राजा भोज की कहानी, Raja Bhoj ki kahani

इस लेख में आप राजा भोज के अनेक कहानियों का संकलन प्राप्त करेंगे। राजा भोज उज्जैन के प्रसिद्ध राज्यों में से एक हैं विक्रमादित्य के वंशज माने जाते हैं जो धर्म नीति और प्रजा हित के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया। राजा विक्रमादित्य सत्यवादी और न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल थे।उनके राज्य में प्रजा कभी भी दुखी नहीं रहती थी। वह अपने राज्य को संतान के रूप में देखभाल किया करते थे , किसी के सुख – दुख में वह एक परिवार के सदस्य रूप में शामिल हुआ करते थे। राजा भोज उनके ही उत्तराधिकारी माने जाते हैं।

Raja Bhoj ki kahani – राजा भोज की कहानी

राजा भोज उज्जैन के प्रसिद्ध राजाओं में से एक थे। उनके यहां धनलक्ष्मी का साक्षात वास था। उनके कुछ मंत्री स्वामी भक्त थे तथा कुछ लापरवाह और गैर जिम्मेदार थे। ऐसे ही एक मंत्री जो गैर जिम्मेदाराना कार्य किया करते थे, लोगों को परेशान करते थे उनकी आए दिन शिकायत राजा भोज के समक्ष आया करती थी।

1. कर्म की गठरी ( राजा भोज की कहानी )

एक दिन राजा भोज ने गैर जिम्मेदार मंत्री तथा एक स्वामी भक्त मंत्री को दरबार में उपस्थित होने के लिए आदेश दिया। आदेश के अनुसार दोनों मंत्री वहां दरबार में राजा के समक्ष उपस्थित हुए। राजा ने दोनों को एक थैला देकर बाग़  में जाकर फल लाने को कहा।

दोनों मंत्री शाही बाग में जाकर फल तोड़ने लगे।

जिम्मेदार और स्वामी भक्त मंत्री ने अपने राजा के लिए सुंदर स्वादिष्ट और ताजे फल तोड़े और अपना थैला भर लिया। वही कामचोर और लापरवाह गैर जिम्मेदार मंत्री ने विचार किया राजा कौन सा थैला देखेगा और फल चुनेगा जो समझ आए वही झटपट भर लेता हूं। ऐसा सोच विचार कर उसने कच्चे-पक्के, सड़े-गले सभी प्रकार के फल से झटपट अपना थैला भर लिया।

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दोनों मंत्री अपने-अपने फल के थैले को लेकर दरबार में उपस्थित हुए।

राजा भोज ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया दोनों मंत्रियों को उनके थैले के साथ कैद खाने में कैद कर लिया जाए।

आदेश का पालन हुआ दोनों मंत्रियों को थेलों के साथ कैद कर लिया गया।

राजा ने आदेश दिया था उन्हें भोजन ना दिया जाए, ऐसा ही हुआ। दोनों अलग-अलग कोठरी में कैद थे, भूख लगती तो थैले से फल निकाल कर खा लेते और अपनी भूख शांत करते।

जिस मंत्री के पास स्वादिष्ट और उच्च कोटि के फल थे, वह ज्यादा दिन तक फल को खाता रहा। जबकि गैर जिम्मेदार और लापरवाह मंत्री के फल तुरंत ही खराब और बर्बाद हो गए , क्योंकि उसने फल का चुनाव ठीक प्रकार से नहीं किया था। हालत यह हुई कि वह मंत्री बेहोश हो गया उसको तत्काल उपचार के उपरांत दरबार में उपस्थित किया गया।

दोनों मंत्री राजा के आदेश से अब कैद से बाहर थे।

राजा भोज ने मंत्री को समझाया यह जीवन एक सुंदर बाग के रूप में है, यहां सुंदर और स्वादिष्ट फल के अनुरूप अपने जीवन को चुनना चाहिए।  उत्तम व्यवहार करने चाहिए और अपने इस छोटे से जीवन रूपी झोले को भरते रहना चाहिए। बुरे कर्म, बुरे समय में काम नहीं आते। अच्छे कर्म ही बुरे समय में संबल बनते हैं, इसलिए सभी को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए।

