बाजीराव पेशवा प्रथम। हिन्दू सम्राट। बाजीराव की जीवनी।Bajirao peshwa 1 notes in hindi

Bajirao peshwa 1 notes in hindi

पेशवा बाजीराव  जिन्हें बाजीराव प्रथम (बाजीराव जी ) भी कहा जाता है मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के 4थे प्रधानमंत्री थे।

बाजीराव  ने अपना प्रधानमंत्री का पद सन 1720 से अपनी मृत्यु तक संभाला। उनको बाजीराव बल्लाल और थोरल बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है। बाजीराव का सबसे मुख्य योगदान रहा उत्तर में मराठा साम्राज्य को बढाने में और यह माना जाता है अपनी सेना के कार्यकाल में उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा।

बाजीराव पेशवा प्रथम एक महान सेनानायक थे वे ४ छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे (प्रधानमंत्री ) रहे। इनको ‘ वाजीराव बल्लाल’  तथा ‘थोरेल बाजिराओ ‘ के नाम से भी जाना जाता है। इन्ही से लोग अपराजित हिन्दु सेनानी सम्राट भी कहते थे इन्होने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार किया।  इनका अकारण ही मृत्यु के 20 वर्ष बाद उनके पुत्र के शासन काल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। वाजीराव प्रथम एक महान पेशवा थे

शासन      – मराठा

पूरा नाम   – बाजिराओ पेशवा

उपाधियाँ  – राऊ ,श्रीमंत ,महान पेशवा ,हिन्दू सेनानी सम्राट ,

जन्म      -1 8 अगस्त 1700

मृत्यु   –   2 8  अप्रैल 1740

मृत्यु स्थान  –  रावेरखेड़ी ,पश्चिम निमाड़ ,मध्यप्रदेश

समाधि      – नर्मदा नदी घात रावेरखेड़ी

पूर्वाधिकारी   – बालाजी विश्वनाथ पेशवा

उत्तराधिकारी  – बालाजी बाजिराओ पेशवा

जीवन संगी   – कासी बाई , मस्तानी ,

पिता       –  बालाजी विश्वनाथ पेशवा

माता      –  राधा बाई

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इनके पिता बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। १३-१४ वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे। उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे।यह क्रम १९-२० वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया।

 

जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उनमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज श्रीमान चिमाजी साहिब अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया।

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इसके लिए उन्हें अपने दुश्मनों से लगातार लड़ाईयाँ करना पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व कौशल युद्ध योजना द्वारा यह महान वीर हर लड़ाई को जीतता गया। विश्व इतिहास में महान श्रीमंतबाजीराव पेशवा एकमात्र ऐसे योद्धा है जो कभी नहीं हारें । छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत ही कुशल घुड़सवार थे । घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बंदूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर श्रीमंतबाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।

 

इस समय भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। ये भारत के देवस्थान तोड़ते, जबरन धर्म परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व भयंकर शोषण करते थे। ऐसे में श्रीमंतबाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। लोग उन्हें शिवाजी का अवतार मानने लगे। श्रीमंतबाजीराव पेशवा में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम था तो वैसा ही उच्च चरित्र भी था।

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शकरलेडला में श्रीमंत साहिब ने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (१७२४)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (१७२४-२६)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (१७२८) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (१७२८)। तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया (१७२९)। दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर (१७३१) उसने आंतरिक विरोध का दमन किया।

सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों एवं अंग्रेजो को भी बुरी तरह विजित किया। दिल्ली का अभियान (१७३७) उनकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में श्रीमंतबाजीराव पेशवा ने फिर से निजाम को पराजय दी। अंतत: १७३९ में उन्होनें नासिरजंग पर विजय प्राप्त की।

 

अपने यशोसूर्य के मध्यकाल में ही २८ अप्रैल १७४० को अचानक रोग के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हुई। “मस्तानी” नामक मुसलमान स्त्री से उनके पत्नीसंबंध के प्रति विरोधप्रदर्शन के कारण श्रीमंत साहेब के अंतिम दिन क्लेशमय बीते। उनके निरंतर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्संदेह अधिकांश राष्ट्र में मराठों का प्रभाव बढ़ा , मराठा शासन को इससे अत्याधिक लाभ अर्जित किया ,

मराठा साम्राज्य की सीमाऐं अधिक विस्तृत होने के कारण यह असंगठित हो गई, मराठा संघ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ प्रस्फुटित हुई, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में संतुष्टिकारक प्रमाणित हुई; यद्धपि श्रीमंतबाजीराव पेशवा की लौह लेखनी ने निश्चय ही भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा। जब भी इतिहास में महान योद्धाओं की बात होगी तो निस्संदेह महान पेशवा श्रीमंतबाजीराव के नाम से अवश्य ओत – प्रोत होंगे

 

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