

इस धरा पर सत्य-न्याय आदि की स्थापना हो सके , सभी घर में खुशियों की बहार आ सके , नई रचनाएं विकसित हो साहित्य का सृजन हो , सज्जनों की पंक्ति हो ऐसा हमें प्रयास करना होगा। प्रत्येक व्यक्ति का संगठित जीवन हो जीवन का कोई लक्ष्य हो , ऐसे पावन विचार को समाज में स्थापित करना होगा। ऐसे कार्य करें जिससे समाज का गौरव गान हो सके , इसके लिए तन-मन-धन सर्वस्व समर्पित करना होगा।

धर्म की ध्वजा पुनः फिरेगी आतंक का नाश होगा और पुनः देवी-देवताओं की कृपा इस धरती पर बरसे ऐसे अद्भुत शक्ति का अनुसंधान करना होगा।  ऐसी भक्ति की जोत जगानी होगी जिससे कण-कण में पुनः भगवान राम विराजे और प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज में राम का वास हो उनका आशीर्वाद हो उनका साथ हो। इसी लक्ष्य के साथ हम तन-मन-धन समर्पित करते हुए प्रभु राम के भव्य धाम का निर्माण करने के लिए अग्रसर हैं जय श्री राम।

 

निष्कर्ष ( Conslusion for Ram Bhajan lyrics )

प्रभु श्री राम का जन्म त्रेता युग में राजा दशरथ कि राजमहल अयोध्या में हुआ। राम का जन्म सृष्टि के कल्याण के लिए हुआ था , वह अवतारी पुरुष थे। वह भगवान विष्णु के अंश अवतार थे। पृथ्वी पर आसुरी शक्ति तथा अधर्मीयों का मनोबल इतना बढ़ गया था कि वह ऋषि-मुनियों तथा सामान्य पुरुषों को तुच्छ समझने लगे थे। यज्ञ तथा सामाजिक अनुष्ठानों को ध्वस्त कर देते।

आसुरी शक्ति के कारण पृथ्वी त्राहि मान कर रही थी। तब श्रीराम ने अवतार लेकर इन आसुरी शक्ति को नष्ट करने का प्रण लिया।

उन्होंने एक सामान्य मनुष्य की भांति जन्म लिया क्योंकि उस समय आसुरी शक्तियां मनुष्य को कुछ नहीं समझती थी। मनुष्य के मान को बढ़ाने हेतु उन्होंने राजा दशरथ के घर पुत्र के रूप में जन्म लिया।

उनके साथ लक्ष्मण , भरत , शत्रुघ्न तीन भाइयों ने भी अवतार लिया।

प्रभु श्री राम ने अल्प आयु से ही जो आदर्श समाज में स्थापित किए वह अकल्पनीय तथा अद्वितीय था। माता-पिता की आज्ञा के लिए उन्होंने राज-पाठ तक का त्याग किया और चौदह वर्ष का बनवास मातृ आज्ञा को निभाने के लिए स्वीकार किया।

वनवास के कालखंड में उन्होंने पृथ्वी को आसुरी शक्ति से मुक्त कराया। संत-महात्माओं तथा मनुष्यों को भय मुक्त किया। जीव-जंतु , पशु-पक्षी तथा संसार के छोटे बड़े सभी की सहायता लेकर उनके मान को और बढ़ाया। मानव की समाज में प्रतिष्ठा की , एक साधारण व्यक्ति होते हुए उन्होंने वानर , भालू आदि की सहायता से बड़े-बड़े राक्षसों को संघार किया।

प्रभु श्री राम ने अयोध्या लौट कर जो रामराज्य की स्थापना की वह भी आज के दौर में मिसाल है। राम राज्य की कल्पना आज के दौर में की जाती है। राम ने उच्च आदर्श तथा प्रजा वत्सल होकर राज्य किया। उन्होंने कभी भी अपने दायित्व से मुहं नहीं मोड़ा। प्रजा को पुत्रवत प्रेम किया। द्वार आए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने दिया , किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए वह स्वयं तत्पर रहा करते थे।

रामराज की कल्पना आज के दौर में मात्र कल्पना ही है। ।

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8 thoughts on “21 Ram bhajan lyrics, राम भजन, गीत, गाने का संग्रह”

  1. बोलो श्री राम चन्द्र की जय। यह सभी भजन बहुत अच्छे हैं जिन्हें पढ़कर मन की शुद्धि हो गई है ऐसा लगता है.

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  2. आपने सभी के सभी राम भजन यहां पर डाल दिया है जिससे कि हमें एक ही जगह पर सभी महत्वपूर्ण भजन मिल जाए करेंगे और हमें अब आसानी होगी. आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप की वेबसाइट बहुत आगे जाएगी.

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  3. Bhut sunder bhajan aur unke anuvad. Jai shri Ram
    Mandir nirman ka naya bhajan vastav mey sahrniye hai. Jai shri Ram

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