कहानी के तत्व ( घटक ) kahani ke tatva

कहानी लिखने का एक सुव्यवस्थित ढांचा होता है जिसे हम कहानी के तत्व, कहानी के प्रमुख घटक आदि के नाम से जानते हैं। साधारण रूप से कहानी के छः तत्व या घटक माने गए हैं। इसको कुछ विद्वानों ने विस्तार भी दिया है किंतु सर्वमान्य रूप से छः तत्व ही प्रमुख है।

प्रस्तुत लेख में उन छह तत्वों को विस्तृत रूप से इस लेख में प्रकाश डाला गया है। यह आपके लिए कारगर लेख है इसका अध्ययन आपके ज्ञान को अवश्य ही बढ़ाएगा।

कहानी के तत्व

कहानी आधुनिक युग की विधा है इसका विस्तार मुद्रण कला के बाद हुआ है। कहानी एक बैठक में समाप्त हो जाने वाली विधा भी है, अर्थात इसका अध्ययन एक बैठक में किया जा सकता है। जबकि नाटक, उपन्यास, महाकाव्य आदि में काफी समय लगता है। इस विशेष गुण के कारण कहानी आज लोकप्रिय हो रही है।

कहानी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है –

१. कथावस्तु –

‘संक्षिप्तता’ कहानी के कथानक का अनिवार्य गुण है। वैसे तो कथानक की पांच दशाएं होती है

  • आरंभ – कहानी का आरंभ किसी समस्या, या मुद्दे को उजागर करते हुए होती है। यह विषय किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकता है।
  • विकास – कहानी का धीरे-धीरे विकास होता जाता है। नायक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए या विपत्ति से निकलने के लिए संघर्ष करता हुआ दिखता है।
  • कोतुहल – इस समय पाठक कहानी से अधिक जुड़ जाता है। यह कहानी का मूल रस प्रदान करने का समय होता है जहां पाठक स्वयं को कहानी का नायक मानने लगता है।
  • चरमसीमा – नायक अपने उद्देश्य की प्राप्ति तथा समस्याओं से बाहर निकलने के लिए अंतिम संघर्ष की स्थिति में रहता है। जहां पाठक स्वयं को कहानी से जोड़ कर उस पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहता है।
  • अंत – यहां नायक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करता है और कहानी का समापन होता है। उद्देश्य की पूर्ति अथवा समस्या पर विजय प्राप्त के साथ कहानी का अंत होता है।

परंतु प्रत्येक कहानी में पांचों अवस्थाएं नहीं होती। अधिकांश कहानी में कथानक संघर्ष की स्थिति को पार करता है, विकास को प्राप्त कर कौतूहल को जगाता हुआ , चरम सीमा पर पहुंचता है।और उसी के साथ कहानी का अंत हो जाता है।

२. पात्र का चरित्र चित्रण –

आधुनिक कहानी में यथार्थ को मनोविज्ञान पर बल दिया जाने लगा है अंत उसमें चरित्र चित्रण को अधिक महत्व दी गई है। अब घटना और कार्य व्यापार के स्थान पर पात्र और उसका संघर्ष ही कहानी की मूल धुरी बन गए हैं।

कहानी के छोटे आकार तथा तीव्र प्रभाव के कारण सीमित होती है और दूसरे पात्र के सबसे अधिक प्रभाव पूर्ण पक्ष की उसके व्यक्तित्व कि केवल सर्वाधिक पुष्ट तत्व की झलक ही प्रस्तुत की जाती है।

अज्ञेय की शत्रु कहानी में एक ही मुख्य पात्र है, जैनेंद्र के खेल कहानी में चरित्र-चित्रण में मनोविज्ञान आधार ग्रहण किया गया है। अतः कहानी के पात्र वास्तविक सजीव स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं। पात्रों का चरित्र आकलन लेखक प्राया दो प्रकार से करता है। प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है।

परोक्ष या नाट्य शैली में पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण-दोषों का संकेत देते चलते हैं। इन दोनों में कहानीकार को दूसरी पद्धति अपनानी चाहिए इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।