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मोरल –

  • जो व्यक्ति अच्छा कर्म करता है उसके साथ सदैव अच्छा ही होता है।
  • बुरे वक्त में भी वह भयभीत नहीं होता उसका समय किए हुए अच्छाइयों के साथ बीत जाता है।

2. चंद्रभान ने की राजा भोज की सार्वजनिक बेज्जती

चंद्रभान लंबू गडरिया का पुत्र था, जिसका काम रोज सुबह शाम जानवरों को चारा खिलाने के लिए मैदान में ले जाना था। चंद्रभान का यह कार्य प्रतिदिन का था। वह दूर-दूर जानवरों को चारे की तलाश में ले जाया करता था। जानवरों को चारा खाता छोड़ वह लंबे टीले पर बैठ जाता और उज्जैन के राजा भोज को अनाप-शनाप बोलता। गालियां देता तथा सार्वजनिक बेज्जती करता।

ऐसा करता देख आसपास के लोग उसे इस प्रकार का व्यवहार करने से रोकते।मगर वह तीव्र आक्रोश में राजा भोज को निरंतर गालियां देता रहता।

एक बार सिपाही ने चंद्रभान को गाली देता सुना सिपाही आग बबूला होकर उसे टीले से घटता हुआ लेकर आया। टीले से उतरते ही चंद्रभान के स्वर बदल गए हुए थे , वह डर के मारे थर-थर काँपता और सिपाही से अपने किए के लिए क्षमा मांगता।

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सिपाही ने धमकी देकर चंद्रभान को छोड़ दिया।

किंतु यह रोज का वाक्य हो गया था, चंद्रभान जब भी उस टीले पर चढ़ता राजा भोज को गालियां देता अनाप-शनाप बोलता रहता। सिपाही मंत्री को लेकर आता है और चंद्रभान के पूरे कृत्य को साक्षात दिखा देता है। मंत्री के आदेश पर सिपाही उसे टीले से घसीट कर लाते हैं और उसकी ठीक प्रकार से पिटाई करते हैं। टीले से उतरते ही चंद्रभान सभी बातों को भूल जाता है, वह थर-थर काँपता है उसे यह भी मालूम नहीं होता कि उसे किस गलती के लिए सजा दिया जा रहा है।

मंत्री चंद्रभान को कैद करके राजा भोज के समक्ष दरबार में प्रस्तुत करता है।

चंद्रभान राजा भोज के समक्ष झुकी हुई नजरों से रोता हुआ पूरा शरीर भय से कांप रहा है और पसीने की धारा पूरे शरीर से बह रही है। जैसे उसने कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो। दरबार में जब उसे पूछा गया तो उसे कुछ भी याद नहीं था वह राजा भोज से पूरी कहानी कह देता है। संपूर्ण बात किया जब दरबारियों के समक्ष आ गया, तब विचार विमर्श किया गया उस टीले के नीचे अवश्य ही कुछ है जिसके कारण यह अनपढ़ भी शिक्षित व्यक्तियों जैसी बातें करता है और नीति शास्त्र धर्म राजनीति आज की बातें करता है। तथा राजा भोज को गालियां देता है अशिक्षित बताता है।

राजा भोज के आदेश से उस टीले की खुदाई की गई खुदाई में एक सुंदर चमचम आता हुआ राज सिंहासन प्राप्त हुआ। जिसमें बत्तीस पुतली विराजमान थी। संभवत यह राजा विक्रमादित्य का सिंहासन था राजा भोज ने उसे घास की तेज को देखा और उस पर बैठने की इच्छा जाहिर की।

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शुभ मुहूर्त के साथ स्वास्तिक मंगलाचार किया गया, पूजा – पाठ, विधि – विधान आदि से किया गया।

