इस लेख में अद्भुत रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि का विस्तृत रूप से अध्ययन किया जा सकता है।
परिभाषा:- विस्मय करने वाला रस अद्भुत रस कहलाता है। जब विस्मय भाव अपने अनुकूल , आलंबन , उद्दीपन ,अनुभाव और संचारी भाव का सहयोग पाकर अस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो उसे अद्भुत रस कहते हैं।
स्थाई भाव:- अद्भुत रस का स्थाई भाव विस्मय है। अद्भुत से संबंधित विषय दृश्य आदि को देखने से विस्मय का भाव जागृत होता है, जो साधारण से अलग हटकर होता है।
जिसमें दृष्टि और मस्तिष्क क्षणिक भर के लिए स्तब्ध हो जाता है और उसके आकार आदि को देखता रह जाता है। अतः अद्भुत रस का स्थाई भाव विस्मय है।
अद्भुत रस का स्थाई भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव
रस का नाम | अद्भुत रस |
स्थाई भाव | विस्मय |
आलम्बन | अलौकिक या विचित्र वस्तु या व्यक्ति |
उद्दीपन | आलम्बन की अद्भुत चेष्टाएँ एवं उसका श्रवण वर्णन |
अनुभाव | स्तम्भ ,स्वेद, रोमांच ,आश्चर्यचकित भाव , |
संचारी भाव | वितर्क ,आवेग ,हर्ष ,स्मृति ,मति ,त्रास |
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अद्भुत रस का उदाहरण
1
अखिल भुवन चर अचर सब , हरिमुख में लखि मात।
चकित भई गदगद वचन , विकसित दृग पुलकात। ।
उपर्युक्त प्रसंग में माता यशोदा का कृष्ण के मुख में ब्रह्मांड दर्शन से उत्पन्न विश्व में के भाव को प्रस्तुत किया गया है।
यह रस असंभव से लगने वाले भाव को उत्पन्न करता है।
2
पद सीस अजधामा अपर लोक अंग अंग विश्रामा
करही अनीति जाडी न बरनि ,सीताहीं विप्र धेनु सुरधरनी। ।
इस पंक्ति में श्री राम के विशाल विकराल रूप का वर्णन मंदोदरी के मुख से किया गया है।
युद्ध के पूर्व अपने पति रावण को राम के विकराल रूप का दृश्य सुना रही है जो अद्भुत और विस्मय कराने वाला है।
अद्भुत रस की समस्त जानकारी
अद्भुत रस का स्थाई भाव विस्मय है। विस्मय मानव की आदि मूल प्रवृत्ति है। जैसे हम हॉकी मैच देखते हैं , यदि मैच में खिलाड़ियों ने विशेष कौशल नहीं दिखाया तो हमें वह मैच नीरस लगता है।
किंतु अगर खिलाड़ी खेल में संघर्ष करता है। अपना कौशल दिखाता है तो दर्शकों को आनंद की अनुभूति होती है। इस आनंद के मूल भाव में विस्मय की भावना रहती है।
हिंदी साहित्य में इस रस का व्यापक प्रयोग किया गया है। इस रस का साहित्य में इतना प्रयोग हुआ है कि अद्भुत रस के स्थान पर कौतूहल , जिज्ञासा , उत्सुकता आदि शब्दों का प्रयोग हम करने लगे हैं।
भरत मुनि ने इस रस के दिव्य और आनंदजनीत नाम से जो दो भेद किए हैं , उन्हें हम नए ढंग से स्वीकार करते हैं।
दिव्य से लोकोत्तर ईश्वरीय अर्थ न लेकर उदात अर्थ लेना ही उचित है।
यह रस विस्मयकारी घटनाओं , वस्तुओं व्यक्तियों तथा उसके अद्भुत कार्य व्यापारियों के आलंबन से प्रकट होता है।
उनके अन्यान्य अद्भुत व्यापार या घटनाएं अथवा अद्भुत परिस्थितियां उद्दीपन बनती है।
आंखें विस्तारित हो जाना , एक टक तक देखना , ताली बजाना , स्तंभित , चकित रहना , प्रसन्न होना तथा रोंगटे खड़े होना , आंसू निकलना , कम्पन , स्वेद , वेपथु आदि (सात्विक)
एवं वाह-वाह आदि साधुवाद वचन आदि सभी तरह के अनुभाव सहज ही प्रकट होते हैं।
उत्सुकता , जिज्ञासा , आवेग , भ्रम , जड़ता , हर्ष , स्मृति , गर्व , धृति , भय , आशंका , तर्क ,चिंता आदि संचारी भाव है।
उदात , अद्भुत रस की स्थिति वही होती है जहां दया , कृपा , साहस , उत्साह , गर्व आदि संचारी विस्मय को उदात बनाते हैं।
आश्चर्य पूर्ण कार्य-व्यापार , घटना आदि किसी महत्व उद्देश्य की सिद्धि हेतु प्रस्तुत होते हैं।
जितने भी अधिक महत्वपूर्ण घटना कार्य आदि से संबंधित जितना अद्भुत आश्चर्य कार्य व्यापार घटना आदि प्रस्तुत होंगे उतने ही अधिक उदात अद्भुत रस की सिद्धि होगी।
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निष्कर्ष
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जहां व्यक्ति को आश्चर्य , अद्भुत आदि की अनुभूति होती है , वहां अद्भुत रस होता है। यह घटना या परिस्थिति सामान्य से हटकर होती है। जिसे हम अलौकिक भी कह सकते हैं। इसका स्थाई भाव विस्मय है इस। रस की निष्पत्ति विभाव , अनुभाव , संचारी भाव आदि के सहयोग से होती है अर्थात इन सभी के मिश्रण से इस रस की निष्पत्ति होती है।
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