३. वातावरण

कहानी में भौतिक वातावरण के लिए विशेष स्थान नहीं होता फिर भी इनका संक्षिप्त वर्णन पात्र के जीवन को उसकी मनः स्थिति को समझने में सहायक होता है।

मानसिक वातावरण कहानी का परम आवश्यक तत्व है। प्रसाद की ‘पुरस्कार’ कहानी में ‘मधुलिका’ का चरित्र चित्रण में भौतिक और मानसिक वातावरण की सुंदरता सृष्टि हुई है।

ऐतिहासिक कहानी में भौतिक वातावरण , मानसिक कहानी का अतिरिक्त महत्व होता है , क्योंकि उसी के द्वारा लेखक पाठक को युग विशेष में ले जाता है और सच्ची झांकी को पेश करता है।

४. संवाद या कथोपकथन

कहानी में स्थगित कथन लंबे चौड़े भाषण या तर्क-वितर्क पूर्ण संवादों के लिए कोई स्थान नहीं होता। नाटकीयता लाने के लिए छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जाता है।

संवादों से आरंभ होने वाली कहानी वास्तव में प्रभावी होती है।

संवाद , देश काल , पात्र और परिस्थिति के अनुरुप होनी चाहिए।

वह संक्षिप्त रोचक तर्कयुक्त तथा प्रवाहमय हो उनका कार्य कथा को आगे बढ़ाना , पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालना , विचार विशेष का प्रतिपादन करना होता है।

५. भाषा शैली

कहानी को प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक को थोड़े में बहुत कुछ कहने की कला में निपुण होना चाहिए। लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो कहानी की भाषा सरल , स्पष्ट व विषय अनुरूप हो।

उसमें दुरूहता ना होकर प्रभावी होना चाहिए , कहानीकार अपने विषय के अनुरूप ही शैली का चयन कर सकता है।

वह आत्मकथात्मक, रक्षात्मक, डायरी, नाटकीय शैली का प्रयोग कर सकता है।

६. उद्देश्य

प्राचीन कहानी का उद्देश्य मात्र मनोरंजन या उपदेशात्मक था किंतु आज विविध सामाजिक परिस्थितियां जीवन के प्रति विशेष दृष्टिकोण या किसी समस्या का समाधान और जीवन मूल्यों का उद्घाटन आदि कहानी के उद्देश्य होते हैं यहां उल्लेखनीय है कि कहानी का मूल्यांकन करते समय उसमें निर्मिति और एकता का होना आवश्यक होता है कहानी यदि पाठक के मन पर अद्भुत प्रभाव डालती है तो कहानीकार का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है।

अतः कहानी कला के शास्त्रीय नियमों की अपेक्षा उसकी अत्यंत प्रभाव क्षमता अधिक महत्वपूर्ण होती है।

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निष्कर्ष

कहानी को निश्चित व्यवस्थित रूप से लिखा जाता है इसे लिखने के लिए कहानीकार को इसके विभिन्न प्रकार के तत्वों से परिचित होना चाहिए।  क्योंकि कहानी एक बैठक में समाप्त होने वाली विधा है। पाठक इसका समापन एक बैठक में ही कर देना चाहता है। उस कहानी के माध्यम से प्रकट किए गए विचार आदि को वह कम समय में ग्रहण करना चाहता है।

इसलिए कहानीकार को कहानी के विभिन्न तत्व उनके घटक से परिचित होना चाहिए और उसका प्रयोग कहानी में उचित तथा व्यवस्थित रूप से करना चाहिए कहानी की सफलता उनके तत्वों पर ही आधारित होती है।

आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो, आपके ज्ञान की वृद्धि हो स्की हो। अपने प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें, हम आपके प्रश्नों के उत्तर तत्काल देंगे।

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7 thoughts on “कहानी के तत्व ( घटक ) kahani ke tatva”

    • हमारा लक्ष्य ही यही है कि हम अपने ज्ञान द्वारा दूसरों की मदद करें और अगर हम सफल होते हैं तो हमें बड़ी खुशी होती है

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      • नाटक के तत्व पर बहुत ही अच्छी जानकारी प्रदान किए आपने जिसे पढ़कर मेरी काफी मदद हुई.

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    • कहानी के प्रमुख चार तत्वो के नाम कौन से है

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