राजा भोज उस सिंहासन की ओर बैठने को उपस्थित हुए। तत्काल उसमें से एक पुतली निकलती है और राजा को सिंहासन पर बैठने से रोक देती है।तथा उससे प्रश्न करती है- कि क्या वह इस सिंहासन पर बैठने के लायक है ? वह स्वयं विचार करें। ऐसा कहते हुए रत्नमंजरी नाम की पुतली कहानी कहना आरंभ करती है।

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3. राजा का अहंकार भी जिसे जला ना पाया

राजा भोज के नाम से तो सभी लोग परिचित हैं। राजा भोज बड़े ही विद्वान और न्याय प्रिय थे, वह प्रजावत्सल थे। प्रजा को अपने पुत्र के समान प्रेम किया करते थे। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। उनके दरबार में बड़े ही विद्वान आचार्य तथा मंत्री सदैव उपस्थित रहा करते थे।

धनपाल जैन नाम का एक धर्माचार्य जो बड़ा ही विद्वान था, उसने बाणभट्ट की कादंबरी को प्राकृत भाषा में अनुवाद किया। उस समय प्राकृत भाषा में अनुवाद कर पाना कोई सरल कार्य नहीं था।धनपाल ने इस कार्य को कई वर्षों के निरंतर प्रयास से किया था।

जब धनपाल जैन अपनी पांडुलिपि लेकर राजा भोज के दरबार में उपस्थित हुए।

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राजा भोज इन पांडुलिपियों को देखकर बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने धनपाल जैन की खूब सराहना की,  किंतु उनके मन में एक लालच एकाएक आ गया। उन्होंने धनपाल जैन को उन पांडुलिपियों के साथ अपना नाम जोड़ने को कहा।

धनपाल जैन बड़े ही स्वाभिमानी और उच्च आदर्श के व्यक्ति थे। उन्होंने राजा की बात सुनकर अपना विरोध जताया और राजा का नाम जोड़ने से मना कर दिया।

राजा भोज को यह आशा नहीं थी कि उनको निराशा हाथ लगेगी। इस इनकार से वह आग बबूला हो गए और उन्होंने तत्काल पांडुलिपियों को ज़प्त  करा लिया और उसे जलाकर राख करने का आदेश दिया।

ऐसा ही हुआ राजा की आज्ञा का अक्षरसः पालन हुआ।

धनपाल जैन को अपने मेहनत का ऐसा परिणाम निकलेगा इसकी कभी उम्मीद ना थी। वह निराश परेशान अपने घर में एकांतवास धारण कर लिया। अब उन्होंने खाना पीना भी छोड़ दिया था , उन्हें दुनिया में कुछ भी रुचिकर नहीं लग रहा था।

उनकी पुत्री तिलकमंजरी बेहद ही कुशाग्र बुद्धि की थी।उसने अपने पिता की ऐसी हालत देखी तो वह चिंता दूर हो गई।

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अपने पिता से पूरा कारण जानकर पिता को आश्वासन दिया।

पुत्री ने बताया जब वह कादंबरी का पाठ किया करते थे तथा लिखा करते थे तो उसने स्मरण करके अक्षरसः याद कर लिया था। पुत्री की बात सुनकर पिता को आश्चर्य हुआ। पुत्री ने अपने पिता को पुनः उन पांडुलिपियों को तैयार करने के लिए कहा।

तिलक मंजरी ने पुनः उन पांडुलिपियों को पिता के साथ मेहनत कर तैयार कर लिया।

ने अपनी इस पुस्तक का नाम कादंबरी से बदलकर “तिलकमंजरी” रखा क्योंकि यह पुस्तक अब तिलकमंजरी की मेहनत से तैयार हुआ था।

आज भी इस पुस्तक को जैन समुदाय के लोग बड़े ही सम्मान के साथ पढ़ते हैं।

4 महल बन गया सराय

उज्जैनी नगरी में राजा भोज के अनेकों महल थे, जिसमें राजश्री घर आने के सदस्य तथा दरबार के सम्मानित अधिकारीगण रहा करते थे। गर्मी का मौसम था जगह जगह सुखा पडने की शिकायत सुनने को मिल रही थी। बरसात ने शायद इस नगर को सुखाने की योजना बना ली थी।

पेड़-पौधे असमय मुरझा रहे थे, उनकी पत्तियां झड़ झड़ कर गिर रही थी। राहगीरों के आवागमन में बाधा उत्पन्न हो रही थी। लंबे लंबे रास्ते तय करना कठिन हो गया था क्योंकि पेड़-पौधों का आश्रय अब पहले जैसा नहीं रह गया था।

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राजा भोज चिंतित थे उन्हें अपने प्रजा की रक्षा किसी भी हाल में करनी थी। बड़े योजनाओं के साथ राजा ने ऐलान किया।

जगह-जगह तालाब बनाया जाए, जिसमें कुआं से पानी भरने की व्यवस्था की जाए। दिन-रात पेड़ पौधों को पानी की व्यवस्था की जाए तथा राहगीरों के आवागमन में कोई परेशानी ना हो। राजमार्ग पर जितने भी सरकारी महल या आवास हैं उन्हें सराय में तब्दील किया जाए।

राजा भोज की ऐसी उदारता पहले नहीं देखी गई थी, प्रजा इन सभी व्यवस्था से धन्य हो गई थी। राजा ने अपना महल भी सराय के रूप में तब्दील कर दिया था ताकि किसी राहगीर को तकलीफ ना हो वह अपना पड़ाव आसानी से डाल सके।

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आशा है आपको राजा भोज की यह कहानी बहुत पसंद आई होगी और आपको कुछ सीखने को मिला होगा. इन कहानियों को लेकर आपके मन में क्या विचार उत्पन्न हुए हैं कृपा करके कमेंट बॉक्स में बताएं।

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8 thoughts on “राजा भोज की कहानी, Raja Bhoj ki kahani”

  1. आप कहानियां बहुत अच्छी लगते हैं. कृपया इसी प्रकार अन्य महान लोगों की भी कहानियां डालते रहें. आपकी वेबसाइट मुझे बहुत पसंद है

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  2. हिंदी विभाग की भाषा शैली और कहानियों का मैं हमेशा से ही प्रशंसक रहा हूं।
    आपके द्वारा लिखे गए लेख और कहानियां बहुत अच्छी होती हैं।

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  3. आपने बहुत सुंदर जातक कथा लिखी है और आशा करता हूं कि आप और भी कहानियां यहां पर जरूर लिखेंगे.

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  4. मैं बचपन से ही राजा भोज की कहानी पढ़ना चाहता था पर मुझे कहीं पर नहीं मिली। आपकी इस वेबसाइट पर राजा भोज की इतनी अच्छी कहानियां पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे कि मेरा माँगा हुआ पूरा हो गया है. अगर आपके पास और भी राजा भोज की कहानियां है तो जरूर प्रस्तुत करें मुझे पढ़कर अच्छा लगेगा।

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  5. बचपन से ही राजा भोज और गंगू तेली का नाम बहुत बार सुना है जैसे कि कभी फिल्मों में कभी लोगों द्वारा लेकिन आज पहली बार कहानी पढ़ने को मिली जिससे बहुत कुछ समझ में आया.

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  6. सभी लोग कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली का मतलब किसी गंगू नामक तेली से समझते हैं।
    मगर इसका मतलब है :-
    कि राजा भोज का साम्राज्य बहुत बड़ा था। उनके साम्राज्य के साथ ही दो कमजोर राज्यों की सीमाएं लगतीं थीं। जिनके नाम गांगेय और तैलंग थे। तेलंगाना उसी तैलंग से पड़ा नाम है।

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  7. बहुत अच्छी कहानी और भाषा एकदम साफ है जो आसानी से समझ में आ जाए

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